उत्तराखंड को देवभूमि यूहीं नहीं कहा जाता यहाँ पर कण-कण में देवी-देवतओं का वास है, जी आज हम बात कर रहें है देहरादून से लगभग 175 km दूर हिमांचल और देहरादून की सीमा पर स्थित प्राचीन मंदिर महासू देवता मंदिर जहाँ दूर दराज़ से सैकड़ो भक्त अपनी मनोकामनाए लेकर आते है और वहां से अपनी मुराद पूरी करके जाते है वैसे तो ये इस प्राचीन मंदिर की कई मान्यताये है लेकिन आज उन्ही कुछ मान्यताओ के आपको बताते है..
उत्तराखंड के चकराता ब्लॉक के हनोल में स्थित महासू देवता का मंदिर, अनूठी मान्यता और श्रद्धा का केंद्र है। यह मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का स्थल है, बल्कि यहां की अनोखी परंपराएं भक्तों को आकर्षित करती हैं।
एक अनूठी मान्यता
इस मंदिर में पूजन के निर्धारित विधान नहीं हैं। भक्तों को अपनी मनोकामना सिद्ध करने के लिए केवल एक रात मंदिर परिसर में बितानी होती है। यह मान्यता है कि यहां एक रात बिताने से भक्त की इच्छाएँ पूर्ण होती हैं। दूर-दूर से श्रद्धालु रात बिताने के लिए आते हैं और अपनी इच्छा महासू महाराज के समक्ष प्रकट करते हैं।
इतिहास का झरोखा
महासू देवता मंदिर का निर्माण 11वीं से 12वीं सदी के बीच हूण राजवंश के पंडित मिहिरकुल ने किया था। किंतु, यह भी कहा जाता है कि महासू महाराज की अराधना सतयुग से ही की जा रही है। महासू देवता भगवान शिव के ही रूप माने जाते हैं और बासिक, पबासिंक, बौठा और चालदा के रूप में पूजे जाते हैं।
जागरण की प्रथा
यहां रात बिताने का मतलब केवल जागरण होता है। भक्तों को कंबल मंदिर समिति द्वारा प्रदान किया जाता है। हालांकि, खानपान पर कोई वर्जना नहीं होती। कुछ भक्त सुबह स्नान के बाद आटे, घी और चीनी से प्रसाद बनाते हैं और फिर मंदिर के गर्भगृह से निकले पवित्र जल को प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं।
गणेश और शिव की कथा
महासू देवता मंदिर की प्रथा का एक दिलचस्प पहलू है भगवान गणेश और शिव की कहानी। कहा जाता है कि जब माता पार्वती ने गणेश का निर्माण किया और शिव से द्वार पर रोका, तब दोनों के बीच युद्ध हुआ। शिव ने त्रिशूल से गणेश का मस्तक काट दिया। बाद में, शिव ने गणेश को गज शीश देकर पुनर्जीवित किया। रातभर देवी-देवताओं का जागरण हुआ, और तभी से महासू मंदिर में रात बिताने की प्रथा शुरू हुई।
जागड़ा पर्व
हरितालिका तीज के साथ यहां जागड़ा पर्व की शुरुआत होती है। यह पर्व भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को होता है और गणेश चतुर्थी तक चलता है। इस अवसर पर मंदिर में करीब 20 हजार श्रद्धालु जुटते हैं, जिनमें से 5 से 6 हजार भक्त रात भी बिताते हैं।
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