देहरादून – उत्तराखंड में फेफड़े का कैंसर बहुत तेजी से बढ़ रहा है। दून मेडिकल कॉलेज, अस्पताल में आने वाले मरीजों की रिपोर्ट इस बात की पुष्टि कर रही है। अस्पताल में कैंसर रजिस्ट्री सर्वे में पिछले डेढ़ साल में 2500 कैंसर संदिग्ध मरीजों को चिह्नित किया गया है। इसमें 200 से अधिक मरीज फेफड़ों के कैंसर के संदिग्ध अवस्था में मिले थे। इसमें करीब 20 फीसदी में फेफड़ों के कैंसर की पुष्टि हुई है।
दून मेडिकल कॉलेज, अस्पताल के ऑन्कोलॉजी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. दौलत सिंह ने बताया कि पहाड़ों पर सर्दी अधिक होने की वजह से लोग आग तापते और घरों को गर्म रखते हैं। खाना भी चूल्हे पर बनता है। सर्दी से बचाव के लिए घरों की ऊंचाई भी अधिक नहीं होती। ऐसे में धुआं पूर्णरूप से बाहर नहीं निकल पाता। सर्दी से बचाव के लिए अधिक गर्म तरल पदार्थ और धुएं वाले खाद्य पदार्थ अधिक लेते हैं। जिन्हें स्मोक फूड भी कहते हैं यह भी फेफड़ों के कैंसर का कारण बन रहे हैं। अस्पताल में हर माह फेफड़ों के कैंसर के दो से तीन नए मरीज मिल रहे हैं।
डॉ. दौलत सिंह ने बताया कि कच्ची लकड़ी जलाकर धुएं में सेंके जाने वाले खाद्य पदार्थ में कार्बन मोनो ऑक्साइड और हाइड्रो कार्बंस की मात्रा अधिक होने से टॉक्सिक केमिकल की मात्रा बढ़ जाती है। यह कैंसर कारक होते हैं। उच्च तापमान कैंसर को बढ़ावा देता है। इससे कोशिकाएं डैमेज हो जाती हैं। इससे वहां पर क्रॉनिक अल्सर हो जाता है जो बाद में कैंसर का रूप धारण कर सकता है। इससे फेफड़े और पाचन तंत्र का कैंसर होने की संभावना बढ़ जाती है। उत्तराखंड में पुरुषों में पहले नंबर पर मुंह और गले का कैंसर, दूसरे नंबर पर फेफड़े का कैंसर और तीसरे नंबर पर पेट का कैंसर मिल रहा है।
दून अस्पताल के टीबी एंड चेस्ट विभाग के विभागाध्यक्ष व अस्पताल के एमएस डॉ. अनुराग अग्रवाल ने बताया कि कैंसर रजिस्ट्री में यह पता करवाया जा रहा है, किस कैंसर के मरीज अधिक हैं और कहां से अधिक मरीज आ रहे हैं। कैंसर संदिग्ध मरीजों की एक फाइल तैयार करवाई जा रही है। इसमें पता, बीमारी, हिस्ट्री आदि की जानकारी ली जा रही है। रिपोर्ट तैयार होने के बाद सरकार को सौंपी जाएगी। यह सर्वे चार-पांच साल चलेगा अभी सिर्फ डेढ़ साल हुआ है।