नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने ‘बुलडोजर न्याय’ पर अहम और ऐतिहासिक फैसला सुनाया है, जिसमें उसने कहा कि यदि कोई राज्य सरकार किसी व्यक्ति का घर केवल इस आधार पर गिरा देती है कि वह आरोपी है, तो यह कानून के शासन का उल्लंघन है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि ‘कार्यपालिका’ को ‘न्यायपालिका’ की जगह नहीं लेना चाहिए और कानून के अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिए जिम्मेदार अधिकारियों को जवाबदेह ठहराया जाएगा।
मुख्य बातें:
- कानून के शासन का उल्लंघन: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि कार्यपालिका केवल आरोप के आधार पर किसी व्यक्ति का घर ध्वस्त करती है, तो यह संविधान और कानून के मूल सिद्धांतों का उल्लंघन है।
- दोषी ठहराए जाने से पहले कोई कार्रवाई नहीं: कोर्ट ने स्पष्ट किया कि आरोपी को मुकदमा चलाए बिना दंडित नहीं किया जा सकता। यदि व्यक्ति दोषी नहीं है, तो उसकी संपत्ति को नष्ट करना असंवैधानिक है।
- न्यायपालिका की जगह कार्यपालिका नहीं ले सकती: जस्टिस बीआर गवई ने कहा कि न्यायिक कार्य केवल न्यायपालिका को सौंपे गए हैं, और कार्यपालिका को किसी आरोपी की संपत्ति ध्वस्त करने का अधिकार नहीं है। यह कार्य न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में आता है।
- अधिकारों का उल्लंघन और प्रतिपूर्ति: अदालत ने कहा कि अगर राज्य अपने अधिकारों का दुरुपयोग करता है और किसी आरोपी/दोषी के अधिकारों का उल्लंघन करता है, तो प्रतिपूर्ति दी जानी चाहिए। साथ ही, राज्य और उसके अधिकारी अत्यधिक और मनमानी कार्रवाई करने से बचें।
- घर और आश्रय का मौलिक अधिकार: सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी कहा कि हर नागरिक को अपना घर और आश्रय प्राप्त करने का मौलिक अधिकार है, जैसा कि संविधान के अनुच्छेद 19 में उल्लेखित है। किसी भी स्थिति में इसे छीनना असंवैधानिक होगा।
- समय की महत्ता: कोर्ट ने कहा कि किसी भी ध्वस्तीकरण कार्रवाई से पहले लोगों को पर्याप्त समय देना चाहिए, ताकि वे इस पर आपत्ति उठा सकें या न्यायालय में इसे चुनौती दे सकें। यह नागरिकों के अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए जरूरी है।
सुप्रीम कोर्ट का बयान: जस्टिस बीआर गवई ने कहा, “एक घर होना हर व्यक्ति का सपना है, और यह एक ऐसी लालसा है जो कभी खत्म नहीं होती। विशेषकर महिलाओं और बच्चों को बेघर होते देखना किसी भी समाज में सुखद दृश्य नहीं है।” उन्होंने यह भी कहा कि अगर कार्यपालिका कानून के दुरुपयोग के साथ किसी घर को गिराती है, तो इस पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी।
अदालत ने ‘बुलडोजर न्याय’ की कड़ी निंदा करते हुए कहा कि राज्य या उसके अधिकारी बिना उचित प्रक्रिया और न्यायिक आदेश के किसी के घर को नहीं गिरा सकते। इससे संविधान की मूल भावनाओं और नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होता है।
क्या है ‘बुलडोजर न्याय’ का मुद्दा? ‘बुलडोजर न्याय’ उस प्रक्रिया को कहा जाता है, जहां राज्य सरकारें बिना उचित कानूनी प्रक्रिया के आरोपियों के घरों और संपत्तियों को ध्वस्त करती हैं, ताकि उन्हें सजा दी जा सके। यह अक्सर राजनीतिक रूप से संवेदनशील मामलों में देखा जाता है, जहाँ आरोपियों के घरों को केवल आरोपों के आधार पर गिराया जाता है, जबकि अदालत द्वारा दोषी ठहराए जाने से पहले ही यह कार्रवाई की जाती है।
सुप्रीम कोर्ट का आदेश: सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रकार की कार्रवाई को पूरी तरह से असंवैधानिक और न्यायिक प्रक्रिया का उल्लंघन बताया। कोर्ट ने कहा कि किसी व्यक्ति के घर को सिर्फ इस आधार पर गिराना कि वह आरोपी है, यह न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है। अदालत ने राज्य और उसके अधिकारियों को चेतावनी दी कि वे कानून का पालन करें और किसी भी कार्रवाई से पहले न्यायिक आदेश प्राप्त करें।
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