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कहां शुरू कहां खतम: डेब्यू फिल्म में ध्वनि भानुशाली का धमाल, पढ़िए लक्ष्मण का कैसा लगा निशाना!

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Movie Review – कहां शुरू कहां खतम
कलाकार – ध्वनि भानुशाली , आशिम गुलाटी , सुप्रिया पिलगांवकर , राजेश शर्मा , अखिलेंद्र मिश्रा , विक्रम कोचर , राकेश बेदी और गौरव मनवानी आदि
लेखक – लक्ष्मण उतेकर और ऋषि विरमानी
निर्देशक – सौरभ दासगुप्ता
निर्माता – लक्ष्मण उतेकर और विनोद भानुशाली
जिगर चाहिए हिंदी सिनेमा में अपनी बेटी को हीरोइन बनाकर उतारने के लिए। शाहरुख खान ये काम फिल्म ‘किंग’ में करने जा रहे हैं अपनी बेटी सुहाना के लिए, उनसे पहले ऑडियो किंग गुलशन कुमार के राइट हैंड मैन रहे विनोद भानुशाली ने यही काम अपनी बेटी ध्वनि के लिए कर दिया है। ध्वनि की शोहरत संगीत जगत में ‘बिलियन बेबी’ के नाम से है और उनके गानों की लोकप्रियता का ही असर है कि वह अब हीरोइन बनने के लिए पहला कदम बढ़ा चुकी हैं। फिल्म बनाई लक्ष्मण उतेकर ने हैं। पैसा विनोद भानुशाली ने लगाया है। संगीत सारेगामा ने रिलीज किया है और फिल्म रिलीज की है ‘आरआरआर’ और ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ जैसी फिल्में रिलीज करने वाली कंपनी पेन मरुधर एंटरटेनमेंट ने।
टी सीरीज से अलग होने के बाद विनोद भानुशाली दे दनादन एक के बाद एक फिल्में बनाते जा रहे हैं और रिलीज भी करते जा रहे हैं। उनकी बनाई पहली फिल्म ‘सिर्फ़ एक बंदा काफी है ’ मनोज बाजपेयी के अभिनय करियर की दूसरी पारी का टर्निंग प्वाइंट रही। लेकिन, पहले ‘मैं अटल हूं’ और फिर ‘भैयाजी’ ने विनोद की बतौर निर्माता बनी सॉलिड इमेज पर असर डाला। निर्माता बने उन्हें अभी वक्त ही कितना हुआ है। ‘जनहित में जारी’ के बाद उनकी दूसरी महिला प्रधान फिल्म ‘कहां शुरू कहां खत्म’ भी रिलीज हो गई है। मामला बेटी का है तो कहानी भी बेटियों की है।
जब सरकार इस बात का ढिंढोरा पीट रही थी कि बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ, तब ‘अमर उजाला’ ने अभिनेत्री माधुरी दीक्षित को लेकर एक कार्यक्रम शुरू किया था, ‘बेटी ही बचाएगी’। फिल्म ‘कहां शुरू कहां खतम’ इसी मूल विचार को लेकर आगे बढ़ती है। खानदानी जमींदारों के घर की बेटी ऐन अपनी शादी के दिन ही घर से भाग जाती है। उसी शादी में एक बंदा ऐसा भी है जिसे बिन बुलाए पहुंचकर बरातों में मस्ती करने का शौक है। दोनों मिलते हैं। साथ भागते हैं। साथ साथ बचने की कोशिश भी करते हैं। हरियाणा की कहानी है। बरसाना तक आनी है। घूंघट काढ़े महिलाओं के हाथों में लट्ठ हैं और होने वाली दुल्हन के दो मुस्टंडे भाई है जिनकी हाथों में हरदम पिस्तौल रहती है।

इस सारे हंगामे के बीच दो पीढ़ियों के बीच संवाद की कमी, महिलाओं के मन मारकर घूंघट में बने रहने और पति को परमेश्वर मानने, न मानने के गंभीर विमर्श भी हैं। और, इन सबके बीच में एक किस्सा समलैंगिक रिश्तों को भी ऋषि विरमानी और लक्ष्मण उतेरकर ने पिरो दिया है। फिल्म ‘कहां शुरू कहां खतम’ की कहानी रोचक है, पटकथा बेहद कमजोर है। तीस साल पहले की फिल्मों के संवादों वाली इस फिल्म में ऐसा कुछ नहीं है जिसके होने की प्रत्याशा में दर्शक अपनी सीट पर सधा रहे।

फिल्म की पटकथा और संवादों में चुटकुलों की भरमार हैं जिनपर हंसी आनी मुश्किल है। राकेश बेदी बोलते हैं तो मुलायम सिंह यादव की याद दिलाते हैं। बरसाने के इन पंडित जी के बड़े बेटे पर मंडप से दुल्हन को भगाने का इल्जाम है और छोटा बेटा इतना भक्तिवान है कि उसके सारे संवाद हरे कृष्णा, हरे कृष्णा ही हो जाते हैं। फिल्म में इन इक्का दुक्का कलाकारों के परदे पर होने के समय आने वाली हंसी को छोड़ दें तो ज्यादा कॉमेडी फिल्म में है नहीं। गाने भी कहां शुरू होते हैं और कहां खतम समझ पाना मुश्किल है। हां, सुनिधि चौहान के गाए गाने ‘बाबू की बेबी हूं मैं’ में धनश्री वर्मा का नमक खूब छलकता है और दर्शकों को अपने साथ आगे ले जाने की कोशिश में सफल भी रहता है। पर, कुछ कदम चलने के बाद फिल्म फिर लड़खड़ाती है।

फिल्म ‘कहां शुरू कहां खतम’ की कहानी के बाद इसका निर्देशन भी बहुत सुस्त सा है। सौरभ दासगुप्ता ने पूरी फिल्म में एक सीन भी ऐसा जमा कर शूट नहीं किया है जो दर्शकों को फिल्म खत्म होने के बाद भी याद रह जाए। हाशिये के सितारे फिल्म में इतने ज्यादा है कि गिनना मुश्किल, लेकिन रवि चौहान और राकेश बेदी जैसे गिनती के कलाकारों को छोड़ काम किसी का दमदार नहीं है। सुप्रिया पिलगांवकर ने भी निराश ही किया। कलाकारों में ये फिल्म सिर्फ ध्वनि भानुशाली की है जिन्होंने खुद को एक पॉप सिंगर के तौर पर स्थापित करने के बाद एक अभिनेत्री के रूप में भी जमाने की अच्छी कोशिश की है।

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