भारत में शव को अंतिम यात्रा पर बांधकर ले जाने की प्रथा सदियों पुरानी है, जिसका धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व गहरा है। इस प्रथा को न केवल परंपरा के रूप में देखा जाता है, बल्कि इसके पीछे कई आध्यात्मिक और धार्मिक तर्क भी जुड़े हुए हैं।
आत्मा और शरीर का बंधन: हिंदू धर्म के अनुसार, मृत्यु के बाद आत्मा शरीर को छोड़ देती है, लेकिन मृत्यु के तुरंत बाद आत्मा और शरीर का बंधन पूरी तरह नहीं टूटता। इसलिए शव को बांधने का एक उद्देश्य यह होता है कि आत्मा के शरीर से जुड़े रहने की संभावना को समाप्त किया जा सके और शरीर का संतुलन बना रहे।
प्रेतात्माओं से सुरक्षा: धार्मिक मान्यता के अनुसार, मृत्यु के बाद शरीर में प्रेतात्मा या बुरी आत्माएं प्रवेश कर सकती हैं। शव को बांधकर ले जाने से बुरी ऊर्जा या आत्मा के शरीर पर प्रभाव डालने की संभावना कम होती है। यह सुनिश्चित करता है कि शव सुरक्षित रूप से श्मशान पहुंचे और अंतिम संस्कार बिना किसी बाधा के हो सके।
सम्मान और शांति का प्रतीक: शव को बांधना एक प्रकार का सम्मान और शांति का प्रतीक माना जाता है। यह दर्शाता है कि व्यक्ति की मृत्यु के बाद भी उनके प्रति सम्मान और देखभाल की जा रही है। इस प्रक्रिया से शव को अंतिम यात्रा पर शांति से भेजा जाता है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि उसे उचित सम्मान दिया जाए।
सांस्कृतिक परंपरा: यह प्रथा एक लंबी सांस्कृतिक परंपरा का हिस्सा है, जो समाज में पीढ़ियों से चली आ रही है। मान्यता है कि जब तक शरीर को उचित रूप से नहीं बांधा जाता, तब तक उसकी आत्मा को मोक्ष प्राप्त नहीं होता।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण: कुछ लोग इसे वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी देखते हैं। मृत्यु के बाद शरीर निष्क्रिय हो जाता है और उसे स्थिर रखना आवश्यक होता है। शव को बांधने से उसे स्थिरता मिलती है, जिससे श्मशान ले जाने में असुविधा नहीं होती।