देहरादून। उत्तराखंड में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी द्वारा संविदा और उपनल कर्मचारियों के नियमितीकरण की घोषणा के बाद अब इन कर्मचारियों की निगाहें सेवाकाल और कटऑफ के पैमाने पर हैं। राज्य में इससे पहले दो बार नियमितीकरण की नीतियां बनाई गई थीं, लेकिन अलग-अलग सेवा अवधि के कारण इन प्रयासों में विवाद उठे और उन्हें हाईकोर्ट ने रोक दिया था।
वर्ष 2013 से पूर्व तक राज्य में संविदा और आउटसोर्स कर्मचारियों के नियमितीकरण का कोई प्रावधान नहीं था। 2013 में विनियमितीकरण नियमावली आई, जिसमें कर्मचारियों की लगातार 10 साल की सेवा को आधार बनाकर नियमित करने का प्रावधान था, लेकिन इसे भी हाईकोर्ट ने विवादित मानते हुए रोक दिया। फिर, 2017 में हरीश रावत सरकार ने इस प्रक्रिया को पुनः शुरू किया, और सेवाकाल को 10 साल से घटाकर 5 साल कर दिया था, लेकिन उस पर भी आपत्तियां आईं और हाईकोर्ट ने फिर से रोक लगा दी।
अब, मुख्यमंत्री धामी द्वारा की गई घोषणा से कर्मचारियों में नई उम्मीद जगी है। उनके लिए यह महत्वपूर्ण है कि इस बार नियमावली में किस प्रकार की सेवा अवधि और कटऑफ निर्धारित की जाएगी। कर्मचारी संगठनों का कहना है कि लंबे समय से नियमितीकरण के लिए संघर्ष कर रहे कर्मचारी अब उम्मीद लगाए हुए हैं कि जल्द ही इस मुद्दे पर स्थायी समाधान निकलेगा।
विनोद कवि, संयोजक, विद्युत एकता मंच ने कहा, “हम लंबे समय से नियमितीकरण की लड़ाई लड़ रहे हैं। श्रम न्यायालय, हाईकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट से इस संबंध में निर्णय आ चुके हैं। अब मुख्यमंत्री धामी का आभार जताते हैं। सभी साथी उत्साहित हैं और हमें उम्मीद है कि जल्द ही नियमावली जारी होगी और 15 से 18 साल तक सेवा करने वाले उपनल कर्मचारी नियमित होंगे।
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