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लीलियम की खेती से चमोली के काश्तकारों की बदल रही है किस्मत, 21 किसानों ने शुरू किया कमाई का नया रास्ता।

चमोली: चमोली जिले में लीलियम की खेती को लेकर काश्तकारों का रुझान बढ़ने लगा है। जिले में उद्यान विभाग की ओर से संचालित योजनाओं के तहत वर्तमान में 21 काश्तकार लीलियम की खेती कर लाखों की आय अर्जित कर रहे हैं। जिससे अब अन्य काश्तकार पर भी लीलियम उत्पादन को लेकर उत्सुक हैं। विभागीय अधिकारियों की मानें तो जनपद में वर्तमान तक 40 से अधिक किसान लीलियम उत्पादन के लिए आवेदन कर चुके हैं।
लीलियम का फूल गुलदस्ते के साथ ही शादी, विवाह, पार्टी और समारोह में भी सजावट के लिए उपयोग किया जाता है। जिससे लिलियम के फूल की बाजार में बेहतर मांग है। फूल की एक पंखुड़ी की बाजार में 50 से 100 रुपये तक की कीमत आसानी से मिल जाती है। ऐसे में फूल के बेहतर बाजार को देखते हुए उद्यान विभाग चमोली ने जिला योजना मद से 80 फीसदी सब्सिडी पर लीलियम उत्पादन के लिए काश्तकारों को प्रोत्साहित किया। जिसके चलते बीते वर्ष 21 प्रगतिशील काश्तकारों के 26 पॉलीहाउस में करीब 5 लाख 50 हजार की लीलियम स्टिक का विपणन किया । वहीं इस वर्ष काश्तकारों की ओर 35 हजार बल्ब का रोपण किया गया था। जिसका विपणन कर काश्तकार करीब 7 लाख 50 हजार की आय अर्जित कर चुके हैं। लीलियम का विपणन में हो रहे मुनाफे को देखते हुए अब जनपद में अन्य काश्तकारों का भी इस ओर रुझान बढ़ने लगा है।
उद्यान विभाग के सहायक विकास अधिकारी रघुवीर सिंह राणा का कहना है कि काश्तकारों ओर से जहां बड़ी संख्या में लीलियम उत्पादन को लेकर जानकारी ली जा रही है। वहीं जनपद में 40 से अधिक काश्तकारों की ओर से आवेदन दिए गए हैं।
काश्तकारों ने विपणन के लिये विभाग के सहयोग से तैयार किया चैनल
चमोली में उत्पादित फूलों के विपणन के लिये जहां पहली बार विभाग की ओर से विपणन की व्यवस्था की गई। वहीं अब काश्तकारों ने विभाग के सहयोग से फूलों के विपणन का चैनल तैयार कर लिया है। काश्तकारों ने बताया कि उनके फूल की मांग गाजीपुर मंडी में बड़े पैमाने पर है। उन्होंने कहा कि पूर्व में फूलों की विपणन की समुचित व्यवस्था न होने से फूलों का उत्पादन करने से काश्तकार में शंका रहती थी। लेकिन अब विपणन की व्यवस्था होने के चलते फूलों का उत्पादन लाभप्रद साबित हो रहा है।
क्या है लीलियम का फूल–
लिली के नाम से पुकारे जाने फूल का वैज्ञानिक नाम लिलियम है। यह लिलीयस कुल का पौधा है। यह 6 पंखुड़ी वाला सफेद, नारंगी, पीले, लाल और गुलाबी रंगों का फूल होता है। जापान में जहंा सफेल लिली को सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है। वहीं नारंगी लिली को वृद्धि और उत्साह का प्रतीक माना जाता। लिली के पौधे अर्द्ध कठोर होता है। इसके फूल कीप के आकार के होते हैं। इस का उपयोग सजावट के साथ ही सौंदर्य प्रसाधनों के निर्माण में भी किया जाता है। भारत में इसके फूल ऋतु में उगाए जाते हैं। उद्यान विशेषज्ञों के अनुसार पॉलीहाउस में फूल 70 दिनों में उपयोग के लिये तैयार हो जाता है।
क्या कहते हैं काश्तकार——
1. गोपेश्वर निवासी नीरज भट्ट का कहना है कि चालू वित्तीय वर्ष में उन्होंने गोपेश्वर के समीप रौली-ग्वाड़ में 10 नाली भूमि क्रय और 20 नाली भूमि लीज पर लेकर सरकार की ओर से मिलने वाली सब्सिडी से पॉलीहाउस स्थापित किया। जिसमें उन्होंने जहां 200 किवी के पौधों का रोपण किया। वहीं 400 वर्ग मीटर में लीलियम का उत्पादन शुरू किया। जिससे वर्तमान तक नीरज दो लाख की शुद्ध आय प्राप्त कर चुके हैं।
2. बैरागना गांव निवासी भूपाल सिंह राणा का कहना है कि बीते वर्ष घर के समीप ही उद्यान विभाग की ओर से मिले सहयोग से 100 स्क्वायर मीटर का पॉलीहाउस स्थापित किया था। जिसमें 2 हजार बल्ब का रोपण किया था। इस वर्ष वर्तमान तक 44 हजार की आय अर्जित हो गई है।
चमोली के दशोली, पोखरी और कर्णप्रयाग में संरक्षित कृषिकरण में लीलियम का उत्पादन किया जा रहा है। वर्तमान जिले के 21 किसान लीलियम का उत्पादन कर रहे है। वहीं विभाग की ओर से फूलों के विपणन के लिये गाजीपुर मंडी का चैनल बनाया गया है। जिससे काश्तकारों को अपनी उपज के विपणन में सहूलित हो रही है और काश्तकारों को हो रहे मुनाफे को देखते हुए अन्य काश्तकारों का भी इस ओर रुझान बढ़ रहा है। जेपी तिवारी, मुख्य कृषि एवं उद्यान अधिकारी, चमोली
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भूस्खलन से बाधित बदरीनाथ हाईवे, प्रशासन राहत कार्य में जुटा

