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पत्नी को जिंदा जलाने वाले आरोपी पति को हाईकोर्ट से नहीं मिली राहत, आजीवन कारावास की सजा रहेगी बरकरार।

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जबलपुर – गर्भवती पत्नी पर पेट्रोल डालकर उसे जिंदा जलाने वाले आरोपी पति को हाईकोर्ट से राहत नहीं मिली है। हाईकोर्ट जस्टिस सुजय पाल तथा जस्टिस बीके द्विवेदी की युगलपीठ ने अपने आदेश में कहा है कि बहुत क्रूर व बर्बर तरीके से घटना को अंजाम दिया है। युगलपीठ ने आरोपी के आजीवन कारावास की सजा को बरकरार रखा है।

ब्यौहारी-शहडोल निवासी अपीलकर्ता राजेश्वर उर्फ पप्पू की तरफ से दायर याचिका में कहा गया था कि उसे गर्भवती पत्नी की हत्या के आरोप में न्यायालय ने दिसंबर 2014 को आजीवन कारावास की सजा से दंडित किया है। अभियोजन की कहानी के अनुसार उसकी पत्नी शशि तिवारी सात-आठ माह की गर्भवती थी। अपने मायके में रहने गई हुई थी। वह 2 मई 2011 की सुबह अपनी ससुराल गया और पत्नी को साथ चलने के लिए मजबूर करते हुए लड़ने लगा। उसके सास-ससुर भी कमरे में आ गए। इसके बाद वह बाहर चला गया। इसके बाद वह कमरे से बाहर चला गया और मोटरसाइकिल से बोतल में पेट्रोल निकालकर लाया और पत्नी पर डालकर आग दी। पत्नी को बचाने में उसके ससुर के हाथ जल गए थे।

बचाव में ये रखे तर्क
याचिकाकर्ता की तरफ से युगलपीठ को बताया गया कि अभियोजन के अनुसार महिला शत-प्रतिशत जल गई थी। अस्पताल में उसके मृत्यु पूर्व बयान डॉक्टर ने दर्ज करते हुए अंगूठे का निशान लगवाया था। पोस्टमार्टम रिपोट में अंगूठे में स्याही होने का कोई उल्लेख नहीं है। अभियोजन के अनुसार बेटी को बचाते समय पिता के हाथ जल गए थे, परंतु कोई एमएलसी रिपोर्ट नहीं है। इसके अलावा महिला मृत्यु पूर्व बयान देने की स्थिति में नहीं थी। इतना ही नहीं, महिला के माता-पिता के बयान में भी विरोधाभासी हैं।

कोर्ट ने सजा बरकरार रखी
युगलपीठ ने सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का हवाला देते हुए अपने आदेश में कहा है कि साक्ष्य अधिनियम में मृत्युपूर्व बयान दर्ज करने का कोई प्रारूप निर्धारित नहीं है। इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने भी इस संबंध में कोई दिशा-निर्देश जारी नहीं किए हैं। न्यायालय के पास ऐसा मानने का कारण नहीं है कि ऐसा माना जाए कि याचिकाकर्ता ने आवेश में आकर घटना को अंजाम दिया है। युगलपीठ के जिला न्यायालय के आदेश को सही करार देते हुए सजा को बरकरार रखा है।

 

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