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पहाड़ों में बढ़ते कार्बन से उत्तराखंड का मौसम हो रहा अस्थिर, 35% बढ़ी प्रदूषण की मात्रा l

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उत्तराखंड के मैदानी इलाकों और पर्वतीय क्षेत्रों में इस समय मौसम बेहद अप्रत्याशित हो गया है। नवंबर महीने की शुरुआत के बावजूद शरद ऋतु में सर्दी का अहसास नहीं हो रहा है और पहाड़ी इलाकों में इस समय धुंध का प्रकोप बढ़ चुका है। विशेषज्ञों का मानना है कि इसके पीछे प्रमुख कारण पहाड़ों में बढ़ा हुआ कार्बन डाई ऑक्साइड (CO2) स्तर है, जो लगातार बढ़ रहा है और मौसम पर असर डाल रहा है।

इस साल गर्मियों में पहाड़ों में तापमान के रिकॉर्ड टूटने के बाद अब सर्दी का मौसम भी देरी से दस्तक दे रहा है। गर्मी के दौरान जहां तापमान 28 डिग्री सेल्सियस तक रहता था, वह अब 33-34 डिग्री तक पहुंच गया, जिससे स्थानीय निवासी पसीने से तर हो गए थे। अब, नवंबर में सर्दी का दौर शुरू होना चाहिए था, लेकिन तापमान अपेक्षाकृत सामान्य से अधिक बना हुआ है। इसके अलावा, भविष्य में भारी सर्दी की संभावना भी जताई जा रही है, जो कि मौसम के पूर्वानुमान से हटकर है।

कार्बन डाई ऑक्साइड का बढ़ता स्तर

आर्य भट्ट शोध एवं प्रेक्षण विज्ञान संस्थान (एरीज) के विशेषज्ञों के अनुसार, पहाड़ों के वातावरण में ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा में पिछले दस वर्षों में काफी बढ़ोतरी हुई है। विशेष रूप से, कार्बन डाई ऑक्साइड (CO2) की मात्रा 300 पीपीएम से बढ़कर 410 पीपीएम तक पहुंच गई है। यह वृद्धि न केवल तापमान में बढ़ोतरी का कारण बन रही है, बल्कि यह सर्दियों में अप्रत्याशित बदलाव और गर्मियों में अधिक गर्मी का भी कारण बन रही है।

सीआरडी तकनीक से अध्ययन

एरीज के निदेशक और मौसम विज्ञानी डॉ. मनीष नाजा के मुताबिक, सीआरडी (कैविटी रिंग डाउन स्पेक्ट्रोस्कोपी) तकनीक का उपयोग करते हुए 100 किलोमीटर के क्षेत्र में वायुमंडलीय अध्ययन किया गया है। इस अध्ययन से पता चला है कि उत्तराखंड के वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों की अत्यधिक वृद्धि हो रही है, जो तापमान में बढ़ोतरी और मौसम में अप्रत्याशित बदलाव का कारण बन रही है। उन्होंने यह भी बताया कि इस प्रकार की मौसम परिवर्तन की स्थिति के परिणामस्वरूप क्षेत्र में अधिक गर्मी और सर्दी के चरम स्तर की संभावना बढ़ सकती है।

ग्लोबल वार्मिंग और रीजनल क्लाइमेट

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डॉ. मनीष नाजा ने बताया कि ग्लोबल वार्मिंग की प्रक्रिया के तहत अब क्षेत्रीय जलवायु पर असर पड़ने का दूसरा चरण शुरू हो चुका है, जिसका प्रभाव उत्तराखंड में साफ देखा जा रहा है। इससे आने वाले समय में न केवल अधिक गर्मी, बल्कि सर्दियों में भी अत्यधिक ठंड का सामना करना पड़ सकता है। यह प्रभाव विशेष रूप से वायु प्रदूषण, बढ़ती औद्योगिकीकरण और अधिक वाहन संख्या की वजह से बढ़ रहा है।

प्रदूषण और बढ़ते वाहन: समस्या का कारण

डॉ. नाजा ने बताया कि राज्य में लगातार बढ़ती वाहन संख्या, प्रदूषण, और कार्बन उत्सर्जन में बढ़ोतरी के कारण यह जलवायु परिवर्तन हो रहा है। उन्होंने कहा कि अगर इन कारणों पर नियंत्रण नहीं पाया गया तो आने वाले वर्षों में मौसम की स्थिति और भी खराब हो सकती है। इसके लिए सरकार और स्थानीय प्रशासन को प्रदूषण नियंत्रण के उपायों पर गंभीरता से विचार करना होगा, ताकि स्थिति को संभाला जा सके।

निष्कर्ष: भविष्य में अप्रत्याशित मौसम के लिए तैयार रहें

उत्तराखंड में बढ़ते प्रदूषण और ग्रीनहाउस गैसों की बढ़ती मात्रा को देखते हुए, विशेषज्ञों का कहना है कि भविष्य में राज्य के मौसम में और अधिक अप्रत्याशित बदलाव हो सकते हैं। इसकी वजह से पहाड़ी क्षेत्र के लोगों को अतिरिक्त गर्मी और सर्दी का सामना करना पड़ सकता है। ऐसे में आवश्यक है कि राज्य सरकार और स्थानीय प्रशासन पर्यावरण संरक्षण के उपायों को प्राथमिकता दे और कार्बन उत्सर्जन पर नियंत्रण पाए ताकि इस समस्या का समाधान किया जा सके।

 

 

 

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