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नैनीताल: IFS चतुर्वेदी के मामले सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के लिए किया तीन जजों की बेंच का गठन, ये था मामला।

नैनीताल – सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड के चर्चित आईएफएस अधिकारी संजीव चतुर्वेदी के मामले की सुनवाई के लिए तीन न्यायाधीशों को बड़ी पीठ का गठन किया है।

नई पीठ में न्यायमूर्ति अभय एस ओका, न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और न्यायमूर्ति ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह शामिल हैं। दो न्यायाधीशों की डिवीजन पीठ, जिसमें न्यायमूर्ति एमआर शाह और न्यायमूर्ति नागरलना शामिल थे, ने इस मामले को संबंधित उच्च न्यायालय की अधिकारिता पर विचार करने के लिए संदर्भित किया था। डिवीजन पीठ के आदेश में कहा गया था कि यह मामला देश के बहुत से कर्मचारियों को प्रभावित करता है और इसका सार्वजनिक महत्व है। इसमें रजिस्ट्री को निर्देशित किया गया कि वह इस मामले को उचित आदेश के लिए जल्द से जल्द भारत के मुख्य न्यायाधीश के समक्ष प्रस्तुत करे ताकि उपरोक्त प्रकरण का शीघ्र समाधान हो सके। डिवीजन पीठ ने इस मामले में केंद्र सरकार की ओर से दायर अपील पर अप्रैल 2022 में अपना निर्णय सुरक्षित रखा था और 11 महीने बाद मार्च 2023 में अंतिम निर्णय सुनाया था।
जनवरी 2023 के ऐसे ही एक मामले में एक फैसले के कारण उत्पन्न हुआ था जिसमें पश्चिम बंगाल से संबंधित एक प्रकरण में आदेश दिया गया था कि कैट की प्रिंसिपल बेंच नई दिल्ली के आदेश को केवल दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष ही चुनौती दी जा सकती थी और मामले से संबंधित प्रदेश के कोलकाता उच्च न्यायालय में नहीं। इधर उत्तराखंड में चतुर्वेदी के मामले में अक्टूबर, 2021 में उत्तराखंड उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ केंद्र सरकार ने एक विशेष अनुमति याचिका दायर की थी जिसमें दिसंबर, 2020 में आईएफएस अधिकारी संजीव चतुर्वेदी के मामले की सुनवाई स्थानांतरित करने के संबंध में कैट के अध्यक्ष के आदेश को निरस्त कर दिया गया था।
ये था मामला
इससे पहले फरवरी 2020 में संजीव ने केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (कैट) की नैनीताल पीठ के समक्ष एक याचिका दायर की थी, जिसमें केंद्र सरकार में संयुक्त सचिव स्तर पर वर्तमान पैनल प्रणाली और संयुक्त सचिव स्तर पर लेटरल एंट्री की प्रणाली को चुनौती दी गई थी। दिसंबर 2020 में केंद्र सरकार की याचिका पर कैट के तत्कालीन अध्यक्ष ने इस मामले की सुनवाई कैट की दिल्ली बेंच को स्थानांतरित करने का आदेश पारित करते हुए कहा था कि इसमें विचाराधीन प्रकरण राष्ट्रीय महत्व का है। इस आदेश को चतुर्वेदी ने नैनीताल उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी जिसने अक्टूबर में फैसला सुनाया था।
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नैनीताल चाइना पीक से लापता हुआ 12 वीं का छात्र, पुलिस सर्च अभियान में जुटी

नैनीताल: रुद्रपुर में 12वीं का एक छात्र नैनीताल में चाइना पीक से लापता हो गया है। लापता छात्र अपने पांच दोस्तों के साथ मंगलवार को नैनीताल घूमने गया था। लेकिन वापस लौटते समय दोस्तों से आगे निकल कर वो लापता हो गया। पुलिस और एसडीआरएफ की टीमें सर्च अभियान में जुटी हुई हैं।
नैनीताल से लापता हुआ 12 वीं का छात्र, पुलिस सर्च अभियान में जुटी
जानकारी के मुताबिक रुद्रपुर निवासी जयश कार्की मंगलवार को अपने पांच दोस्तों के साथ नैनीताल घूमने गया था। शाम को वो घूमने के लिए चाइना पीक और कैमल्स बैक की पहाड़ियों पर गए। जयश के साथियों ने बतया कि वापसी के दौरान वो हैडफोन पर गाने सुनते सुनते दोस्तों से आगे निकल गया। जब सभी दोस्त नीचे उतरकर प्रवेश गेट पर पहुंचे तो जयश नहीं मिला। उसके बाद जब उन्होंने जयश से संपर्क करने की कोशिश की तो उसका नंबर भी नहीं लगा।
इसके बाद जयश के साथियों ने पुलिस को इसकी सूचना दी। सूचना मिलने के बाद से ही पुलिस और एसडीआरएफ की टीमें रात भर चाइना पीक की पहाड़ियों पर जयश को ढूंढते रहे लकिन अभी तक लापता छात्र का कोई भी पता नहीं चल पाया है। एसएसआई दीपक बिष्ट ने बताया कि फिलहाल पुलिस और एसडीआरएफ की टीमें खोजबीन में जुटी हैं। सुबह तक छात्र का कोई भी पता नहीं चल पाया है।
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उत्तराखंड में फिर सामने आया कोरोड़ों का घोटाला !, मामले की जांच हुई शुरू

