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उत्तराखंड धर्मांतरण कानून को नहीं मिली राज्यपाल से मंजूरी, पुनर्विचार के लिए वापस लौटाया
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Dehradun News: उत्तराखंड धर्म स्वतंत्रता (संशोधन) विधेयक, 2025 को लोकभवन से मंजूरी नहीं मिली है। बिल अगस्त महीने में विधनसभा से पारित हो चुका है जिसे राज्यपाल के पास मंजूरी के लिए भेजा गया था। लेकिन राज्यपाल गुरमीत सिंह की तरफ से बिल को वापस पुनर्विचार के लिए लौटाया गया है।
लोकभवन से नहीं मिली विधेयक को मंजूरी, पुनर्विचार के वापस लिए भेजा
सूत्रों के मुताबिक, राज्यपाल ने विधेयक के ड्राफ्ट में तकनीकी खामियों के चलते सरकार के पास पुनर्विचार के लिए लौटा दिया है। जिसके बाद धामी सरकार के पास अब इस विधेयक को लागू करवाने के लिए दो ही रास्ते हैं।
- सरकार इसे अध्यादेश लाकर इसे लागू करे
- या दोबारा विधेयक को विधानसभा से पारित करे
क्या है उत्तराखंड धर्म स्वतंत्रता विधेयक ?
राज्य सरकार ने वर्ष 2018 में उत्तराखंड धर्म स्वतंत्रता विधेयक लागू किया था, जिसे 2022 में धामी सरकार द्वारा इस क़ानून में कुछ संशोधन करते हुए उत्तराखंड धर्म स्वतंत्रता विधेयक (संशोधन) 2022 लागू किया गया था। वर्तमान में जबरन धर्म परिवर्तन के मामलों में लगतार बढ़ोतरी होने के चलते 13 अगस्त 2025 को सरकार ने मौजूदा विधेयक में सजा को और भी सख्त करते हुए उत्तराखंड धर्म स्वतंत्रता विधेयक (संशोधन), 2025 के प्रस्ताव को कैबिनेट में मंजूरी दे दी थी। जिसके बाद विधेयक को 20 अगस्त 2025 को गैरसैण में चले मानसून सत्र में विधानसभा से मंजूरी मिलने के बाद राज्यपाल के पास भेजा गया था।
उत्तराखंड धर्म स्वतंत्रता विधेयक (संशोधन) 2025
- विधेयक का उद्देश्य राज्य के मौजूदा धर्मांतरण विरोधी कानून को और अधिक सख्त बनाना है।
- अगस्त 2025 में उत्तराखंड मंत्रिमंडल ने विधेयक को मंजूरी दी थी।
- दिसंबर 2025 में राज्यपाल गुरमीत सिंह ने तकनीकी खामियों के चलते इसे पुनर्विचार के लिए सरकार को लौटा दिया।
- अब सरकार के पास अध्यादेश लाने या संशोधन के बाद दोबारा विधानसभा में पारित कराने का विकल्प है।
दंड से जुड़े प्रावधान
- सामान्य मामलों में 3 से 10 साल तक की सजा का प्रावधान।
- महिलाओं, नाबालिगों और एससी/एसटी से जुड़े मामलों में 5 से 14 साल तक की सजा।
- गंभीर मामलों में 20 साल से आजीवन कारावास तक का प्रावधान।
अन्य प्रमुख प्रावधान
- प्रलोभन की परिभाषा का विस्तार, जिसमें विवाह का वादा, मुफ्त शिक्षा, नौकरी या अन्य लाभ शामिल।
- सोशल मीडिया और अन्य डिजिटल माध्यमों से धर्मांतरण के प्रचार पर प्रतिबंध।
- विवाह के लिए झूठी पहचान या जानकारी देने को दंडनीय अपराध बनाया गया।
- पीड़ितों की सुरक्षा, पुनर्वास, चिकित्सा और वित्तीय सहायता के लिए विशेष प्रावधान।