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शेख हसीना को लेकर क्या होगा भारत का फैसला, भारत पर टिकी पूरे दुनिया की निगाहें

बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को सजा-ए-मौत का फरमान जारी होने के बाद से ही भारत-बांग्लादेश प्रत्यर्पण संधि चर्चाओं में है। आपको बता दें कि अंतराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण ( ICT) ने सोमवार 17 नवंबर को अपदस्थ शेख हसीना को उनकी अनुपस्थिति में मानवता के विरुद्ध अपराध के लिए मौत की सजा सुना दी है।
चीन और पकिस्तानबना सकते हैं भारत पर दबाव
अंतराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण, बांग्लादेश ने उन्हें पिछले साल जुलाई-अगस्त में हुए हिंसक विरोध प्रदर्शन को हिंसक तरीके से कुचलने और करीब 1400 प्रदर्शनकारियों की मौत का जिम्मेदार ठहराया है। जहां एक ओर बांग्लादेश की अंतरिम सरकार द्वारा भारत को स्पष्ट रूप से कहा गया है कि अगर भारत शेख हसीना को उन्हें नहीं सौंपता तो इसे शत्रुता पूर्ण व्यवहार माना जाएगा। चीन और पाकिस्तान के लिए भारत को घेरने के लिए ये अच्छा मौका हो सकता है। चीन और पकिस्तान भी इस मामले पर अप्रत्यक्ष रूप से दबाव डालने की कोशिश कर सकते हैं। पूरे विश्वभर में इस मामले को लेकर चर्चाएं तेज हैं ऐसे में सबकी निगाहें भारत पर होंगी।
भारत-बांग्लादेश प्रत्यर्पण संधि को लेकर चर्चाएं क्यों ?
पिछले कई महीनों से बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना भारत में शरण लेकर रह रही हैं। बांग्लादेश की अंतरिम सरकार पहले ही उनका राजनयिक पासपोर्ट रद्द कर चुकी है अब उन्हें मानवता के विरुद्ध अपराध में दोषी ठहराते हुए अंतराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण ने मौत की सजा का फरमान जारी कर दिया है। जिसके बाद बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने भारत सरकार को बकायदा पत्र लिख कर शेख हसीना को वापस सौंपने की मांग की है। जिसमें उनकी ओर से भारत-बांग्लादेश प्रत्यर्पण संधि का हवाला देकर कहा गया कि अगर भारत ऐसा नहीं करता है तो ये अत्यंत शत्रुतापूर्ण व्यवहार होगा।
क्या है भारत बांग्लादेश प्रत्यर्पण संधि ?
भारत-बांग्लादेश प्रत्यर्पण संधि वर्ष 2013 में दोनों देशों की साझा सीमाओं पर आतंकवाद से निपटने के लिए एक रणनीतिक उपाय के रूप में लागू किया गया था। जिसमें वर्ष 2016 में दोनों देशों द्वारा भगोड़ों के आदान-प्रदान के लिए संशोधन किया गया था। इस संधि के तहत कई आपराधिक पृष्टभूमि के लोगों को वापिस सौंपा गया। वर्ष 1975 में में शेख मुजीबुर रहमान की हत्या के मामले में दो दोषियों को फांसी की सज़ा के लिए वर्ष 2020 में बांग्लादेश को वापिस सौंपा गया। प्रतिबंधित यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (उल्फा) के महासचिव अनूप चेतिया का प्रत्यर्पण भी भारत को सफलतापूर्वक किया गया था। इस संधि में ऐसे व्यक्तियों के प्रत्यर्पण का प्रावधान है, जिन पर ऐसे अपराधों के आरोप हैं जिनके लिए कम-से-कम एक वर्ष की सजा दी जा सकती है। प्रत्यर्पण के लिए एक मुख्य आवश्यकता दोहरी आपराधिकता का सिद्धांत है जिसका अर्थ है कि अपराध दोनों देशों में दंडनीय होना चाहिए।
क्या भारत रोक सकता है शेख हसीना की फांसी की सजा ?
