Uttarakhand
उत्तराखंड का गौरवशाली इतिहास: पढ़िए ऋषि-मुनियों से लेकर आज तक की पूरी यात्रा..
उत्तराखंड का इतिहास: देवभूमि की गौरवशाली यात्रा और अनछुए रहस्य (History of Uttarakhand in Hindi)
उत्तराखंड, जिसे हम प्यार से ‘देवभूमि’ (ब्रह्मांड के देवताओं की भूमि) कहते हैं, केवल अपनी प्राकृतिक सुंदरता और बर्फीली चोटियों के लिए ही नहीं, बल्कि अपने हज़ारों साल पुराने गौरवशाली इतिहास के लिए भी विश्व प्रसिद्ध है। यदि आप History of Uttarakhand को गहराई से समझना चाहते हैं, तो आपको इसके पौराणिक काल से लेकर आधुनिक राज्य गठन के संघर्ष तक की यात्रा करनी होगी।
2025-26 के नए डिजिटल युग में, जहाँ पर्यटक और इतिहास प्रेमी प्रामाणिक जानकारी खोज रहे हैं, यह लेख आपको उत्तराखंड के उन पन्नों से रूबरू कराएगा जो आज भी हिमालय की कंदराओं में जीवंत हैं।
Table of Contents
History of Uttarakhand & Dynasty
1. पौराणिक काल: वेदों और पुराणों में उत्तराखंड
उत्तराखंड का इतिहास उतना ही पुराना है जितना कि मानव सभ्यता। हिंदू धर्मग्रंथों में इस क्षेत्र का वर्णन ‘केदारखंड’ (वर्तमान गढ़वाल) और ‘मानसखंड’ (वर्तमान कुमाऊं) के रूप में मिलता है।
- महाभारत काल: माना जाता है कि महर्षि व्यास ने इसी भूमि पर महाभारत की रचना की थी। पांडवों ने अपने स्वर्गारोहण के लिए इसी हिमालयी मार्ग को चुना था।
- ऋषियों की तपोभूमि: सप्तऋषियों से लेकर आदि शंकराचार्य तक, यह भूमि आध्यात्मिक चेतना का केंद्र रही है। ऋषिकेश और हरिद्वार को ‘मोक्ष के द्वार’ के रूप में प्राचीन काल से ही मान्यता प्राप्त है।
2. प्राचीन राजवंश: उत्तराखंड के पहले शासक
उत्तराखंड की राजनीतिक नींव प्राचीन राजवंशों द्वारा रखी गई थी। यहाँ के प्रमुख ऐतिहासिक शासनकाल निम्नलिखित हैं:
कुणिन्द राजवंश (Kuninda Dynasty)
यह उत्तराखंड पर शासन करने वाला पहला महत्वपूर्ण राजवंश माना जाता है। दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व में कुणिन्द शासकों का दबदबा था। उनके द्वारा जारी किए गए तांबे और चांदी के सिक्के आज भी इतिहासकारों के लिए शोध का विषय हैं।
कत्यूरी राजवंश (Katyuri Dynasty)
मध्यकाल के दौरान, कत्यूरी राजाओं ने उत्तराखंड को एक सूत्र में पिरोने का काम किया। इन्होंने अपनी राजधानी जोशीमठ से बाद में बैजनाथ (बागेश्वर) स्थानांतरित की।
- योगदान: उत्तराखंड के प्रसिद्ध मंदिर समूह, जैसे जागेश्वर और बैजनाथ, कत्यूरी वास्तुकला के बेजोड़ उदाहरण हैं।
3. मध्यकालीन इतिहास: चंद और पंवार वंश का उदय
मध्यकाल में उत्तराखंड दो प्रमुख हिस्सों में विभाजित हो गया: कुमाऊं में चंद वंश और गढ़वाल में पंवार (परमार) वंश।
| कालखंड | क्षेत्र | राजवंश | प्रमुख शासक |
| 700 – 1790 ई. | कुमाऊं | चंद राजवंश | सोम चंद, रुद्र चंद, बाज बहादुर चंद |
