चकराता : मुख्यमंत्री के दिशा निर्देशों पर वन पंचायतों के सुदृढ़ीकरण एवं वनाग्नि आपदा सुरक्षा और रोकथाम को लेकर बुधवार को जिला प्रशासन द्वारा चिरमिरी टॉप चकराता में नव गठित वन पंचायतों के साथ महाधिवेशन आयोजित किया गया। सम्मेलन में कैबिनेट मंत्री सुबोध उनियाल ने बतौर मुख्य अतिथि शिरकत की। इस दौरान चकराता विधायक प्रीतम सिंह भी मौजूद रहे। सम्मेलन में वन पंचायतों के अधिकार एवं दायित्वों पर गहनता से मंथन और प्रशिक्षण दिया गया और वनाग्नि रोकथाम एवं ”जंगल से जनकल्याण” का सामूहिक संकल्प लिया गया। महाधिवेशन में कैबिनेट मंत्री ने जिला प्रशासन को ओर से आपदा मद से वन पंचायतों को सशक्त बनाने हेतु प्रत्येक वन पंचायतों को 15-15 हजार की धनराशि के चेक वितरित भी किए।मुख्य अतिथि/कैबिनेट मंत्री सुबोध उनियाल ने अपने संबोधन में कहा कि उत्तराखंड राज्य में जंगल हमारी आर्थिक का प्रमुख स्रोत है। वनों की सुरक्षा न केवल राज्य के लिए बल्कि पूरी मानवता के लिए जरूरी है। जंगलों को वनाग्नि से बचाने के लिए जन सहभागिता आवश्यक है। इसके लिए हमने ग्राम स्तर, जिला तथा शासन स्तर पर कमेटी गठित कर वन पंचायतों को सशक्त बनाने का काम किया है। कहा कि जो लोग वनों की आग बुझाने का काम करेंगे, उनको 51 हजार, 75 हजार से लेकर 01 लाख तक पुरस्कार देने का प्राविधान किया है।
कैबिनेट मंत्री ने कहा कि वन क्षेत्रों में इको टूरिस्ट और हर्बल प्लांटेशन से जड़ी बूटी उत्पादन से लोगों को जोडकर रोजगार देने का काम किया जा रहा है।जिलाधिकारी सविन बंसल ने कहा कि वनाग्नि सुरक्षा को लेकर देहरादून जिले में 200 वन पंचायतों को सक्रिय किया गया है। उन्होंने कहा कि वनाग्नि की रोकथाम में स्थानीय लोग फर्स्ट रिस्पांडर की भूमिका निभाते है। लोकल एवं स्थानीय होने के चलते उन्हें अपने आसपास के भौगोलिक क्षेत्र के बारे में सबसे अधिक और सटीक जानकारी रहती है। उनकी मदद से हम अपने वन और पर्यावरण को सुरक्षित रख सकते है। मुख्यमंत्री ने भी वनाग्नि रोकथाम के लिए हर संभव उपाय करने के निर्देश दिए है। इसी दिशा में वन पंचायतों को सक्रिय करते हुए चिरमिरी में वन पंचायतों का महाधिवेशन आयोजित किया गया है। जिसमें प्रत्येक वन पंचायत को आपदा मद से 15-15 हजार की धनराशि आवंटित की गई है। जिलाधिकारी ने कहा कि किसी भी जिले में पहली बार इस प्रकार की पहल की गई है, ताकि वन पंचायत से जुड़े लोग अपने स्तर से फायर वॉचर रख सके। अपने वन क्षेत्रों में फायर लाइन काट सके और वनाग्नि की घटनाओं को न्यून कर सके।