Dehradun
उत्तराखंड में सीटी से होता है आपदा का अलर्ट, धराली में भी दी गई थी चेतावनी !
Uttarakhand disaster alert is given by whistle, warning was also given in Dharali
उत्तरकाशी/देहरादून : उत्तराखंड में जब बादल फटता है या कोई प्राकृतिक आपदा आती है, तो वहां न तो सायरन बजते हैं, न ही अलार्म गूंजते हैं। यहां, सीटी (whistle) ही आपदा चेतावनी का इकलौता हथियार है। खासकर पर्वतीय और दूर-दराज के गांवों में, जहां न तो इंटरनेट है और न ही मोबाइल नेटवर्क, वहां संकट की घड़ी में लोग एक-दूसरे को सीटी बजाकर सचेत करते हैं।
मंगलवार को उत्तरकाशी जिले के धराली गांव में भी ठीक ऐसा ही हुआ। जब खीर गंगा में बादल फटा और सैलाब तेजी से गांव की ओर बढ़ा, तो कुछ लोगों ने सीटी बजाकर गांववालों को अलर्ट करने की कोशिश की। लेकिन कुदरत का शोर इतना भयावह था कि सीटी की आवाज सुनाई ही नहीं दी…और तब तक देर हो चुकी थी।
जब आधे मिनट में उजड़ गया धराली
मंगलवार को दोपहर करीब 1:50 बजे धराली के ऊपर आसमान फटा। सिर्फ 30 सेकंड के अंदर, उफनती खीर गंगा नदी ने बाजार, घर, दुकानें, और यहां तक कि सैकड़ों साल पुराना कल्प केदार मंदिर तक बहा दिया। घटनास्थल से जो वीडियो सामने आए हैं, उनमें सिर्फ चीख-पुकार, मलबा और बहता विनाश नजर आता है।
लोग दौड़ रहे थे, एक-दूसरे को पुकार रहे थे, कुछ वीडियो बना रहे थे, कुछ सीटी बजाकर चेतावनी देने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन तब तक सैलाब सब कुछ निगल चुका था।
सीटी: पहाड़ों की ‘साइरन’
उत्तराखंड जैसे राज्य में, खासतौर पर ऊंचाई वाले गांवों में, सीटी बजाना एक परंपरा जैसा बन चुका है…चाहे जंगली जानवर गांव में घुस आए हों या भूस्खलन का डर हो। मोबाइल नेटवर्क और अलर्ट सिस्टम की गैरहाजिरी में यही सीटी लोगों की जान बचाती रही है। लेकिन इस बार, आपदा का स्वर इतना तेज था कि मानव चेतावनी की आवाजें दबकर रह गईं।
धराली बना कीचड़ का ढेर, रेस्क्यू जारी
घटना के तुरंत बाद सेना, एनडीआरएफ, एसडीआरएफ और स्थानीय पुलिस राहत एवं बचाव कार्य में जुट गई। लेकिन मलबे और भारी बोल्डरों के कारण इलाके में अब दलदल बन गया है, जिससे रेस्क्यू ऑपरेशन धीमा हो गया है। अब तक 4 लोगों की मौत की पुष्टि हो चुकी है, कई लोग लापता हैं, और 20 से ज्यादा को रेस्क्यू कर लिया गया है।
हर साल बारिश के साथ लौटती है तबाही
उत्तराखंड में यह कोई पहली या अनोखी त्रासदी नहीं है। हर साल मानसून के दौरान ऐसी घटनाएं दोहराई जाती हैं….गांव तबाह होते हैं, लोग बेघर होते हैं और फिर कुछ समय बाद सब कुछ फिर से सामान्य मान लिया जाता है।
लेकिन इस बार की घटना में सबसे गहरी चोट यह है कि चेतावनी दी गई थी, लोग सीटी बजा रहे थे, लोगों को आगाह किया जा रहा था, लेकिन कुदरत की रफ्तार चेतावनी से कहीं तेज थी।
सरकार की चुनौती और लोगों का दर्द
उत्तरकाशी के धराली में आई यह आपदा शासन-प्रशासन के लिए एक बड़ी चुनौती बन गई है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने खुद राहत कार्यों की निगरानी की और सभी एजेंसियों को तेज रेस्क्यू ऑपरेशन चलाने के निर्देश दिए हैं।
लेकिन धराली के लोग इस वक्त अपने प्रियजनों की तलाश, टूटे घरों की तस्वीरें, और एक अधूरी चेतावनी की सीटी के शोर के बीच खड़े हैं….और पूछ रहे हैं कि क्या ये हादसा रोका नहीं जा सकता था?
धराली की सीटी बजती रही, लेकिन इस बार उसकी गूंज तबाही के शोर में खो गई। अब वहां बस खामोशी है….और मलबे में दबी उम्मीदें।