| 888 – 1949 ई. | गढ़वाल | पंवार राजवंश | कनकपाल, अजयपाल, सुदर्शन शाह |
अजयपाल का गढ़वाल एकीकरण
पंवार वंश के राजा अजयपाल को ‘गढ़वाल का अशोक’ कहा जाता है। उन्होंने 52 अलग-अलग गढ़ों (किलों) को जीतकर एक विशाल गढ़वाल राज्य की स्थापना की और श्रीनगर को अपनी राजधानी बनाया।
4. गोरखा शासन और ब्रिटिश काल: एक कठिन दौर
18वीं शताब्दी के अंत में, नेपाल के गोरखाओं ने कुमाऊं (1790) और फिर गढ़वाल (1804) पर आक्रमण कर अपना क्रूर शासन स्थापित किया, जिसे स्थानीय भाषा में ‘गोरख्याणी’ कहा जाता है।
संगौली की संधि (Treaty of Sagauli)
गोरखाओं के अत्याचारों से मुक्ति पाने के लिए राजा सुदर्शन शाह ने अंग्रेजों से मदद मांगी। 1815 में ब्रिटिश सेना और गोरखाओं के बीच युद्ध हुआ, जिसके बाद संगौली की संधि हुई। इसके परिणामस्वरूप:
- कुमाऊं और पूर्वी गढ़वाल अंग्रेजों के अधीन (ब्रिटिश गढ़वाल) आ गया।
- पश्चिमी गढ़वाल ‘टिहरी रियासत’ के रूप में राजा के पास रहा।
5. उत्तराखंड राज्य आंदोलन: बलिदान की गाथा
स्वतंत्रता के बाद, उत्तराखंड उत्तर प्रदेश का हिस्सा बना। लेकिन भौगोलिक विषमताओं और विकास की अनदेखी के कारण एक अलग राज्य की मांग उठने लगी।
- 1994 के आंदोलन: खटीमा, मसूरी और मुजफ्फरनगर (रामपुर तिराहा) कांड ने इस आंदोलन को और तेज कर दिया। महिलाओं और युवाओं ने इसमें बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।
- 9 नवंबर 2000: लंबे संघर्ष के बाद भारत के 27वें राज्य के रूप में ‘उत्तरांचल’ का गठन हुआ, जिसे 2007 में आधिकारिक रूप से ‘उत्तराखंड’ नाम दिया गया।
6. ऐतिहासिक पर्यटन स्थल जो आपको जरूर देखने चाहिए
यदि आप उत्तराखंड के इतिहास को करीब से देखना चाहते हैं, तो इन स्थानों की यात्रा अवश्य करें:
- कालसी (देहरादून): यहाँ सम्राट अशोक का शिलालेख है जो पाली भाषा में लिखा गया है।
- जागेश्वर धाम (अल्मोड़ा): 100 से अधिक मंदिरों का समूह जो कत्यूरी काल की याद दिलाता है।
- टिहरी बांध: पुरानी टिहरी का गौरवशाली इतिहास अब इस झील के नीचे समाहित है।
- बद्रिकाश्रम और केदारनाथ: आदि शंकराचार्य द्वारा पुनर्जीवित किए गए सनातन धर्म के स्तंभ।
क्यों खास है उत्तराखंड का इतिहास?
उत्तराखंड का इतिहास केवल राजाओं और युद्धों की कहानी नहीं है, बल्कि यह प्रकृति के साथ मनुष्य के सामंजस्य और अपनी पहचान के लिए किए गए संघर्ष की मिसाल है। History of Uttarakhand in Hindi को पढ़ना हमें अपनी जड़ों से जोड़ता है।
2025 में, जब हम एक विकसित उत्तराखंड की ओर बढ़ रहे हैं, हमें अपनी ऐतिहासिक धरोहरों को संजोने की आवश्यकता है। यह भूमि न केवल तीर्थयात्रियों के लिए है, बल्कि उन शोधकर्ताओं के लिए भी है जो प्राचीन वास्तुकला और हिमालयी संस्कृति को समझना चाहते हैं।
2025-26 अपडेटेड : उत्तराखंड के इतिहास से जुड़े महत्वपूर्ण FAQs
1. उत्तराखंड का प्राचीन नाम क्या है?
