Pithauragarh
सीमा की शेरनी बनीं नेहा भंडारी, ऑपरेशन सिंदूर में निभाई बड़ी भूमिका, सेना ने किया सम्मानित…

पिथौरागढ़ (उत्तराखंड): राज्य का नाम एक बार फिर गर्व से ऊंचा हुआ है। उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले की रहने वाली और तीसरी पीढ़ी की अधिकारी नेहा भंडारी ने सीमा सुरक्षा बल (BSF) की अग्रिम चौकी की कमान संभालते हुए ऑपरेशन सिंदूर में अपनी वीरता का ऐसा परिचय दिया…जो आज पूरे देश के लिए गर्व का विषय बन गया है।
नेहा को जम्मू-कश्मीर के अखनूर सेक्टर के परगवाल क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय सीमा पर अग्रिम चौकी की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। इस दौरान पाकिस्तान द्वारा की गई गोलाबारी का उन्होंने ना सिर्फ़ मुंहतोड़ जवाब दिया…बल्कि पाकिस्तान सेना को खदेड़ने में भी अग्रणी भूमिका निभाई। बता दें कि नेहा भंडारी तीसरी पीढ़ी की अधिकारी हैं। उनके दादा भारतीय सेना में सेवारत थे, वहीं माता-पिता दोनों केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (CRPF) में कार्यरत हैं। ऐसे माहौल में पली-बढ़ी नेहा ने बचपन से ही वर्दी पहनने का सपना देखा था…जो साल 2022 में BSF की असिस्टेंट कमांडेंट बनकर उन्होंने साकार किया।
ऑपरेशन सिंदूर के दौरान नेहा के पास बटालियन मुख्यालय में जाने का विकल्प था…लेकिन उन्होंने उसे ठुकरा दिया और सीमा की सबसे आगे की चौकी पर तैनात रहना चुना। तीन दिनों तक चले इस ऑपरेशन में नेहा ने अपनी टीम के साथ मिलकर दुश्मन के ठिकानों को निशाना बनाया। इस दौरान पाकिस्तान की ओर से भारी गोलाबारी हुई…लेकिन नेहा ने सीमा पर डटकर मोर्चा संभाला। उन्होंने दिखा दिया कि महिलाएं अब किसी भी क्षेत्र में पुरुषों से पीछे नहीं हैं। नेहा भंडारी ऑपरेशन सिंदूर के दौरान अंतरराष्ट्रीय सीमा पर अग्रिम चौकी की कमान संभालने वाली BSF की एकमात्र महिला अधिकारी थीं। उन्होंने ना सिर्फ रणनीति में हिस्सा लिया बल्कि गोलाबारी में भी अपनी भूमिका निभाई।
कांस्टेबल शंकरी दास ने बताया कि उन्हें लगातार सतर्क रहने के आदेश थे…और जैसे ही गोलाबारी शुरू हुई, उन्होंने मोर्चा संभाल लिया। भारतीय सेना के प्रमुख जनरल उपेंद्र त्रिवेदी ने बीते शुक्रवार को नेहा भंडारी को एक प्रतिष्ठित पत्र प्रदान किया। यह सम्मान उन्हें पाकिस्तान के खिलाफ ऑपरेशन सिंदूर के दौरान साहस और नेतृत्व के लिए दिया गया। इस दौरान नेहा बताती हैं कि यह मेरे लिए सिर्फ ड्यूटी नहीं, गर्व और कर्तव्य दोनों का विषय है। मैंने जो सीखा है…वही अब देश के लिए लौटा रही हूं।
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पिथौरागढ़ में अब होगी 72 सीटर विमान की लैंडिंग, एयरपोर्ट विस्तार को मिली हरी झंडी

पिथौरागढ़: सीमांत ज़िले पिथौरागढ़ के लोगों के लिए एक बड़ी खुशखबरी सामने आई है। अब जल्द ही नैनीसैनी एयरपोर्ट से 72 सीटर विमानों की नियमित उड़ानें शुरू हो सकेंगी। यह संभव हो पाएगा एयरपोर्ट के उच्चीकरण के बाद जिसे लेकर भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण (AAI) के प्रस्ताव को राज्य सरकार की सैद्धांतिक स्वीकृति मिल चुकी है।
फिलहाल नैनीसैनी एयरपोर्ट ‘टू-सी’ श्रेणी में आता है, जिसमें छोटे विमानों की ही उड़ानों की अनुमति थी। लेकिन अब इसे ‘थ्री-सी’ श्रेणी में अपग्रेड किया जाएगा…जिससे बड़े विमान यहां से उड़ान भर सकेंगे। इसके बाद एयरपोर्ट से 72 सीटर विमानों की आवाजाही संभव हो सकेगी।
