Uttarakhand

श्रीराम की लीलाओं से जुड़ी दुनिया की सबसे प्राचीन नृत्य नाटिका, रामायण के प्रसंगों को लोक शैली में किया जाता है प्रस्तुत; लोगों के हृदय में बसा।

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चमोली – अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा होने के साथ ही 500 वर्षों का इंतजार खत्म हो गया है। रामलला राम मंदिर के गर्भगृह में विराजमान हो गए हैं। इसी के साथ आज आपको बताते हैं भगवान श्रीराम की लीलाओं से जुड़ी दुनिया की सबसे प्राचीन नृत्य नाटिका से।

भगवान श्रीराम की लीलाओं से जुड़ी दुनिया की सबसे प्राचीन नृत्य नाटिका रम्माण चमोली जिले के लोगों के हृदय में रचा-बसा है। यूनेस्को की ओर से रम्माण को विश्व धरोहर वर्ड हेरिटेज घोषित किया गया है। राम कथा से जुड़ी नृत्य नाटिका रम्माण चमोली जिले के सलूड डुंग्रा गांव में प्राचीन काल से निरंतर आयोजित हो रहा है।

इसमें रामायण के प्रसंगों को लोक शैली में प्रस्तुत किया जाता है। भगवान राम की लीलाओं के कारण रम्माण भारत ही नहीं पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। रम्माण को विश्व धरोहर तक की यात्रा में शामिल करने वाले सलूडडुंग्रा रहने वाले और वरिष्ठ शिक्षक डॉ. कुशल भंडारी कहते हैं कि रम्माण भगवान राम के जीवन से जुड़ी कथा का आत्मीय रिश्ता है। उत्तराखंड की संस्कृति के जानकार व लेखक संजय चौहान कहते हैं कि रम्माण का सांस्कृतिक विरासत का इतिहास 5 वीं सदी पुराना है।

गोपेश्वर के समाजसेवी क्रांति भट्ट कहते हैं कि इसका आयोजन सलूड डुंग्रा (पैनखंडा), जोशीमठ, चमोली में प्रत्येक वर्ष बैशाख माह (अप्रैल) में होता है। झांझर, मंजीरे, भंकोर, व ढोल दमाऊं की थाप पर पारंपरिक नृत्य किया जाता है। परिधान घाघरा, चूड़ीदार पायजामा, रेशमी साफे होते हैं। इसमें 18 मुखौटे, 18 ताल, 12 ढोल, 12 दमाऊं, 8 भौकरे होते हैं। विशेष चरित्र भगवान श्रीराम, सीता माता, लक्ष्मण, हनुमान के होते हैं।

यह मुखौटा नृत्य है और इसे 2 अक्तूबर 2009 को विश्व सांस्कृतिक धरोहर घोषित किया गया। रम्माण को विश्व धरोहर बनाने में डॉ. कुशलसिंह भंडारी, प्रो. डीआर पुरोहित पूर्व निदेशक गढ़वाल विवि सहित विभिन्न लोगों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।

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