नई दिल्ली – गलत उपचार से मौत पर सरकार ने झोलाछाप और लाइसेंसशुदा डॉक्टरों के लिए अलग-अलग सजा का प्रावधान किया है। एक जुलाई से लागू हो रही भारतीय न्याय संहिता में पंजीकृत डॉक्टर की तुलना में झोलाछाप के खिलाफ कठोर सजा का प्रावधान है। गलत इलाज से मरीज की मौत पर झोलाछाप को पांच साल की सजा और लाइसेंस प्राप्त डॉक्टर को दो साल की कैद व जुर्माने का प्रावधान है। स्वास्थ्य महानिदेशक डॉ. अतुल गोयल ने राज्य के मुख्य सचिवों को लिखे पत्र में कहा है, भारतीय न्याय संहिता-2023 की धारा 106 में, उपचार में लापरवाही से मौत पर पंजीकृत डॉक्टर के खिलाफ दो साल की कैद और उचित जुर्माने का प्रावधान है। यह सजा उन मामलों में बढ़कर पांच साल हो सकती है, जो पंजीकृत डॉक्टर नहीं हैं। इन नियमों की जानकारी सभी स्वास्थ्य कर्मियों को अनिवार्य रूप से दी जाए।
अभी आईपीसी की धारा 304 के तहत गलत इलाज से मरीज की मौत होने पर अधिकतम दो वर्ष कैद और जुर्माने का प्रावधान है। दिल्ली मेडिकल काउंसिल (डीएमसी) का मानना है कि झोलाछाप प्रैक्टिस हर राज्य में देखने को मिल रही है। दिल्ली में ही साल 2023 में 10 क्लीनिक पर कार्रवाई की गई थी। 2023 में ही गुरुग्राम में तीन माह के दौरान 30 ऐसे अस्पतालों की पहचान की जहां, 12वीं पास मरीजों का इलाज कर रहे थे और ये अस्पताल बीमा कंपनियों के पैनल पर भी थे।
ग्रामीण इलाकों में 70% झोलाछाप
मेडिकल जर्नल बीएमजे के एक अध्ययन के मुताबिक, भारत में झोलाछाप या अयोग्य डॉक्टरों की संख्या के अनुमान के लिए राष्ट्रीय स्तर पर कोई सर्वेक्षण नहीं हुआ है। हालांकि, क्षेत्रीय स्तर पर चिकित्सा संगठन या गैर सरकारी संगठनों के सर्वे बताते हैंै कि ग्रामीण भारत में इलाज करने वाले 70 फीसदी के पास आधिकारिक डिग्री नहीं है।
फेडरेशन ऑफ रेजिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन (फोर्डा) के अध्यक्ष डॉ. अविरल माथुर का कहना है, नीम-हकीम गलती पर भी कानूनी सजा से बचते रहे हैं। राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग अधिनियम के खंड 34 के तहत बिना पंजीयन चिकित्सा प्रैक्टिस करना दंडनीय अपराध है।
नए कानून में स्पष्ट अंतर : आईएमए
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के उपाध्यक्ष डॉ. जयेश लेले ने कहा कि लाइसेंसशुदा डॉक्टर और झोलाछाप के अंतर को स्पष्ट करना बहुत जरूरी था। झोलाछाप मरीज की मौत जैसे गंभीर मामलों में कठोर सजा से आसानी से बच जाते थे।