पूर्व बांग्लादेशी प्रधानमंत्री शेख हसीना भारत में शरण लेकर रह रही हैं। जबकि उन्हें अंतराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण के द्वारा मौत की सजा का फरमान जारी किया गया है। ऐसे में सवाल ये उठता हैं कि- क्या भारत के पास कुछ ऐसी ताकतें हैं जो शेख हसीना की फांसी की सजा को रोक सकती हैं ? देखिए भारत के पास प्रत्यक्ष रूप से तो ऐसी कोई ताकत नहीं हैं जिस से भारत फांसी की सजा रोक सके। लेकिन कुछ अन्य पहलुओं की मदद से भारत शेख हसीना के प्रत्यर्पण की मांग को अस्वीकार कर सकता है।
भारत के कौन से तर्क हो सकते हैं ख़ास
संधि के अनुच्छेद 6 के अनुसार यदि अपराध राजनीतिक प्रकृति का है तो प्रत्यर्पण से इनकार किया जा सकता है। लेकिन इसकी भी कुछ कठोर सीमाएं तय हैं इसमें हत्या, आतंकवाद से संबंधित अपराध और अपहरण जैसे कई अपराधों को राजनीतिक प्रकृति के रूप में वर्गीकृत नहीं किया गया है। बांग्लादेश में “क्राइम्स अगेंस्ट ह्यूमैनिटी” यानि मानवता के खिलाफ अपराध, देश के युद्ध अपराध कानून के तहत परिभाषित है। लेकिन भारत आमतौर पर ऐसे अपराधों को अंतरराष्ट्रीय अदालतों के संदर्भ में देखता है, घरेलू राजनीतिक घटनाओं के संदर्भ में नहीं। इसीलिए भारत के पास यहां अपने तर्क रखने का मौका है।
क्या होगा अगर भारत प्रत्यर्पण की मांग को अस्वीकार कर दे
अगर फिर भी भारत प्रत्यर्पण की मांग को अस्वीकार कर देता है तो ऐसे में दोनों देशों के संबंधों में बहुत हद तक कड़वाहट पैदा हो सकती है। विशेषज्ञों के अनुसार इससे दोनों देशों के कूटनीतिक ओर व्यापारिक रिश्तों गहरा असर पड़ सकता है। बांग्लादेश की अंतरिम सरकार में सलाहकार मुहमद यूनुस ने शेख हसीना और भारत के खिलाफ “मानवता के विरुद्ध अपराध” शब्द को हथियार बनाया है। बांग्लादेश दक्षिण एशियाई देशों में भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है, जिसका द्विपक्षीय व्यापार वित्त वर्ष 2022-23 में 15.9 बिलियन डॉलर होने का अनुमान है। ऐसे में यह मामला भारत की विदेश नीति के लिए अग्निपरीक्षा साबित हो सकता है।
भारत किसी भी परिस्थिति में शेख हसीना को बांग्लादेश के हवाले नहीं कर सकता : डिप्लोमेट एसडी मुनी
भारत के दिग्गज डिप्लोमेट एसडी मुनी के अनुसार, भारत का मुख्य तर्क ये है कि जिस इंटरनेशनल क्राइम्स ट्रिब्यूनल ने ये फैसला दिया है, उसकी वैधता ही सवालों के घेरे में है। मुनी ने आगे बताया कि शेख हसीना पर हिंसा भड़काने के आरोप लगाए गए हैं, लेकिन इन आरोपों के समर्थन में कोई ठोस सबूत पेश नहीं किए गए। उन्होंने ये भी कहा कि जिन पुलिसकर्मियों पर प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाने के आरोप हैं, उनकी पहचान पुख्ता करना मुश्किल है, क्योंकि वो कोई भी हो सकता है। इसके अलावा मुनी ने संकेत दिया कि इस पूरे प्रकरण में सेना की भी भूमिका रही थी। ऐसे हालात में, उनके मुताबिक, ये पूछना जरूरी है कि जब मामले में सेना सक्रिय हो जाए तो एक प्रधानमंत्री वास्तव में कितना नियंत्रण रख सकता है।
