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उत्तराखंड: आस्था का प्रतीक माँ नयना देवी मंदिर, जहां गिरी थी माँ सती की बायीं आंख

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नैनीताल: देश के 51 प्रमुख शक्ति पीठों में शामिल माँ नयना देवी मंदिर का स्थापना दिवस आज अत्यंत श्रद्धा, उत्साह और भव्यता के साथ मनाया गया। सुबह से ही मंदिर परिसर में श्रद्धालुओं की लंबी कतारें लगी रहीं। स्थानीय निवासियों के साथ-साथ सैकड़ों की संख्या में पर्यटक भी इस पावन अवसर पर माँ के दर्शन और पूजा अर्चना के लिए पहुंचे।

मंदिर समिति की ओर से विशेष पूजा और महा भण्डारे का आयोजन किया गया, जिसमें हजारों श्रद्धालुओं ने भाग लेकर माँ का प्रसाद ग्रहण किया। पूरे दिन मंदिर परिसर भक्ति-भाव, मंत्रोच्चारण और भजन-कीर्तन की गूंज से गुंजायमान रहा।

पौराणिक मान्यता से जुड़ा है मंदिर का इतिहास

ऐसा माना जाता है कि राजा दक्ष के यज्ञ में जब भगवान शिव और सती को आमंत्रित नहीं किया गया, तो माँ सती ने हवन कुंड में अपने प्राणों की आहुति दे दी। भगवान शिव ने शोक में डूबकर जब माँ सती के शरीर को लेकर आकाश मार्ग से यात्रा की, तो भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को खंडित कर दिया। मान्यता है कि माँ सती की बायीं आंख नैनीताल में गिरी, और तभी से इस स्थान को “नयना देवी” के नाम से पूजा जाता है।

इसी ऐतिहासिक और आध्यात्मिक मान्यता के आधार पर नैनीताल का नाम पड़ा और यहां की प्रसिद्ध नैनी झील को भी माँ के “नयन” का प्रतीक माना जाता है। यही कारण है कि इस स्थान को शक्ति की एक अत्यंत महत्वपूर्ण पीठ के रूप में पूजा जाता है।

श्रद्धालुओं की आस्था बनी अद्वितीय मिसाल

माँ नयना देवी मंदिर में देशभर से आने वाले श्रद्धालुओं की अपार आस्था जुड़ी है। मान्यता है कि माँ नयना देवी सभी सच्चे मन से की गई प्रार्थनाओं को सुनती हैं और मनोकामनाएं पूरी करती हैं। स्थापना दिवस का यह आयोजन न केवल धार्मिक भावना को बल देता है, बल्कि नैनीताल की सांस्कृतिक गरिमा को भी दर्शाता है।

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