देहरादून: हिमालय में जलवायु परिवर्तन के गंभीर दुष्प्रभाव सामने आ रहे हैं। तापमान में बढ़ोतरी के चलते यहां के ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं, जिससे गंगा-यमुना जैसी नदियों की जल आपूर्ति और जलवायु स्थिरता पर खतरा मंडरा रहा है। मिजोरम विश्वविद्यालय, आइजोल के प्रोफेसर विश्वंभर प्रसाद सती और सुरजीत बनर्जी के 30 साल के अध्ययन में यह चिंताजनक स्थिति उजागर हुई है।
ग्लेशियरों की स्थिति
चमोली निवासी प्रो. सती ने बताया कि हिमालय तीव्र परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है। गंगोत्री, यमुनोत्री, मिलम और पिंडारी जैसे प्रमुख ग्लेशियर पीछे हट रहे हैं और उनकी मोटाई भी तेजी से घट रही है। 1991 से 2021 तक मोटी बर्फ की चादर का क्षेत्र 10,768 वर्ग किमी से घटकर 3,258.6 वर्ग किमी रह गया, जबकि पतली बर्फ की चादर का क्षेत्र 3,798 वर्ग किमी से बढ़कर 6,863.56 वर्ग किमी हो गया है।
तापमान में वृद्धि और इसके प्रभाव
तापमान बढ़ने से औली जैसे क्षेत्र, जो पहले साल भर बर्फ से ढके रहते थे, अब बर्फहीन हो गए हैं। नैनीताल जैसे निचले इलाकों में बर्फबारी की आवृत्ति में भारी गिरावट आई है। 1990 के दशक में जहां हर साल बर्फबारी होती थी, अब यह दो-तीन साल में एक बार ही देखने को मिलती है।
जल संकट और पर्यावरणीय प्रभाव
सिकुड़ते ग्लेशियरों से जल की कमी होने की संभावना है, जो पहले से ही जल संकट झेल रहे क्षेत्रों के लिए गंभीर चुनौती होगी। गंगा और यमुना जैसी नदियों पर निर्भर करोड़ों लोगों के लिए यह स्थिति विनाशकारी साबित हो सकती है।
वैश्विक जलवायु पर असर
प्रो. सती ने चेतावनी दी कि हिमालय में हो रहे ये बदलाव न केवल स्थानीय आबादी, बल्कि वैश्विक जलवायु के लिए भी गंभीर खतरा हैं। हिमालयी क्षेत्र की बर्फ की चादर की निरंतर कमी जलवायु असंतुलन का संकेत है।
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