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SC ने बागेश्वर में खड़िया खनन पर लगी रोक हटाई, 29 पट्टाधारकों को दी राहत

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला लेते हुए उत्तराखंड के बागेश्वर जिले में खड़िया खनन पर लगी रोक हटा दी है। कोर्ट ने 29 वैध खनन पट्टा धारकों को तुरंत खनन शुरू करने की मंजूरी देते हुए कहा कि हाई कोर्ट कानूनी रूप से संचालित पट्टों पर पूरी तरह से रोक नहीं लगा सकता है।
SC ने बागेश्वर में खड़िया खनन पर लगी रोक हटाई
सुप्रीम कोर्ट ने बागेश्वर में खड़िया खनन पर लगी रोक को गलत बताते हुए हटा दिया। हाई कोर्ट द्वारा लगाई गई अंतरिम रोक को गलत बताया। दअसल मामला एसएलपी (C) 23540/2025 के अंतर्गत सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा था जिसमें 17 फरवरी 2025 को उत्तराखंड हाईकोर्ट द्वारा जारी आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें बागेश्वर जिले में सोपस्टोन खनन गतिविधियों पर रोक जारी रखी गई थी। सुप्रीम कोर्ट की दो-न्यायाधीशों की खंडपीठ -जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस आलोक अराधे ने कहा कि उत्तराखंड सरकार पहले ही साफ़ कर चुकी है कि सिर्फ नौ पट्टों में ही अनियमितताएं मिली थीं जबकि 29 पट्टाधारक पूरी तरह कानूनी रूप से खनन कर रहे थे। ऐसे में सभी पर एक समान रोक लगाना उचित नहीं है।

खनन पर पूरी तरह से रोक लगाने से राज्य की अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ेगा: SC
कोर्ट ने ये भी माना कि खनन पर पूरी तरह से रोक लगाने से राज्य की अर्थव्यवस्था और स्थानियों की आजीविका पर बुरा असर पड़ेगा। सुप्रीम कोर्ट ने सभी 29 पट्टाधारकों को अपने माइनिंग प्लान और पर्यावरण मंजूरी के अनुसार मशीनों के उपयोग की भी अनुमति दी ।
कोर्ट ने अपने पुराने आदेश (16 सितंबर 2025) का उल्लेख करते हुए याद दिलाया कि वह पहले ही पट्टाधारकों को पहले से निकाले और जमा किए गए सोपस्टोन को बेचने की अनुमति दे चुका है। बशर्ते वे पूरा रिकॉर्ड दें और तय रॉयल्टी का भुगतान करें।
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बड़ी खबर: देहरादून के निजी संस्थान में चल रही एसएससी की ऑन लाइन परीक्षा में पकड़ा गया नकलची, जाँच में जुटी पुलिस

बड़ी खबर: देहरादून के निजी संस्थान में चल रही एसएससी की ऑन लाइन परीक्षा में पकड़ा गया नकलची, जाँच में जुटी पुलिस।
देहरादून : देहरादून के एमकेपी इण्टर कॉलेज कैम्पस में किराए के हॉल में चल रहे महादेव डिजिटल जोन के नाम से ऑन लाईन परीक्षा केंद्र पर आज एसएससी के एग्जाम में एक परीक्षार्थी के पास ब्लूटूथ डिवाइस पकड़ी गई है।यह कार्यवाई ऑन लाइन एग्जाम कराने के लिए सरकार द्वारा अधिकृत एजेन्सी की टीम ने की है।जिसके बाद नकल करने वाले छात्र को पुलिस के हवाले कर दिया गया। मोके पर पहुची पुलिस छात्र से पूछताछ कर साक्ष्य जुटाने में लगी है।हालांकि एग्जाम अभी भी जारी है ,यह एग्जाम डेढ़ घंटे का होता है। अभी तक आज सुबह से इस सेन्टर पर दो पाली की परीक्षा सम्पन्न हो चुकी है जबकि तीसरी पाली की परीक्षा के लिए परीक्षार्थी सेन्टर पर पहुंचे है।