पौराणिक ग्रंथों और वेदों में उत्तराखंड के दो प्रमुख भाग बताए गए हैं। गढ़वाल क्षेत्र को ‘केदारखंड’ और कुमाऊं क्षेत्र को ‘मानसखंड’ के नाम से जाना जाता था। पूरे क्षेत्र को संयुक्त रूप से ‘ब्रह्मपुर’ या ‘खसदेश’ भी कहा गया है।
2. उत्तराखंड राज्य का गठन कब हुआ?
उत्तराखंड राज्य का गठन 9 नवंबर 2000 को हुआ था। यह भारत का 27वां राज्य बना। शुरुआत में इसका नाम ‘उत्तरांचल’ था, जिसे 1 जनवरी 2007 को बदलकर ‘उत्तराखंड’ कर दिया गया।
3. गढ़वाल के 52 गढ़ों को किसने एकीकृत किया था?
गढ़वाल के छोटे-छोटे 52 गढ़ों (किलों) को पंवार वंश के 37वें राजा अजयपाल ने 14वीं शताब्दी के अंत में जीतकर एक अखंड गढ़वाल राज्य की स्थापना की थी। इसी कारण उन्हें ‘गढ़वाल का अशोक’ कहा जाता है।
4. उत्तराखंड में ‘गोरख्याणी’ शासन क्या था?
1790 (कुमाऊं) और 1804 (गढ़वाल) में नेपाल के गोरखाओं ने इस क्षेत्र पर अधिकार कर लिया था। उनके शासनकाल को स्थानीय लोग ‘गोरख्याणी’ कहते हैं, जो अपने कठोर करों और दमनकारी नीतियों के कारण अत्यंत क्रूर माना जाता था।
5. चिपको आंदोलन (Chipko Movement) का इतिहास क्या है?
यह उत्तराखंड का एक विश्व प्रसिद्ध पर्यावरण संरक्षण आंदोलन है। इसकी शुरुआत 1973 में चमोली जिले के ‘रेणी गांव’ से हुई थी। गौरा देवी के नेतृत्व में महिलाओं ने पेड़ों को कटने से बचाने के लिए उनसे चिपक कर विरोध प्रदर्शन किया था।
6. उत्तराखंड की पहली राजधानी कहाँ थी?
प्राचीन काल में कत्यूरी राजवंश की राजधानी जोशीमठ थी, जिसे बाद में कत्यूर घाटी (बैजनाथ) स्थानांतरित किया गया। मध्यकाल में कुमाऊं की राजधानी अल्मोड़ा और गढ़वाल की राजधानी श्रीनगर रही। वर्तमान में देहरादून इसकी शीतकालीन और गैरसैंण ग्रीष्मकालीन राजधानी है।
7. कुमाऊं में चंद राजवंश की स्थापना किसने की थी?
इतिहासकारों के अनुसार, कुमाऊं में चंद वंश की नींव सोम चंद ने रखी थी। इस राजवंश ने कुमाऊं में कला, संस्कृति और हिंदू धर्म के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
8. संगौली की संधि (Treaty of Sagauli) क्या थी?
यह संधि 1815 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और नेपाल के गोरखा राजा के बीच हुई थी। इस संधि के बाद गोरखाओं को उत्तराखंड छोड़ना पड़ा और यहाँ ब्रिटिश शासन (ब्रिटिश गढ़वाल/कुमाऊं) व टिहरी रियासत का उदय हुआ।