उत्तराखंड में एक बार फिर से बड़ा घोटाला सामने आया है। नैनीताल के रुसी गांव के पास बने सीवर ट्रीटमेंट प्लांट कार्य में 110 करोड़ की योजना का घोटाला सामने आया है। स्थानीय लोगों के मामला उठाने के बाद इस मामले में जिलाधिकारी ने जांच के आदेश दे दिए हैं।
उत्तराखंड में फिर सामने आया कोरोड़ों का घोटाला
नैनीताल की सीवेज परेशानियों को कम करने के लिए बनाई गई 110 करोड़ की योजना में घोटाले की खबर सामने आ रही है। ग्रामीणों का आरोप है कि चौड़ा पाइप लगाने की जगह उसे अंदर से लेयर लगाकर और भी पतला कर दिया गया। इतना ही नहीं ट्रीटमेंट प्लांट भी उस जगह बनाया गया जहां भूस्खलन की समस्या है। जिलाधिकारी ललित मोहन रयाल ने मामले की गंभीरता को देखते हुए एक कमेटी बनाकर इसकी जांच के आदेश दे दिए हैं।
सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट में स्थानीय लोगों ने लगाए बड़े आरोप
मिली जानकारी के मुताबिक 4 साल पहले नैनीताल की मॉलरोड से लेकर रूसी गांव की एस.टी.पी.प्लांट तक उत्तराखण्ड इंटीग्रेटेड एंड रेजीलियेन्ट शहरी विकास परियोजना(UIRUDP)के अंतर्गत काम हुआ। इसमें दो साल पहले मल्लीताल के रिक्शा स्टैंड से मॉलरोड और हल्द्वानी रोड होते हुए रूसी बाईपास के सीवर ट्रीटमेंट प्लांट(STP) तक पाइपों के माध्यम से सीवर पहुंचाना था। इसका कॉन्ट्रैक्ट तिरुपति सीमेंट प्रोडक्ट्स को ₹96.15करोड़ में दिया गया था। जिसकी लागत 110करोड़ रूपए तक पहुंच गई। ये प्रोजेक्ट नवंबर 2021 से शुरू होकर मई 2025 तक पूरा होना था। इसे सीवेज का डेवलपमेंट, एस.टी.पी., ट्रंक सीवर, अलाइड और 5 सालों तक ऑपरेशन और मैन्टेनेंस के लिए दिया गया था।
स्थानीय लोगों का कहना है कि एसटीपी की क्षमता बढ़कर 17.50 एमएलडी हो जानी थी। इससे पहले साल 1982 में 10 हजार की आबादी को देखते हुए 600 एम.एम.व्यास(डायामीटर) वाली आर.सी.सी.(सीमेंट) की सीवर पाइप लाइन डाली गई थी। बताया गया है कि विभाग ने 2022 और 2023 में दो से 5 लाख की आबादी को देखते हुए 900एम.एम.डाया वाले डी.आई.(मैटल)पाइप डालने के लिए टेंडर निकाले। ठेकेदार ने लगभग ₹110 करोड़ के टेंडर में पुरानी पाइप लाइन को ही अंदर से रिपेयर कर इतिश्री कर दी।
जिलाधिकारी ने दिए मामले की जांच के आदेश
लोगों ने आरोप लगाए हैं कि सीवर पाइप का डायामीटर बढ़ने के बजाए दो सेंटीमीटर ‘इंटरनली कम’ हो गया। फलस्वरूप मॉलरोड में सीवर का ओवरफ्लो और ढक्कन उठना जारी रहा। पहले इसमें 600 एम.एम.डाया वाली आर.सी.सी.सीवर पाइप डाली गई थी। जबकी वर्तमान के ठेकेदार को अग्रीमेंट के मुताबिक इसकी जगह 900 एम.एम.डाया वाली डी.आई. (मैटल) पाइप डालनी थी। लेकिन अधिकारियों के साथ मिलीभगत कर ठेकेदार ने सभी को ठग दिया। एस.टी.पी.प्लांट भी सत्तर प्रतिशत बनने के बाद भवन के आगे भारी भूस्खलन हो गया और उसका काम रुक गया। प्रशासन अब प्लांट लगाने के लिए दूसरे स्थान की तलाश कर रहा है। ग्रामीणों समेत नैनीताल शहरवासी अपने को ठगा महसूस कर रहे हैं। लोग अब इस मामले की उच्च स्तरीय जांच की मांग कर रहे हैं। जिलाधिकारी के संज्ञान में आने के बाद उन्होंने इस प्रोजेक्ट की जांच के आदेश दे दिए हैं।
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कार्बेट नेशनल पार्क में वाहन पंजीकरण मामले की हाईकोर्ट में सुनवाई, 10 दिनों के अंदर मांगी रिपोर्ट