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कार्बेट नेशनल पार्क में वाहन पंजीकरण मामले की हाईकोर्ट में सुनवाई, 10 दिनों के अंदर मांगी रिपोर्ट

नैनीताल: उत्तराखंड हाईकोर्ट ने जिम कार्बेट नेशनल पार्क में जिप्सी संचालन और नए पंजीकरण में स्थानीय वाहन स्वामियों को लॉटरी प्रक्रिया से बाहर रखने के मामले में सुनवाई की। हाईकोर्ट की खंडपीठ ने कॉर्बेट पार्क के डायरेक्टर से पूछा कि स्थानीय लोगों को रोजगार उपलब्ध कराने के लिए जिप्सी पंजीकरण प्रकिया में नए जिप्सी संचालकों के लिए कौन से मानक तय किए गए हैं?
कार्बेट नेशनल पार्क में वाहन पंजीकरण मामले पर हाईकोर्ट की सुनवाई
हाईकोर्ट ने निदेशक से 10 दिनों के अंदर विस्तृत रिपोर्ट पेश करने के लिए कहा है। मामले की सुनवाई के दौरान पूर्व के आदेश पर जिम कार्बेट नेशनल पार्क निदेशक कोर्ट में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए पेश हुए। मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश नरेंद्र व न्यायमूर्ति सुभाष उपाध्याय की खंडपीठ ने की।
मामले के अनुसार स्थानीय निवासी चक्षु करगेती, सावित्री अग्रवाल व अन्य ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर कहा है कि कॉर्बेट पार्क में जिप्सी के लिए लॉटरी प्रक्रिया में भाग लेने के लिए जो गाइडलाइन बनाई गई है, उसमें स्थानीय लोगों को पूरी प्रक्रिया से बाहर रखा जा रहा है। स्थानीय लोगों की ओर से कहा गया कि सभी परमिट होल्डर जिनके पास वैध परमिट हैं और शर्तों को पूरा कर रहे हैं। उन सब को लॉटरी प्रक्रिया से बाहर रखा जा रहा है। स्थानियों ने आरोप लगाते हुए कहा कि लॉटरी प्रक्रिया में पारदर्शिता का आभाव है।
स्थानियों ने लॉटरी पंजीकरण में पारदर्शिता के अभाव का लगाया आरोप
स्थानियों ने दायर याचिका में कहा कि जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क में विशेष कैटिगरी की जिप्सी स्वामी को पंजीकृत किया जा रहा है। और 2 वर्ष पुराने पंजीकृत जिप्सियों को प्रतिभाग करने से रोका जा रहा है। जबकि इन सभी वाहन स्वामियों को पिछले वर्ष आरटीओ से परमिट प्राप्त हुआ है। साथ ही कोर्ट के पूर्व आदेशों का उल्लंघन किया जा रहा है। लॉटरी प्रक्रिया में प्रतिभाग न करने की वजह से जिप्सी संचालक बेरोजगार हो गए हैं। नए बेरोजगारों को रोजगार नहीं मिल पा रहा है, जबकि वे भी स्थानीय लोग हैं, उनको भी रोजगार दिया जाए. इसके जवाब में सरकार की तरफ से कहा गया कि जिन को परमिट दिया गया मानकों के अनुरूप दिया गया है। जो मानक पूर्ण नहीं करते हैं उन्हें लिस्ट से बाहर किया गया है।
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