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हिमाचल और जम्मू-कश्मीर के बाद अब उत्तराखंड में आमेश की व्यावसायिक खेती की होगी शुरुआत !

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बागेश्वर:  हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर के बाद अब उत्तराखंड में आमेश (सीबक्थोर्न) की व्यावसायिक खेती शुरू करने की योजना बनाई गई है। वन विभाग का वानिकी अनुसंधान संस्थान प्रदेश के विभिन्न हिमालयी क्षेत्रों में किसानों को इस फल की खेती के लिए प्रशिक्षित कर रहा है। अब तक करीब 700 किसानों को इस खेती के बारे में प्रशिक्षण दिया जा चुका है।

संस्थान की योजना है कि मार्च से हिमालयी क्षेत्रों में बीज और पौधरोपण कर खेती की शुरुआत की जाए। अमेश, जिसे स्थानीय भाषा में “चूक” कहा जाता है, एक औषधीय झाड़ी है, जो 3000 मीटर से अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में पाया जाता है। इस फल में विटामिन सी, ई, बी1 से बी6 तक के पोषक तत्व होते हैं और यह स्मरण शक्ति बढ़ाने, कैंसर से बचाव और आयुर्वेदिक दवाइयों में उपयोगी माना जाता है।

अमेश के फल की बाजार में कीमत 500 से 1000 रुपये प्रति किलो तक है, और इसकी खेती के लिए हिमाचल प्रदेश और जम्मू कश्मीर के अनुभवों को ध्यान में रखते हुए किसानों को विजिट भी कराया जाएगा। इस फल का जूस माइनस 29 डिग्री सेल्सियस में भी नहीं जमता, जिससे ठंडे क्षेत्रों में इसकी खपत काफी बढ़ जाती है।

वानिकी अनुसंधान संस्थान के कॉर्डिनेटर बलवंत सिंह शाही ने बताया कि उत्तरकाशी, चमोली, पिथौरागढ़, अल्मोड़ा, बागेश्वर जैसे जिलों में किसानों को प्रशिक्षण दिया गया है। इन क्षेत्रों में अमेश की खेती के लिए जलवायु उपयुक्त मानी जा रही है।

मुख्य वन संरक्षक कार्ययोजना/वानिकी अनुसंधान संस्थान हल्द्वानी,संजीव चतुर्वेदी: प्रदेश में अमेश की व्यावसायिक खेती के लिए किसानों को प्रशिक्षित किया जा रहा है। सभी हिमालयी क्षेत्रों के किसानों को प्रशिक्षण देकर मार्च से कार्य शुरू करने की योजना है।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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