Uttar Pradesh
महाकुंभ: अक्षयवट की पूजा के बिना संगम स्नान का फल अधूरा, जानिए पौराणिक कथा…
प्रयागराज: संगम तट पर स्थित अक्षयवट का धार्मिक और पौराणिक महत्व अत्यधिक है। मान्यता है कि संगम में स्नान करने के बाद इस 300 वर्ष पुराने वृक्ष के दर्शन से श्रद्धालुओं को स्नान का फल प्राप्त होता है। इसी कारण, तीर्थराज आने वाले भक्त और साधु संत संगम स्नान के बाद अक्षयवट के दर्शन के लिए अवश्य जाते हैं।
योगी आदित्यनाथ की सरकार ने अक्षयवट कॉरिडोर सौंदर्यीकरण योजना का जायजा लिया है और कार्यों में तेजी लाने के निर्देश दिए हैं। महाकुंभ के दौरान यह स्थान श्रद्धालुओं के लिए आस्था का एक प्रमुख केंद्र बनेगा।
अक्षयवट का ऐतिहासिक संदर्भ
अक्षयवट का उल्लेख रामायण, महाकवि कालिदास की रघुवंश और चीनी यात्री ह्वेनत्सांग के यात्रा वृत्तांत में भी किया गया है। कहा जाता है कि जब प्रभु श्रीराम वन जाते समय भरद्वाज मुनि के आश्रम पहुंचे, तो मुनि ने उन्हें इस वृक्ष का महत्व बताया। मान्यता के अनुसार, माता सीता ने भी इस वटवृक्ष को आशीर्वाद दिया था। प्रलय के समय जब पृथ्वी डूब गई, तो केवल एक वटवृक्ष बचा, जिसे हम आज अक्षयवट के नाम से जानते हैं।
मुगलकाल में प्रतिबंध और योगी सरकार की पहल
मुगलकाल में अक्षयवट के दर्शन पर प्रतिबंध था। इसके बाद ब्रिटिश काल और स्वतंत्र भारत में भी यह वृक्ष सेना के अधिपत्य में रहने के कारण दुर्लभ हो गया। लेकिन योगी सरकार ने 2018 में इसे आम लोगों के लिए खोल दिया। पौराणिक महत्व के अन्य तीर्थ स्थलों के विकास के लिए भी कई परियोजनाएं स्वीकृत की गई हैं, जिससे अक्षयवट का सौंदर्यीकरण कार्य तेजी से आगे बढ़ रहा है।
अक्षयवट की अद्भुत विशेषता
प्रसिद्ध संत स्वामी दिलीप दास त्यागी ने बताया कि अक्षयवट को समाप्त करने के लिए मुगलों ने कई प्रयास किए, इसे बार-बार काटकर जलाया गया, लेकिन यह अपने स्वरूप में पुनः आ जाता था। इस वृक्ष की अद्वितीयता ही इसे अक्षयवट बनाती है। योगी सरकार के सौंदर्यीकरण और विकास कार्यों से इस पवित्र स्थान की महत्ता और बढ़ जाएगी, जिससे श्रद्धालुओं को संगम स्नान के बाद अक्षयवट के दर्शन से पुण्य की प्राप्ति होगी।
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