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उत्तराखंड की राजनीति में कुमाऊं के नेता का जलवा, तीन बार संभाली कमान,बनाया रिकॉर्ड।
नैनीताल – नौ नवंबर 2000 को नए राज्य का गठन हुआ, तब से अब तक का राज्य में राजनीतिक सफर भारी उथल-पुथल भरा रहा। हालांकि यहां केवल भाजपा और कांग्रेस की ही सरकारें रही हैं, वह भी बारी-बारी से। केवल 2022 के चुनावों में मिथक टूटा, सत्ताधारी दल भाजपा बहुमत से चुनाव जीती और सत्ता में लगातार बनी रही। बात चाहे भाजपा की हो या कांग्रेस की, दोनों ही कुमाऊं और गढ़वाल के बीच संतुलन साधने की कोशिश में रहते हैं। इसके बावजूद सत्ता और सियासत में कुमाऊं का दबदबा बना हुआ है।
कुमाऊं से भगत सिंह कोश्यारी ऐसे पहले राजनेता रहे जो मुख्यमंत्री बने। इसके बाद नारायण दत्त तिवारी, विजय बहुगुणा और हरीश रावत ने इस पद को सुशोभित किया। अब युवा चेहरा पुष्कर सिंह धामी के हाथ में प्रदेश की बागडोर है। विजय बहुगुणा भले ही गढ़वाल क्षेत्र से हैं मगर वह कुमाऊं के सितारगंज से चुनाव जीतकर विधानसभा में पहुंचे थे।
कुुमाऊं के मतदाताओं का ही प्यार रहा कि उनके परिवार का अब तक सितारगंज से जुड़ाव है और उनके बेटे सौरभ बहुगुणा यहां से न सिर्फ विधायक हैं बल्कि मंत्री भी हैं। इस तरह प्रदेश की सियासत और सत्ता में कुमाऊं की धमक को माना जा सकता है।
भाजपा के दस प्रदेश अध्यक्षों में से छह कुमाऊं से रहे
हालांकि भाजपा और कांग्रेस हमेशा मुख्यमंत्री, पार्टी अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष के मामले में कुमाऊं गढ़वाल में संतुलन बनाते रहे हैं लेकिन कुछ अवसर ऐसे भी रहे जब दोनों ही पद कुमाऊं में रहे। 2002 में जब नारायण दत्त तिवारी मुख्यमंत्री बने तो हरीश रावत पार्टी अध्यक्ष रहे। 2015 से 2017 तक अजय भट्ट पार्टी अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष दोनों पदों पर रहे। इंदिरा हृदेश भी नेता प्रतिपक्ष रहीं।