चम्पावत : उत्तराखंड, जिसे देवों की भूमि कहा जाता है, अपनी दिव्य और धार्मिक स्थलों के लिए प्रसिद्ध है। इस भूमि पर स्थित एक प्रमुख तीर्थ स्थल है पूर्णागिरी धाम, जो चंपावत जिले के टनकपुर से लगभग 17 किमी दूर, अन्नपूर्णा पहाड़ी पर स्थित यह धाम समुद्र तल से 3000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और यहां की प्राकृतिक सुंदरता और शीतल हवा भक्तों को आस्था के साथ शांति का अनुभव कराती है।
पूर्णागिरी धाम का धार्मिक महत्व
पूर्णागिरी धाम को देवी सती के 108 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। मान्यता है कि यहां देवी सती की नाभि गिरी थी, जब भगवान शिव के अपमान से क्रोधित होकर माता सती ने स्वयं को यज्ञ की अग्नि में समर्पित कर दिया था। भगवान विष्णु ने उनके शरीर को 108 टुकड़ों में विभक्त कर दिया और जिन स्थानों पर ये भाग गिरे, वहां शक्तिपीठों की स्थापना हुई। पूर्णागिरी में देवी सती का नाभि भाग गिरने से यह स्थल शक्तिपीठ बन गया।
मंदिर का इतिहास
समवत 1632 में, श्रीचंद तिवारी को एक सपना आया, जिसमें मां पूर्णागिरी ने उन्हें मंदिर निर्माण का आदेश दिया। तब से यहां पूजा-अर्चना की परंपरा शुरू हुई। आज भी, इस मंदिर में आने वाले भक्तों की हर मनोकामना पूरी होती है।
यात्रा मार्ग
पूर्णागिरी धाम तक पहुंचने के लिए श्रद्धालुओं को टनकपुर रेलवे स्टेशन से टैक्सी या निजी वाहन का सहारा लेना पड़ता है। इसके बाद, उन्हें एक तीन किमी की खड़ी चढ़ाई पार करनी होती है। इससे पहले, भक्त भैरव बाबा के दर्शन करते हैं, जिन्हें मां का द्वारपाल माना जाता है।
पहला पड़ाव ठूलीगाड़ है, जहां श्रद्धालु पवित्र शारदा नदी में स्नान करने के बाद यात्रा शुरू करते हैं। इसके बाद सिद्धबाबा के दर्शन करने के बाद ही यात्रा को पूरा माना जाता है।
नवरात्रि के दौरान विशेष महत्व
नवरात्रि के समय, पूर्णागिरी धाम में भक्तों की भारी भीड़ जमा होती है, क्योंकि यहां देवी की पूजा का विशेष महत्व होता है। भक्तों का मानना है कि मां की कृपा से हर दुख और समस्या का समाधान हो जाता है।