देहरादून: उत्तराखंड में लीसा (Lime) के काम को निजी क्षेत्र को सौंपने की तैयारी तेज हो गई है। इसके लिए लीसा और अन्य वन उपज (व्यापार विनियमन) अधिनियम-1976 और नियमावली में बदलाव करने की आवश्यकता होगी। इस संबंध में वन मुख्यालय से एक प्रस्ताव तैयार कर शासन को भेजा गया है, और शासन सभी संभावित विकल्पों पर विचार करने की बात कह रहा है।
वर्तमान में वन विभाग राज्य में लीसा का विदोहन, भंडारण और बिक्री का काम करता है, जबकि राज्य में हर साल एक लाख कुंतल से अधिक लीसा एकत्र होता है। वन विभाग, निजी क्षेत्र को केवल लीसा टीपान (जंगल से लीसा एकत्र करना) का ठेका देता है, बाकी सभी कार्य वन विभाग ही करता है।
इस वर्ष अक्टूबर में एक उच्च स्तरीय बैठक हुई थी, जिसमें वन मंत्री और प्रमुख सचिव वन समेत अन्य अधिकारी शामिल हुए थे। बैठक में लीसा के काम को पायलट प्रोजेक्ट के तहत निजी क्षेत्र को सौंपने पर विचार किया गया था। अब इस योजना को लागू करने की प्रक्रिया आगे बढ़ी है, लेकिन इसके लिए लीसा अधिनियम और नियमावली में बदलाव आवश्यक है।
राजस्व में वृद्धि का अनुमान
लीसा का भंडारण राज्य के विभिन्न स्थानों जैसे हल्द्वानी, टनकपुर, नैनीताल, अल्मोड़ा और ऋषिकेश में किया जाता है, जहां सुरक्षा के कड़े इंतजाम होते हैं। निजी लोग नीलामी के माध्यम से लीसा खरीदते हैं, जिससे वन विभाग को हर साल लगभग 80 करोड़ रुपये तक का राजस्व प्राप्त होता है। लीसा का उपयोग पेंट और अन्य उद्योगों में होता है।
प्रमुख सचिव वन आरके सुधांशु का बयान
“हम सभी विकल्पों पर विचार कर रहे हैं ताकि संसाधनों का अधिकतम उपयोग हो सके और समय के हिसाब से बदलाव किया जा सके, जिससे राजस्व में भी वृद्धि हो सके,” आरके सुधांशु, प्रमुख सचिव वन ने कहा।