नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर यह स्पष्ट किया है कि वैवाहिक विवाद में पत्नी को दिया जाने वाला गुजारा भत्ता पति के लिए सजा जैसा नहीं होना चाहिए। अदालतों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि पत्नी को उचित जीवन जीने का अवसर मिले, लेकिन इस दौरान पति की आर्थिक स्थिति और अन्य पहलुओं का भी ध्यान रखा जाए।
कोर्ट ने 2020 के दिशानिर्देशों को फिर से दर्ज किया
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस विक्रम नाथ और प्रसन्ना बी वराले की बेंच ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण फैसले में देशभर की अदालतों को 2020 में आए ‘रजनेश बनाम नेहा’ फैसले के आधार पर काम करने की सलाह दी। इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस इंदु मल्होत्रा और सुभाष रेड्डी की बेंच ने गुजारा भत्ता मामले में 8 दिशानिर्देश दिए थे। सुप्रीम कोर्ट ने अब इन्हीं दिशानिर्देशों को अपने ताजे फैसले में फिर से स्थान दिया है।
गुजारा राशि तय करते समय इन बिंदुओं पर ध्यान दें
सुप्रीम कोर्ट ने तलाक के समय गुजारा राशि तय करते समय अदालतों को 8 महत्वपूर्ण बातों पर विचार करने की सलाह दी है, जिनमें शामिल हैं:
पति और पत्नी की सामाजिक-आर्थिक स्थिति
पत्नी और बच्चों के भविष्य से जुड़ी बुनियादी जरूरतें
दोनों पक्षों की शैक्षिक योग्यता और रोजगार
आय के साधन और संपत्ति
ससुराल में पत्नी का जीवन स्तर
क्या पत्नी ने परिवार का ध्यान रखने के लिए नौकरी छोड़ दी थी
पत्नी की आमदनी न होने पर कानूनी लड़ाई के लिए उचित खर्च
पति की आर्थिक स्थिति और जिम्मेदारियों पर मेंटनेंस राशि का असर
स्थायी फॉर्मूला नहीं, हर मामले के तथ्यों के आधार पर निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यह 8 बातें एक स्थायी फॉर्मूला नहीं हैं, और प्रत्येक मामले के तथ्यों के आधार पर अदालतें निर्णय ले सकती हैं। इस फैसले में कोर्ट ने 10 दिसंबर को ‘मनीष कुमार जैन बनाम अंजू जैन’ केस का हवाला देते हुए दोनों पक्षों की आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए 5 करोड़ रुपए की स्थायी एलिमनी राशि तय की।