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उत्तराखंड HC का बड़ा फैसला, सरकारी नौकरियों में इन महिलाओं को नहीं मिलेगा आरक्षण
नैनीताल: उत्तराखंड हाईकोर्ट ने मंगलवार को आरक्षण पर एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए स्पष्ट किया है कि दूसरे राज्य की अनुसूचित जाति की महिलाएं, जो विवाह के बाद उत्तराखंड में बसी हैं वो अब उत्तराखंड में सरकारी नौकरियों में आरक्षण की हकदार नहीं होंगी।
सरकारी नौकरियों में अब इन महिलाओं को नहीं मिलेगा आरक्षण
ये फैसला न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की एकल पीठ के द्वारा अंशु सागर सहित कई अन्य याचिकाओं पर सुनवाई करते लिया गया। कोर्ट ने माना कि आरक्षण का अधिकार क्षेत्र-विशिष्ट होता है और ये प्रवास के साथ स्थानांतरित नहीं होता।
याचिकाकर्ता अंशु सागर मूल रूप से उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद जिले की रहने वाली है। उन्होंने उत्तराखंड के एक अनुसूचित जाति के निवासी से विवाह किया। वे जन्म से ‘जाटव’ समुदाय से हैं, जिसे यूपी में अनुसूचित जाति का दर्जा मिला है। विवाह के बाद उन्होंने उत्तराखंड के जसपुर से जाति प्रमाण पत्र और स्थायी निवास प्रमाण पत्र प्राप्त किया और सरकारी प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक भर्ती के लिए आरक्षण का दावा किया, जिसे विभाग ने अस्वीकार कर दिया था।
जाति का दर्जा जन्म से तय होता है विवाह से नहीं
राज्य सरकार की ओर से तर्क दिया गया कि जाति का दर्जा जन्म से तय होता है विवाह से नहीं। साथ ही 16 फरवरी 2004 और अन्य शासनादेशों का उल्लेख किया गया जिसके अनुसार आरक्षण का लाभ केवल उत्तराखंड के मूल निवासियों को दिया जाएगा। सरकार ने दलील दी कि पड़ोसी राज्यों के निवासी, भले ही वे उत्तराखंड से जाति प्रमाण पत्र बनवाने में सफल हो जाएं, सार्वजनिक रोजगार में आरक्षण के हकदार नहीं होंगे।
फैसले में स्पष्ट किया गया कि प्रवास, चाहे वह स्वैच्छिक हो या अनैच्छिक (जैसे शादी के कारण), किसी व्यक्ति को दूसरे राज्य में आरक्षण का अधिकार नहीं मिल सकता। कोर्ट ने कहा कि यदि प्रवासियों को आरक्षण का लाभ दिया जाता है, तो यह उस राज्य के मूल अनुसूचित जाति/जनजाति के लोगों के संवैधानिक अधिकारों का हनन होगा। एक राज्य का आरक्षित वर्ग दूसरे राज्य में सामान्य वर्ग के रूप में माना जाएगा।