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शारदीय नवरात्रि: 03 अक्तूबर से होगी शारदीय नवरात्रि की शुरुआत, माँ के नौ स्वरूपों के बारे में जानिए…
मां स्कंदमाता करती हैं मनोकामनाओं की पूर्ति
मां का पांचवां विग्रह स्वरूप स्कंदमाता है। उनके पार्वती स्वरूप के पुत्र हैं कुमार कार्तिकेय, जिन्हें स्कंद नाम से भी पुकारा जाता है। देव सेनापति बनकर तारकासुर का वध करने वाले तथा मयूर (मोर) को वाहन के रूप में अपनाने वाले स्कंद की माता होने के कारण ही मां के इस रूप को ‘स्कंदमाता’ के नाम से पुकारा जाता है।
नवरात्रि के पांचवें दिन उनके इसी रूप की पूजा-अर्चना की जाती है। योगीजन इस दिन विशुद्ध चक्र में मन एकाग्र करते हैं। यही चक्र प्राणियों में उनके स्कंद स्वरूप का स्थान है। मां का विग्रह स्वरूप चार भुजाओं वाला है और उन्होंने गोद में भगवान स्कंद को बैठा रखा है। एक भुजा से धनुष बाणधारी, छह मुखों वाले (षडानन) बाल रूप स्कंद को पकड़ा है और दूसरी भुजा से मां भक्तों को आशीर्वाद एवं वर प्रदान करती हैं। शेष दोनों भुजाओं में कमल पुष्प है। मां का वर्ण पूरी तरह निर्मल कांति वाला सफेद है और वे कमलासन पर विराजती हैं, इसलिए उन्हें पद्मासना नाम से पूजा जाता है। मां ने वाहन के रूप में सिंह को अपनाया है।
उनका यह विग्रह वात्सल्य से परिपूर्ण है, इसलिए उन्होंने कोई शस्त्र धारण नहीं किया। मां की उपासना से साधक को मृत्यु लोक में ही परम शांति और सुख मिलता है और वह विशुद्ध चैतन्य स्वरूप की ओर बढ़ता है।
कैसे करें प्रसन्न : नवरात्रि के पांचवें दिन मां को प्रसन्न करने के लिए भक्तों को केले का भोग लगाना चाहिए या फिर इसे प्रसाद के रूप में दान करना चाहिए। इससे माता अपने भक्त को परिवार में सुख-शांति का वरदान प्रदान करती हैं।
मां कात्यायनी दिलाती हैं विजय
सुनहले और चमकीले वर्ण, चार भुजाएं और रत्नाभूषणों से अलंकृत मां का छठा स्वरूप कात्यायनी का है। इस रूप में मां खूंखार और झपट पड़ने वाली मुद्रा में सिंह पर सवार हैं। मां का आभामंडल विभिन्न देवों के तेज अंशों से मिश्रित इंद्रधनुषी छटा देता है। मां का यह छठा विग्रह रूप है, जिसकी पूजा-अर्चना नवरात्र के छठे दिन भक्तगण करते हैं।
प्राणियों में मां का वास ‘आज्ञा चक्र’ में होता है और योग साधक इस दिन अपना ध्यान आज्ञा चक्र में ही लगाते हैं। मां के इस स्वरूप में उनकी एक ओर की दोनों भुजाएं क्रमश: अभय देने वाली मुद्रा में और वर देने वाली मुद्रा में रहती हैं। दूसरी ओर की एक भुजा में मां ने चंद्रहास खड्ग (तलवार) धारण किया है और दूसरी भुजा में कमल का फूल धारण किया है।
एकाग्रचित और पूर्ण समर्पित भाव से मां की उपासना करने वाला भक्त बड़ी सहजता से धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष आदि चारों पुरुषार्थों की प्राप्ति कर लेता है और इस लोक में रहकर भी अलौकिक तेज तथा प्रभाव पा लेता है। उसके रोग, शोक, संताप और भय के साथ-साथ जन्म-जन्मांतर के पाप नष्ट हो जाते हैं। मां अमोघ फल देकर भक्त को प्रत्येक क्षेत्र में विजय दिलाती हैं।
कैसे करें प्रसन्न : नवरात्रि के छठे दिन मां को प्रसन्न करने के लिए मधु यानी शहद का भोग लगाकर उनके इस रूप का ध्यान, स्तवन करने से मां साधक को सुंदर यौवन प्रदान करती हैं, साथ ही लक्ष्मी के रूप में उसके घर में वास भी करती हैं।
मां कालरात्रि हरती हैं ग्रह-बाधा
घने अंधेरे की तरह एकदम गहरा काला रंग, तीन नेत्र, बिखरे हुए बाल, यही मां का सातवां विग्रह स्वरूप यानी कालरात्रि रूप है। मां के तीनों नेत्र ब्रह्मांड के गोले की तरह गोल हैं। उनके गले में विद्युत जैसी छटा देने वाली सफेद माला सुशोभित है। मां की चार भुजाएं हैं, जिनसे वे भक्तों को शुभ फल प्रदान करती हैं। इसी कारण मां को ‘शुंभकरी’ भी कहा जाता है। मां का वाहन गधा है।
साधकों द्वारा उनका स्मरण सहस्त्रार चक्र में ध्यान केंद्रित करके किया जाता है। मां ब्रह्मांड की समस्त सिद्धियों की प्राप्ति के लिए राह खोल देती हैं और साधक को अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। मां की चार भुजाओं में से दो में शस्त्र हैं- एक में चंद्रहास खड्ग और दूसरी में कांटेदार कटार। दूसरी ओर के एक हाथ अभय मुद्रा में और दूसरा वर मुद्रा में रखकर मां भक्तों को वर प्रदान करती हैं।
