Uttarakhand

चार धामों की संरक्षक जो दिन में तीन बार बदलती है अपना स्वरुप , जिनके दर्शन मात्र से पूरी होती हैं सभी मनोकामनाएं !

Published

on

उत्तराखंड की धारी देवी, जिन्हें चार धामों की रक्षक देवी माना जाता है, की मान्यता और पौराणिक महत्व बहुत गहरा है। ये भक्तों की आस्था का प्रमुख केंद्र हैं और इन्हें खासकर चार धाम यात्रा के दौरान श्रद्धालु विशेष रूप से याद करते हैं।

धारी देवी का इतिहास

धारी देवी का मंदिर मुख्य रूप से श्रीनगर गढ़वाल में स्थित है। कहा जाता है कि देवी धारी एक अद्भुत शक्ति रखती हैं और उनकी कृपा से भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, धारी देवी ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तप किया था और तब से वे इस क्षेत्र की रक्षक मानी जाती हैं।

चार धामों की रक्षक

धारी देवी को चार धामों (बदरीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री) की रक्षक देवी माना जाता है। मान्यता है कि जो भक्त धारी देवी की पूजा करते हैं, उनकी यात्रा सुरक्षित और सफल होती है। चार धामों की यात्रा से पहले श्रद्धालु यहां आकर अपनी श्रद्धा अर्पित करते हैं।

मंदिर की विशेषताएँ

धारी देवी का मंदिर अपनी भव्यता और प्राकृतिक सौंदर्य के लिए प्रसिद्ध है। मंदिर का वातावरण भक्तिभाव से परिपूर्ण है, जहाँ हर साल हजारों श्रद्धालु आते हैं। यहाँ की भव्य मूर्तियाँ और प्राकृतिक दृश्य श्रद्धालुओं को आकर्षित करते हैं।

महोत्सव और अनुष्ठान

धारी देवी के मंदिर में हर साल विशेष उत्सव और अनुष्ठान होते हैं, जिसमें स्थानीय लोग और दूर-दूर से आए भक्त भाग लेते हैं। नवरात्रि, शिवरात्रि और अन्य धार्मिक अवसरों पर यहाँ विशेष पूजा-अर्चना होती है।

धारी देवी: दिन में तीन बार बदलती है अपनी मूरत

धारी देवी का मंदिर में मान्यता है कि देवी दिन में तीन बार अपनी मूर्तियों के स्वरुप को बदलती हैं। सुबह, दोपहर और शाम, देवी के स्वरूप में परिवर्तन होता है, जो उनके अद्भुत शक्तियों का प्रतीक है।

  • सुबह का स्वरूप: सुबह के समय देवी की मूर्ति को नवयुवती के रूप में सजाया जाता है, जो ऊर्जा और नई शुरुआत का प्रतीक है। भक्त इस समय अपनी आराधना में विशेष ध्यान लगाते हैं।
  • दोपहर का स्वरूप: दोपहर में देवी का स्वरूप पार्वती माता के रूप में होता है, जिसमें भक्तों को माता की ममता और सुरक्षा का अनुभव होता है। इस समय विशेष पूजा-अर्चना का आयोजन होता है।
  • शाम का स्वरूप: शाम को देवी का स्वरूप काली माता के रूप में बदलता है, जो शक्ति और संहार का प्रतीक है। यह समय भक्ति और शक्ति का अद्भुत मेल प्रस्तुत करता है।आस्था का प्रतीक 

     

    आस्था का प्रतीक  : इस परिवर्तन का भक्तों के लिए विशेष महत्व है। मान्यता है कि जो भक्त इन तीनों स्वरूपों का दर्शन करते हैं, उन्हें देवी की कृपा से सभी संकटों से मुक्ति मिलती है। यहाँ तक कि कई भक्त इस चमत्कार को देखने के लिए दूर-दूर से आते हैं।

 

2013 केदारनाथ आपदा का धारी देवी कनेक्शन

2013 में उत्तराखंड में आई केदारनाथ आपदा ने देश और दुनिया को हिला कर रख दिया। लाखों श्रद्धालु इस आपदा का शिकार हुए, लेकिन इस आपदा के पीछे की एक महत्वपूर्ण कहानी धारी देवी से जुड़ी है।

आपदा से पहले का घटनाक्रम

आपदा से कुछ समय पहले, स्थानीय लोगों ने धारी देवी के मंदिर के समीप स्थित नदियों में अत्यधिक उफान और बाढ़ के संकेत देखे थे। भक्तों का मानना था कि देवी ने खतरे के संकेत दिए थे, लेकिन इसे अनदेखा किया गया।

मूर्तियों का स्थानांतरण

आपदा से पहले, धारी देवी की मूर्ति को मंदिर से स्थानांतरित किया गया था। यह निर्णय सुरक्षा के दृष्टिकोण से लिया गया था। कई भक्तों का मानना है कि यदि देवी की मूर्ति मंदिर में रहती, तो शायद आपदा का प्रकोप कम होता। यह विश्वास स्थानीय लोगों में गहराई से मौजूद है कि मूर्ति का स्थानांतरण एक महत्वपूर्ण चेतावनी का संकेत था।

आपदा का प्रभाव

2013 की केदारनाथ आपदा में भारी बारिश और भूस्खलन के कारण हजारों लोग प्रभावित हुए। केदारनाथ में बाढ़ और मलबे के कारण लाखों लोग फंस गए, जिससे एक बड़ा संकट उत्पन्न हुआ। धारी देवी की पूजा और अनुष्ठान की गई, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी।

 

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Trending

Exit mobile version