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One Nation One Election: लोकसभा में पेश हुआ ‘एक देश, एक चुनाव’ विधेयक, जानें कब और कैसे लागू होगा यह प्रस्ताव ?

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नई दिल्ली: मंगलवार को लोकसभा में ‘एक देश, एक चुनाव’ विधेयक पेश किया गया, जिसे कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने सदन के पटल पर रखा। इस विधेयक के पेश होने के बाद, प्रमुख विपक्षी दलों जैसे कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और तृणमूल कांग्रेस ने इसका विरोध किया। इससे पहले केंद्रीय मंत्रिमंडल ने इस विधेयक को मंजूरी दे दी थी।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2019 में स्वतंत्रता दिवस पर इस प्रस्ताव को पहली बार उठाया था, जिसके बाद यह मुद्दा कई बार चर्चा का विषय बना। प्रधानमंत्री का कहना था कि देश के एकीकरण की प्रक्रिया निरंतर जारी रहनी चाहिए और ‘एक देश, एक चुनाव’ इससे मदद करेगा।

‘एक देश, एक चुनाव’ क्या है?

‘एक देश, एक चुनाव’ प्रस्ताव का उद्देश्य यह है कि पूरे देश में लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक ही समय पर कराए जाएं। वर्तमान में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव अलग-अलग समय पर होते हैं। इसके लिए भारतीय संविधान में विभिन्न प्रावधान किए गए हैं, जो राज्यों की विधानसभा के चुनाव की समय सीमा तय करते हैं। हालांकि, कुछ राज्यों में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ होते हैं, जैसे अरुणाचल प्रदेश, आंध्र प्रदेश, ओडिशा, और सिक्किम में।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा इस योजना के लंबे समय से समर्थक रहे हैं, और उनका मानना है कि इससे चुनावी खर्च कम होगा और प्रशासनिक संसाधनों का बेहतर उपयोग किया जा सकेगा।

एक देश, एक चुनाव की बहस क्यों शुरू हुई?

‘एक देश, एक चुनाव’ पर बहस 2018 में विधि आयोग की एक मसौदा रिपोर्ट के बाद शुरू हुई, जिसमें चुनावी खर्च की चिंता जताई गई थी। रिपोर्ट के मुताबिक, 2014 के लोकसभा चुनावों के खर्च और बाद में हुए विधानसभा चुनावों का खर्च समान था, लेकिन एक साथ चुनाव होने पर इस खर्च को 50:50 के अनुपात में बांटा जा सकता है।

विधि आयोग ने बताया कि 1967 के बाद से एक साथ चुनावों की प्रक्रिया टूट गई, क्योंकि राज्यों में समय-समय पर सरकारों के अस्थिर होने और कुछ राज्यों के विधानसभाओं के भंग होने के कारण यह व्यवस्था बाधित हुई।

पहले कब हुए थे एक साथ चुनाव?

भारत में पहला एक साथ चुनाव 1951-52 में हुआ था, जब लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ हुए थे। इसके बाद 1957, 1962 और 1967 में भी एक साथ चुनाव कराए गए। 1968-69 के बाद से यह प्रक्रिया टूट गई, और राज्यों के चुनाव अलग-अलग समय पर होने लगे।

‘एक देश, एक चुनाव’ को लागू कैसे किया जाएगा?

इस प्रस्ताव को लागू करने के लिए संविधान में कुछ संशोधन करने होंगे। इसमें संसद के कार्यकाल, राज्यों की विधानसभाओं के कार्यकाल, और राष्ट्रपति शासन की धाराओं को संशोधित करना होगा। इसके लिए राज्यों की सहमति भी जरूरी होगी।

चुनाव आयोग का क्या कहना है?

चुनाव आयोग ने कहा है कि वह एक साथ लोकसभा और विधानसभा चुनाव करवा सकता है, लेकिन इसके लिए कई प्रशासनिक व्यवस्थाओं और व्यवधानों को हल करना होगा। मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने कहा कि आयोग इस प्रक्रिया को संभालने के लिए तैयार है, लेकिन यह विधायिका का निर्णय है।

कोविंद समिति की सिफारिशें

कोविंद समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि एक साथ चुनाव को दो चरणों में लागू किया जाएगा। पहले चरण में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जाएंगे, और दूसरे चरण में स्थानीय निकाय चुनाव किए जाएंगे। समिति ने कहा कि इसके लिए एक समान मतदाता सूची बनाई जाएगी और पूरे देश में चर्चा की जाएगी।

सरकार और विपक्ष का रुख

‘एक देश, एक चुनाव’ भाजपा का चुनावी एजेंडा रहा है, और इसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने संसद में पेश किया है। प्रधानमंत्री ने स्वतंत्रता दिवस पर इस पर चर्चा करने की अपील की थी।

वहीं, विपक्षी दलों ने इसका विरोध किया है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा है कि लोकतंत्र में ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ लागू नहीं हो सकता। उनका तर्क है कि चुनावों की स्वतंत्रता और आवश्यकता लोकतंत्र के जीवित रहने के लिए जरूरी है।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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