मां का ऊपरी तन लाल रक्तिम वस्त्र से और नीचे का आधा भाग बाघ के चमड़े से ढका रहता है। मां नकारात्मक, तामसी और राक्षसी प्रवृत्तियों का विनाश करके भक्तों को दानव, दैत्य, राक्षस, भूत-प्रेत आदि भयावह शक्तियों से उनकी रक्षा कर अभय प्रदान करती हैं। उनकी उपासना से प्रतिकूल ग्रहों द्वारा उत्पन्न होने वाली बाधाएं भी समाप्त होती हैं और भक्त अग्नि, जल, जंतु, शत्रु आदि के भय से मुक्त हो जाते हैं।
कैसे करें प्रसन्न : नवरात्रि के सातवें दिन इस रूप की पूजा-अर्चना कर गुड़ का नैवेद्य अर्पित करने से मां साधक को शोकमुक्त रहने का वरदान देती हैं और भक्तों के घर दरिद्रता भी नहीं आने देती हैं।
मां महागौरी दिखाती हैं सफलता की राह
नवरात्रि के आठवें दिन मां महागौरी रूप में रहती हैं। इस दिन कंद, फूल, चंद्र अथवा श्वेत शंख जैसे निर्मल गौर वर्ण वाले आठवें विग्रह स्वरूप का भक्त दर्शन-पूजन करते हैं। मां के इस स्वरूप की आयु आठ वर्ष की है। उनके समस्त वस्त्राभूषण और वाहन भी हिम के समान सफेद या गौर रंग वाला वृषभ अर्थात बैल है। मां की चार भुजाएं हैं, जिनमें से एक हाथ अभय मुद्रा में अभय प्रदान करता है और दूसरा त्रिशूल थामे है। दूसरी ओर के एक हाथ में डमरू और दूसरा हाथ वर मुद्रा में रहकर सभी को आशीर्वाद प्रदान करता है।
मां मनुष्य की प्रवृत्ति सत की ओर प्रेरित करके असत का विनाश करती हैं। मां का यह शक्ति विग्रह भक्तों को तुरंत और अमोघ फल प्रदान करता है। मां की कृपा से साधक पवित्र एवं अक्षय पुण्यों का अधिकारी हो जाता है और उसे अलौकिक सिद्धियों की प्राप्ति होती है।
पार्वती रूप में जब मां ने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की, तब उनका शरीर क्षीण और वर्ण काला पड़ गया। अंत में उनकी तपस्या से संतुष्ट होकर जब भगवान शिव ने जटा से निकलती पवित्र गंगाधारा का जल उन पर डाला तो मां विद्युत प्रभा के समान अति कांतिमान और गौर वर्ण की हो गईं। तभी से मां के इस स्वरूप का नाम महागौरी पड़ा।
कैसे करें प्रसन्न : नवरात्रि के आठवें दिन मां के इस रूप का ध्यान कर पूजा-अर्चना करने और श्रीफल (नारियल) का भोग लगाने से साधकों को मां सुख-समृद्धि प्रदान करती हैं। इसके साथ ही इस दिन नारियल को सिर से घुमाकर बहते हुए जल में प्रवाहित करने से हर प्रकार की बाधा दूर हो जाती है।
मां सिद्धिदात्री देती हैं सिद्धि और मोक्ष
मां की नवीं शक्ति का नाम सिद्धिदात्री है। अपने इस विग्रह स्वरूप से मां अपने भक्तों को ब्रह्मांड की सभी सिद्धियां प्रदान करती हैं। भगवान शिव ने भी उनके इसी रूप की कृपा से सिद्धियों को प्राप्त किया था, जिसके फलस्वरूप भगवान शिव का आधा शरीर देवी का हुआ और वे लोक में अर्द्धनारीश्वर के रूप में स्थापित हुए।
नवरात्रि पूजन के नवें दिन भक्त और योगी साधक मां के इसी रूप की शास्त्रीय विधि-विधान से पूजा करते हैं, जो कि चतुर्भुज और सिंहवाहिनी हैं। गति के समय मां सिंह पर तथा अचला रूप में कमल पुष्प के आसन पर बैठती हैं। मां के एक ओर के एक हाथ में चक्र और दूसरे हाथ में गदा रहता है। वहीं दूसरी ओर के एक हाथ में शंख और दूसरे हाथ में कमल पुष्प विद्यमान रहता है।
नवरात्र के सिर्फ नवें दिन भी यदि कोई भक्त एकाग्रता और निष्ठा से मां की विधिवत पूजा करता है तो उसे सभी सिद्धियां प्राप्त हो जाती हैं। सृष्टि में भक्त के लिए कुछ भी असंभव नहीं रहता और शत्रुओं पर पूर्ण विजय प्राप्त करने का सामर्थ्य उसमें आ जाता है। साथ ही मां की कृपा प्राप्त करने वाले साधक की सभी लौकिक तथा पारलौकिक कामनाओं की पूर्ति हो जाती है।
कैसे करें प्रसन्न – नवरात्रि के नवें दिन मां की नवीं शक्ति की पूजा-अर्चना कर उन्हें विभिन्न प्रकार के अनाज, जैसे कि हलवा, पूरी, चना, खीर, पुए आदि का भोग लगाने से मां जीवन में सभी प्रकार की सुख-शांति का वरदान देती हैं।
