देहरादून: उत्तराखंड में पंचायतों के कार्यकाल की समाप्ति के बाद राज्य सरकार की दोहरी नीति पर सवाल खड़े हो गए हैं। जहां जिला पंचायतों के निवर्तमान अध्यक्षों को कार्यकाल समाप्त होते ही प्रशासक बना दिया गया, वहीं ब्लॉक प्रमुख और ग्राम प्रधानों को बाहर का रास्ता दिखाकर सरकारी अधिकारियों को प्रशासक नियुक्त किया गया। यह पहली बार हुआ है जब जिला पंचायतों के अध्यक्षों को ही प्रशासक के रूप में नियुक्त किया गया है।
पंचायतीराज मंत्री सतपाल महाराज पर सवाल उठाते हुए यह आरोप लगाया जा रहा है कि यह भेदभावपूर्ण निर्णय है। सवाल यह उठता है कि आखिर ब्लॉक प्रमुखों और ग्राम प्रधानों ने क्या गुनाह किया था, जो उन्हें प्रशासक नहीं बनाया गया, जबकि जिला पंचायत अध्यक्षों को कार्यकाल समाप्त होते ही प्रशासक बना दिया गया।
राजनीतिक और सामाजिक हलकों में चर्चा है कि अगर चुनाव समय पर नहीं हो पाए तो राज्य सरकार को सभी स्तरों के अधिकारियों को प्रशासक नियुक्त करना चाहिए था, न कि केवल जिला पंचायत अध्यक्षों को ही यह जिम्मेदारी दी जाती। पंचायतों में यह असमानता और भेदभाव सरकार के निर्णय पर सवालिया निशान लगा रहे हैं।
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