नैनीताल: उत्तराखंड हाईकोर्ट ने जिम कार्बेट नेशनल पार्क में जिप्सी संचालन और नए पंजीकरण में स्थानीय वाहन स्वामियों को लॉटरी प्रक्रिया से बाहर रखने के मामले में सुनवाई की। हाईकोर्ट की खंडपीठ ने कॉर्बेट पार्क के डायरेक्टर से पूछा कि स्थानीय लोगों को रोजगार उपलब्ध कराने के लिए जिप्सी पंजीकरण प्रकिया में नए जिप्सी संचालकों के लिए कौन से मानक तय किए गए हैं?
कार्बेट नेशनल पार्क में वाहन पंजीकरण मामले पर हाईकोर्ट की सुनवाई
हाईकोर्ट ने निदेशक से 10 दिनों के अंदर विस्तृत रिपोर्ट पेश करने के लिए कहा है। मामले की सुनवाई के दौरान पूर्व के आदेश पर जिम कार्बेट नेशनल पार्क निदेशक कोर्ट में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए पेश हुए। मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश नरेंद्र व न्यायमूर्ति सुभाष उपाध्याय की खंडपीठ ने की।
मामले के अनुसार स्थानीय निवासी चक्षु करगेती, सावित्री अग्रवाल व अन्य ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर कहा है कि कॉर्बेट पार्क में जिप्सी के लिए लॉटरी प्रक्रिया में भाग लेने के लिए जो गाइडलाइन बनाई गई है, उसमें स्थानीय लोगों को पूरी प्रक्रिया से बाहर रखा जा रहा है। स्थानीय लोगों की ओर से कहा गया कि सभी परमिट होल्डर जिनके पास वैध परमिट हैं और शर्तों को पूरा कर रहे हैं। उन सब को लॉटरी प्रक्रिया से बाहर रखा जा रहा है। स्थानियों ने आरोप लगाते हुए कहा कि लॉटरी प्रक्रिया में पारदर्शिता का आभाव है।
स्थानियों ने लॉटरी पंजीकरण में पारदर्शिता के अभाव का लगाया आरोप
स्थानियों ने दायर याचिका में कहा कि जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क में विशेष कैटिगरी की जिप्सी स्वामी को पंजीकृत किया जा रहा है। और 2 वर्ष पुराने पंजीकृत जिप्सियों को प्रतिभाग करने से रोका जा रहा है। जबकि इन सभी वाहन स्वामियों को पिछले वर्ष आरटीओ से परमिट प्राप्त हुआ है। साथ ही कोर्ट के पूर्व आदेशों का उल्लंघन किया जा रहा है। लॉटरी प्रक्रिया में प्रतिभाग न करने की वजह से जिप्सी संचालक बेरोजगार हो गए हैं। नए बेरोजगारों को रोजगार नहीं मिल पा रहा है, जबकि वे भी स्थानीय लोग हैं, उनको भी रोजगार दिया जाए. इसके जवाब में सरकार की तरफ से कहा गया कि जिन को परमिट दिया गया मानकों के अनुरूप दिया गया है। जो मानक पूर्ण नहीं करते हैं उन्हें लिस्ट से बाहर किया गया है।
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