नैनीताल: उत्तराखंड हाईकोर्ट ने फायर सीजन में राज्य के जंगलों में बार-बार लगने वाली आग को लेकर कड़ी नाराजगी जताई है। कोर्ट ने स्वतः संज्ञान सहित अन्य जनहित याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई करते हुए कहा कि अब जंगलों में आग लगना एक “फेस्टिवल” (त्योहार) बन गया है, लेकिन राज्य सरकार कोई ठोस नीति नहीं बना पा रही है।
हाईकोर्ट ने इस बात पर चिंता जताई कि आग से न केवल पर्यावरण को भारी क्षति हो रही है, बल्कि हिमालयी क्षेत्रों का तापमान भी लगातार बढ़ रहा है। साथ ही जंगलों में रहने वाले वन्यजीव, पक्षी और आम नागरिकों की दिनचर्या भी प्रभावित हो रही है।
कोर्ट में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से पेश हुए पीसीसीएफ (मुख्य वन संरक्षक) ने बताया कि सरकार पूर्व के आदेशों पर काम कर रही है, लेकिन न्यायमित्र मैनाली ने कहा कि 2021 से लेकर अब तक राज्य सरकार ने कोर्ट को केवल आश्वासन दिए हैं, कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई।
न्यायालय ने पूर्व में 2016 और 2017 में फॉरेस्ट फायर रोकथाम के लिए विस्तृत गाइडलाइंस जारी की थीं। इनमें गांव स्तर पर आग बुझाने के लिए कमेटियां गठित करना, जागरूकता अभियान चलाना और जलस्रोतों को खालों के रूप में विकसित करना शामिल था। कोर्ट ने फिर दोहराया कि उच्च हिमालयी क्षेत्रों में ‘खाल’ बनाई जाएं और उनके पानी को फायरलाइन के रूप में इस्तेमाल किया जाए।
न्यायमित्र ने यह भी तर्क दिया कि जंगलों में आग बुझाने के लिए हेलीकॉप्टर का प्रयोग बेहद महंगा है और प्रभावी भी नहीं है। इसके बजाय गांव स्तर पर मजबूत व्यवस्था बनाई जानी चाहिए।
कोर्ट ने इस गंभीर मामले को दोबारा सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया है और संकेत दिए हैं कि यदि सरकार अब भी सक्रिय नहीं हुई, तो सख्त आदेश जारी किए जा सकते हैं।
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