विमानपत्तन प्राधिकरण की रिपोर्ट के आधार पर जिला प्रशासन ने एयरपोर्ट के तकनीकी सर्वे का कार्य पूरा कर लिया है और अब विस्तारीकरण का विस्तृत प्रस्ताव तैयार कर शासन को भेजने की तैयारी की जा रही है। जिलाधिकारी विनोद गोस्वामी ने कहा कि नैनीसैनी एयरपोर्ट का उच्चीकरण पूरे जिले के लिए गौरव की बात है। इससे ना सिर्फ पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा…बल्कि सीमा क्षेत्र की सुरक्षा को भी मजबूती मिलेगी।
एयरपोर्ट के विस्तार के लिए भूमि अधिग्रहण एक बड़ी चुनौती के रूप में सामने आ रही है। नैनीसैनी एयरपोर्ट के चारों ओर के क्षेत्र में स्थानीय ग्रामीणों के उपजाऊ खेत हैं…जहां बासमती व अन्य किस्मों की धान की खेती होती है। पूर्व में भी जब एयरपोर्ट की जमीन अधिग्रहित की गई थी तब कई आंदोलनों का सामना करना पड़ा था। अब एक बार फिर प्रशासन को स्थानीय लोगों को विश्वास में लेकर जमीन अधिग्रहण की प्रक्रिया को आगे बढ़ाना होगा। इसके साथ ही आसपास बने कई भवनों को हटाने की भी ज़रूरत पड़ेगी…जिनका सर्वे कार्य प्रारंभ कर दिया गया है।
इस उच्चीकरण और विस्तार के बाद पिथौरागढ़ जिले को सीधे हवाई मार्ग से जोड़ना आसान होगा। मुनस्यारी, चौकोड़ी, आदि कैलाश, पाताल भुवनेश्वर जैसे पर्यटन स्थलों तक पहुंचने के लिए यात्रियों को एक सुविधाजनक विकल्प मिलेगा। इससे स्थानीय लोगों को आर्थिक और व्यावसायिक अवसर भी मिलेंगे।
जिलाधिकारी विनोद गोस्वामी ने बताया कि नैनीसैनी एयरपोर्ट के उच्चीकरण की स्वीकृति मिलना पूरे जिले के लिए गौरव की बात है। विस्तारीकरण का प्रस्ताव शासन को भेजा जाएगा। इससे पिथौरागढ़ को नई पहचान मिलेगी और पर्यटन को रफ्तार मिलेगी।
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पिथौरागढ़ में ततैयों का कहर: स्कूल जाते चार छात्र घायल, एक आईसीयू में भर्ती

पिथौरागढ़ (उत्तराखंड ): शनिवार को पिथौरागढ़ जिले के सीमांत डुंगरा गांव में एक भयावह घटना ने स्थानीय लोगों को दहशत में डाल दिया। स्कूल जा रहे चार छात्रों पर ततैयों के झुंड ने हमला कर दिया, जिसमें सभी घायल हो गए। इनमें से एक छात्रा की हालत गंभीर बनी हुई है और उसे जिला अस्पताल के आईसीयू में भर्ती किया गया है।
स्कूल के रास्ते में हुआ हमला
सुबह करीब साढ़े सात बजे का वक्त था। दिव्यांशु (14), निशा (15), अनिकेत (13) और कमल सिंह (16) रोज़ की तरह अपने गांव डुंगरा से पैदल ही पास के राजकीय हाईस्कूल पाभैं की ओर जा रहे थे। रास्ते में अचानक एक पेड़ पर बने ततैयों के छत्ते से झुंड निकलकर बच्चों पर टूट पड़ा। बच्चों ने जान बचाने की पूरी कोशिश की, दौड़े, चिल्लाए… लेकिन ततैयों के डंक से कोई नहीं बच सका।
चारों छात्र अस्पताल में भर्ती, छात्रा की हालत गंभीर
घटना की जानकारी मिलते ही परिजन बच्चों को लेकर फौरन जिला अस्पताल पहुंचे। डॉक्टरों की टीम ने तत्काल इलाज शुरू किया। डॉक्टर भागीरथी गर्ब्याल, पीएमएस, जिला अस्पताल पिथौरागढ़ ने बताया कि चारों बच्चे अस्पताल लाए गए थे। तीन की हालत अब ठीक है…लेकिन छात्रा निशा को सांस लेने में तकलीफ और ब्लड प्रेशर गिरने की वजह से आईसीयू में भर्ती किया गया है। फिलहाल वह खतरे से बाहर है।
इस घटना ने गांववालों को झकझोर कर रख दिया है। अभिभावक डरे हुए हैं और अपनी चिंता साफ तौर पर जता रहे हैं। उनका कहना है कि जब तक ततैयों के छत्ते नहीं हटाए जाते और सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम नहीं किए जाते….वे बच्चों को स्कूल नहीं भेजेंगे।
घटना की जानकारी मिलने के बाद वन विभाग भी सक्रिय हुआ है। रेंजर पूरन देउपा ने कहा कि डुंगरा गांव में छात्रों पर ततैयों के हमले की जानकारी मिली है। विभागीय टीम जल्द मौके पर जाकर निरीक्षण करेगी और ततैयों से निपटने के लिए जरूरी कदम उठाए जाएंगे।
