Dehradun
उत्तराखंड का प्राचीन मंदिर: जहां भक्तों का लगा रहता है तांता, आप भी करना चाहते है दर्शन, तो चले आए…
देहरादून – देहरादून और सहारनपुर बॉर्डर पर स्थित मां डाट काली मंदिर को मां काली के चमत्कारी शक्तिपीठ के रूप में जाना जाता है,जो कि माता सती के 9 शक्तिपीठों में से एक है और यही वजह है कि मां डाट काली मंदिर में प्रतिदिन श्रद्धालुओं का तांता लगा होता है और क्या है मां डाट काली की मान्यताएं देखिए हमारी ये स्पेशल रिपोर्ट…..!!!!!
जैसा कि आप जानते हैं कि इन दिनों नवरात्रि का त्यौहार है और ऐसे में श्रद्धालुओं का तांता मां डाट काली का आशीर्वाद लेने के लिए सुबह के वक्त से ही देखने को मिल रहा है और वैसे भी जब कोई व्यक्ति अपने जीवन में कुछ नया करने की शुरुआत करता है, या फिर नया वाहन खरीदता है तो वह डाट काली मंदिर जरूर आता है। शहर से सात किलोमीटर दूर स्थित इस मंदिर में प्रति दिन श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है। डाट काली मंदिर को मां काली के चमत्कारी शक्तिपीठ के रूप में जाना जाता है,जो कि माता सती के 9 शक्तिपीठों में से एक है
देहरादून और सहारनपुर बॉर्डर पर स्थित इस मंदिर में यूं तो हर दिन श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है,लेकिन शनिवार को मां डाटकाली को लाल फूल, लाल चुनरी और नारियल का भोग चढ़ाने का विशेष महत्व है। कहते हैं ऐसा करने से भक्तों की हर मनोकामना पूर्ण होती है। मंगलवार और गुरुवार सहित शनिवार को मां डाटकाली मंदिर में मां के भक्त विशाल भंडारे का आयोजन करते हैं। जब भी कोई व्यक्ति नया वाहन लेता है, तो वह सबसे पहले वाहन को लेकर विशेष पूजा अर्चना के लिए मां के दरबार में पहुंचता है
कहते हैं उनके वाहन में लगी मां की चुनरी हमेशा वाहन और वाहन चालक की सुरक्षा करती है। और यही वजह है कि मंदिर के पास अक्सर नई गाड़ियों की कतार लगी दिखती है। मां डाटकाली मंदिर के महंत दीपेश गोस्वामी कहते हैं कि मां डाट काली उत्तराखण्ड सहित पश्चिम उत्तर प्रदेश की ईष्ट देवी हैं। हर रोज मां के दर्शन के लिए सैकड़ों श्रद्धालु मंदिर में पहुंचते हैं और मां सबकी मनोकामना पूर्ण करती हैं
मंदिर के निर्माण की कहानी भी बेहद अद्भुत है।कहते हैं कि वर्ष 1804 में देहरादून-दिल्ली हाईवे पर सड़क निर्माण में लगी कार्यदायी संस्था सुरंग का निर्माण कर रही थी। लेकिन कंपनी दिन में जितनी सुरंग खोदती, तो रात को उतनी ही सुरंग टूट जाती थी। इससे वह परेशान हो गए। पहले मां डाट काली को मां घाठेवाली के नाम से जाना जाता था। कहते हैं कि मां घाठेवाली ने महंत के पूर्वजों के सपने में आकर सुरंग निर्माण स्थल पर उनकी मूर्ति स्थापना की बात कही थी। कार्यदायी संस्था ने ऐसा ही किया। इस तरह मां डाट काली का मंदिर अस्तित्व में आया।
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