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उत्तराखंड की सियासत में मुख्यमंत्री धामी का धमाल, बने बीजेपी के पोस्टर बॉय

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मुख्यमंत्री धामी के फैसलों ने हिला दी राजनीति! विपक्ष हारा, बीजेपी के पोस्टर बॉय बने

देहरादून: पहाड़ की हवाओं को रोका नहीं जा सकता, ठीक वैसे ही उत्तराखंड की राजनीति भी कभी थमती नहीं रही। यहां हर दो–तीन साल में मुख्यमंत्री बदल जाते थे, सत्ता की बागडोर इधर से उधर फिसलती थी। लेकिन इस बार कहानी बदली…और वो बदला एक ऐसे चेहरे से, जो दिखने में सीधा‑साधा था, लेकिन काम में सबसे तेज़ निकला: पुष्कर सिंह धामी

मुख्यमंत्री धामी

 

धामी ने वो कर दिखाया,जो उत्तराखंड की राजनीति में दशकों से कोई नहीं कर पाया था सिर्फ कांग्रेस को कमजोर नहीं किया…बल्कि बीजेपी को भी भीतर से इतना मज़बूत किया कि बागियों ने भी चुपचाप सरेंडर कर दिया।

कालनेमि योजना

उत्तराखंड और यूपी की कांवड़ यात्रा को शांतिपूर्ण और सुरक्षित बनाने के लिए धामी ने ‘ऑपरेशन कालनेमि’ चलाया। रामायण के कालनेमि राक्षस की तरह, कांवड़ियों के बीच छिपे नकली साधु‑संत और उपद्रवी भीड़ पर सख़्ती की। 3000 से अधिक फर्जी बाबा पकड़े गए कहीं कोई बड़ा उपद्रव या हिंसा की घटना नहीं हुई हरियाणा जैसे दूसरे राज्यों ने भी इस मॉडल को अपनाया इस एक कदम ने धामी को सिर्फ बीजेपी का नहीं, RSS का भी पोस्टर बॉय बना दिया।

 

पहाड़ की राजनीति से दिल्ली तक की सियासत में नाम
धामी सिर्फ धार्मिक यात्राओं तक सीमित नहीं रहे:
टनल हादसे में मजदूरों को निकालने के लिए खुद साइट पर डटे, वहीं अस्थायी कैंप ऑफिस बना लिया
पलायन रोकने के लिए खुद खेत में हल चलाया, ताकि पहाड़ लौटे लोग भरोसा महसूस करें
उत्तराखंड पहला राज्य बना जिसने UCC लागू किया
नकल माफिया, ज़बरन धर्मांतरण, फर्ज़ी मदरसे…हर मुद्दे पर एक्शन

“गलती नहीं है तो छेड़ेंगे नहीं, गलती है तो छोड़ेंगे नहीं”……ये नारा इतना असरदार हुआ कि राष्ट्रीय राजनीति तक में गूंजने लगा।

क्यों अलग हैं धामी?
धामी विवादित बयानों से दूर रहते हैं, सीधे काम पर फोकस करते हैं।
हर बार बीजेपी को पांचों लोकसभा सीटें दिलवाईं और विधानसभा में कांग्रेस का आधार भी ख़त्म कर डाला।
RSS भी उन्हीं नेताओं को आगे करता है..जिनकी छवि साफ, काम दमदार और नेतृत्व विवादों से परे हो…और धामी इसमें फिट बैठते हैं।

नतीजा?
आज जब बीजेपी की नई पीढ़ी की बात होती है, तो लोग सिर्फ योगी आदित्यनाथ या मोहन यादव का नाम नहीं लेते…बल्कि पुष्कर सिंह धामी भी उतनी ही मज़बूती से गिनती में आते हैं। सच कहें तो…पहाड़ की राजनीति को लंबे वक्त के बाद एक ऐसा लीडर मिला…जिसने मैदान और पहाड़ दोनों को साथ जोड़ा। और यही वजह है कि आज बीजेपी ही नहीं पूरा संघ परिवार भी उन्हें अपना भरोसेमंद चेहरा मानता है।

 

 

 

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