यह कोई पहली घटना नहीं है जब ततैयों के हमले ने किसी की जान खतरे में डाली हो। सिर्फ तीन हफ्ते पहले मुनस्यारी के चौना गांव में एक 54 वर्षीय व्यक्ति की ततैयों के हमले से मौत हो गई थी। बीते पांच वर्षों में ऐसे हमलों में 12 से अधिक लोग अपनी जान गंवा चुके हैं।
कैसे बचें ततैयों के हमले से? कुछ ज़रूरी सुझाव
शांत रहें: ततैया दिखने पर दौड़ें नहीं, उन्हें उकसाने से वे आक्रामक हो जाती हैं।
तेज़ सुगंध से बचें: इत्र, परफ्यूम या मीठी गंध वाले उत्पाद बाहर न लगाएं।
पूरी बाजू के कपड़े पहनें: खेतों, जंगलों में जाते समय शरीर को ढकना ज़रूरी है।
भोजन ढककर रखें: मीठे पेय और खाद्य पदार्थ ततैयों को आकर्षित करते हैं।
छत्ते से दूरी रखें: खुद से छत्ता हटाने की कोशिश न करें। विशेषज्ञ की मदद लें।
प्राकृतिक उपाय: नींबू में लौंग गाड़कर रखने से ततैयों को दूर रखा जा सकता है।
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थल-पिथौरागढ़ सड़क पर फिर दर्दनाक हादसा, पूर्व फौजी और चालक की मौत

पिथौरागढ़: सीमांत जिले पिथौरागढ़ में शुक्रवार की दोपहर एक दर्दनाक हादसे ने दो परिवारों को गहरे शोक में डुबो दिया। थल से डुंगरीगाड़ा जा रही एक ऑल्टो कार अचानक बेकाबू होकर 150 मीटर गहरी खाई में जा गिरी। इस हादसे में कार सवार पूर्व फौजी मोहन सिंह बसेड़ा (65) और चालक तुषार चौहान (25) की मौके पर ही मौत हो गई।
प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, हादसा थल से करीब 9 किलोमीटर दूर मालाझूला के पास हुआ। बताया जा रहा है कि पूर्व फौजी मोहन सिंह शुक्रवार सुबह अपनी पेंशन लेने थल के बैंक गए थे। पेंशन लेकर लौटते वक्त, दोपहर करीब साढ़े तीन बजे, उनका वाहन अचानक खाई में जा गिरा। कार में सिर्फ दो ही लोग सवार थे मोहन सिंह और चालक तुषार चौहान…जो सानीखेत गांव के रहने वाले थे।
जैसे ही थल पुलिस को दुर्घटना की सूचना मिली थानाध्यक्ष प्रकाश चंद्र पांडे अपनी टीम के साथ मौके पर पहुंचे। काफी मशक्कत के बाद दोनों शवों को खाई से निकालकर सड़क तक लाया गया। हादसे की खबर जैसे ही गांव में पहुंची पूरे डुंगरीगाड़ा और सानीखेत में शोक की लहर दौड़ गई। ग्रामीणों के मुताबिक मोहन सिंह बसेड़ा बेहद मिलनसार और अनुशासित व्यक्ति थे…जिन्होंने फौज से सेवा निवृत्ति के बाद भी गांव की सेवा में खुद को समर्पित किया हुआ था।
यह पहली बार नहीं है जब थल क्षेत्र में ऐसा कोई हादसा हुआ हो। तीन महीने पहले 15 जुलाई को मुवानी के पास एक बड़ा सड़क हादसा हुआ था…जिसमें एक ही गांव के आठ लोगों की दर्दनाक मौत हो गई थी जिनमें छात्राएं, महिलाएं और एक मासूम बच्ची भी शामिल थीं।
थल-पिथौरागढ़ और थल-उडियारी बैंड मोटर मार्गों की हालत इन दिनों बेहद चिंताजनक बनी हुई है। बरसात के बाद सड़क के दोनों ओर घनी झाड़ियां उग आई हैं…जिससे सड़कें संकरी हो गई हैं और हर मोड़ पर दुर्घटना का डर बना हुआ है। ये दोनों सड़कें लोक निर्माण विभाग (PWD) के अधीन आती हैं…लेकिन अभी तक इनकी साफ-सफाई को लेकर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है।
जहां एक ओर सरकार सड़क सुरक्षा को लेकर लगातार दावे कर रही है वहीं जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है। ग्रामीणों का कहना है कि अगर समय रहते इन सड़कों की सफाई कर दी जाती और रेलिंग या संकेतक लगाए जाते…तो शायद आज दो जानें बच सकती थीं।
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