अल्मोड़ा – बिनसर अभयारण्य प्रकृति प्रेमियों के लिए किसी स्वर्ग से कम नहीं है। यह अभयारण्य तेंदुए, घुरड़, काला भालू, कांकड़, सिराव सहित अन्य दुर्लभ वन्यजीवों के साथ ही गिद्ध, उल्लू, कोलास, करोली सहित कई पक्षियों का आशियाना है। वनाग्नि ने इस अभयारण्य की प्राकृतिक सुंदरता पर ग्रहण लगाने के साथ ही इन वन्यजीवों और पक्षियों के अस्तित्व पर गहरी चोट की है।
हालात यह हैं कि यहां मौजूद वन्यजीव अपनी जान बचाने के साथ ही भोजन की तलाश में आबादी का रुख करने लगे हैं। अभयारण्य से सटे गांवों में तेंदुआ सहित अन्य वन्य जीवों की मौजूदगी इसका प्रमाण है। अभयारण्य के नजदीक रानीखेत में नगर के बीचोबीच छावनी परिषद के कार्यालय में नजर आए तेंदुए के यहां पहुंचने के पीछे भी वनाग्नि कारण बताई जा रही है। छावनी परिषद के कार्यालय में रविवार रात एक तेंदुआ सीसीटीवी में कैद हुआ है। वहीं, तीन दिनों तक दिन-रात सुलग रहे अभयारण्य को देखते हुए कई वन्यजीवों का जंगल की आग से अस्तित्व मिटने का भी अनुमान है। वन विभाग भी इस बात से इनकार नहीं कर पा रहा है।
1988 में स्थापित बिनसर अभयारण्य 45.59 किलोमीटर में फैला हुआ है। यहां कई वनस्पतियों और जीवों की मौजूदगी है। बीते दिनों यहां लगी आग से कई वनस्पतियां जल गईं। संरक्षित अभयारण्य में फॉर्किटेल, ब्लैकबर्ड्स, लाफिंग थ्रश, कालिज तीतर, नटचैचेस, पारकेट और मोनाल सहित कई दुर्लभ पक्षी मौजूद हैं। वनाग्नि से इनके घोंसले के साथ कई पक्षियों की मौत की संभावना है।
समुद्र तल से 1500 से 2500 मीटर ऊंचाई में स्थित बिनसर 11 वीं से 18 वीं शताब्दी तक कत्यूरी और चंद राजाओं की ग्रीष्मकालीन राजधानी थी। शांत और मनोरम बिनसर उत्तराखंड के खूबसूरत जगहों में से एक है।
डीएफओ हेम चंद्र गहतोड़ी ने कहा कि अभयारण्य में लगी आग के चलते यहां मौजूद वन्यजीव भोजन और सुरक्षित स्थान की तलाश में आबादी का रुख करने लगे हैं। बारिश के बाद अभयारण्य में फिर से हरियाली लौटने की उम्मीद है। इसके बाद वन्य जीवन और पक्षी फिर से यहां डेरा जमाएंगे।