उत्तरकाशी: एक ओर उत्तराखंड को आध्यात्मिक और साहसिक पर्यटन के लिए ग्लोबल हब बनाने की कोशिशें हो रही हैं, वहीं दूसरी ओर राज्य के ही कुछ गांव बुनियादी सुविधाओं से कोसों दूर हैं। ऐसी ही एक चौंकाने वाली तस्वीर यमुनोत्री विधानसभा क्षेत्र के नकोड़ा और कपोला गांव से सामने आई है, जहां 70 वर्षीय एक बुजुर्ग को ग्रामीण डोली में लादकर सड़क मार्ग तक ला रहे हैं ताकि उसे अस्पताल पहुंचाया जा सके।
यह दृश्य 21वीं सदी के भारत की उस हकीकत को उजागर करता है, जहां सड़क न होने की वजह से लोग आज भी ‘कंडी-डोली’ के सहारे जीवन और मौत के बीच झूलते हैं।
स्थानीय लोगों का कहना है कि यह कोई पहला मामला नहीं है। इस क्षेत्र में अब तक दर्जनों लोग इलाज के अभाव और सड़क न होने के कारण दम तोड़ चुके हैं। खासकर बुजुर्गों और गर्भवती महिलाओं के लिए यह स्थिति बेहद खतरनाक हो जाती है। डिलीवरी केस होने पर परिवार महीनों पहले गांव छोड़ शहरों में किराए पर कमरा लेने को मजबूर हो जाते हैं।
चौंकाने वाली बात यह है कि ये दोनों गांव यमुनोत्री धाम के बेहद करीब स्थित हैं, लेकिन आज तक सड़क जैसी बुनियादी सुविधा से वंचित हैं। तमाम चुनावी वादों के बावजूद यहां के लोग आज भी कंधों पर मरीज ढोने को मजबूर हैं। ग्रामीणों ने इस उपेक्षा के विरोध में चुनाव बहिष्कार भी किया, लेकिन उसका भी कोई असर नहीं पड़ा।
प्रशासन और सरकार ने इन गांवों के विकास की बात तो की, लेकिन जमीनी स्तर पर कुछ नहीं बदला। यह स्थिति सवाल खड़े करती है कि क्या उत्तराखंड के पहाड़ी गांवों की वास्तविक समस्याएं कभी प्राथमिकता बनेंगी ?