चमोली: चमोली जिले में ऋषिकेश-बदरीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग एक बार फिर भूस्खलन की चपेट में आ गया है। गौचर से कर्णप्रयाग के बीच हुए भारी भूस्खलन के चलते हाईवे पूरी तरह बंद हो गया है, जिससे दोनों ओर वाहनों की लंबी कतारें लग गई हैं।
प्रशासन की ओर से हाईवे को जल्द से जल्द सुचारू करने के प्रयास जारी हैं। भारी मशीनरी के माध्यम से मलबा हटाने का काम चल रहा है और अधिकारियों का कहना है कि कुछ ही समय में रास्ता फिर से खोल दिया जाएगा। सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए, भूस्खलन प्रभावित क्षेत्रों में पुलिस बल तैनात कर दिया गया है।
हालांकि दोपहर के बाद बारिश थम गई थी और अधिकांश हिस्सों में हाईवे चालू कर दिया गया था, लेकिन चमोली की भौगोलिक स्थिति को देखते हुए यहां भूस्खलन की आशंका लगातार बनी रहती है। विशेषकर पीपलकोटी और भनेरपानी जैसे इलाकों में अभी भी सक्रिय भूस्खलन हो रहा है। इन क्षेत्रों में प्रशासन ने निगरानी के लिए सीसीटीवी कैमरे लगाए हैं, ताकि स्थिति पर लगातार नजर रखी जा सके।
राज्य के कई हिस्सों में पिछले कुछ दिनों से भारी बारिश हो रही है, जिससे आपदा जैसे हालात बन गए हैं। मौसम विभाग भी लगातार अलर्ट जारी कर रहा है। एहतियात के तौर पर कई जिलों में स्कूलों की छुट्टियां घोषित की गई हैं।
जिला प्रशासन भी पूरी तरह सतर्क मोड में है। सभी जिलाधिकारियों को लैंडस्लाइड संभावित क्षेत्रों में जेसीबी और अन्य जरूरी संसाधन पहले से तैनात रखने के निर्देश दिए गए हैं। रिस्पॉन्स टाइम कम करने पर भी जोर दिया जा रहा है।
इसके अलावा, नदी-नालों के किनारे बसे लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाने, राहत सामग्री और दवाओं का पर्याप्त स्टॉक रखने, और प्रशासनिक टीमों को अलर्ट पर रहने के निर्देश दिए गए हैं।
स्थिति पर प्रशासन की नजर बनी हुई है, और आम जनता से अपील की गई है कि अनावश्यक यात्रा से बचें और प्रशासन द्वारा जारी निर्देशों का पालन करें।
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हेमकुंड साहिब में अब तक 2.28 लाख श्रद्धालु, 10 अक्तूबर को कपाट बंद होंगे

हेमकुंड साहिब। देवभूमि उत्तराखंड में स्थित विश्व प्रसिद्ध सिख तीर्थ स्थल हेमकुंड साहिब में श्रद्धालुओं की आस्था का सैलाब लगातार उमड़ रहा है। इस वर्ष यात्रा की शुरुआत 25 मई से हुई थी और महज दो महीनों में ही अब तक 2.28 लाख से अधिक श्रद्धालु पवित्र गुरुद्वारे में मत्था टेक चुके हैं।
हेमकुंड साहिब प्रबंधक ट्रस्ट के अध्यक्ष नरेंद्रजीत सिंह बिंद्रा के अनुसार, इस बार भीषण बारिश और दुर्गम रास्तों के बावजूद श्रद्धालुओं की आस्था में कोई कमी नहीं आई है। बड़ी संख्या में लोग यहां हिम सरोवर के किनारे विराजमान ब्रह्मकमल समेत दुर्लभ फूलों के नजारे भी देख रहे हैं।
बिंद्रा ने बताया कि हेमकुंड साहिब के कपाट परंपरा के अनुसार आगामी 10 अक्तूबर को शीतकाल के लिए बंद कर दिए जाएंगे। इसके बाद गुरुद्वारा पूरी तरह बर्फ से ढक जाता है और अगले वर्ष गर्मियों में कपाट खोले जाने तक श्रद्धालुओं की आवाजाही थम जाती है।
इन दिनों हेमकुंड साहिब का प्राकृतिक सौंदर्य भी अपने चरम पर है, जो श्रद्धालुओं और पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित कर रहा है। प्रशासन और ट्रस्ट की ओर से यात्रा को सुगम और सुरक्षित बनाने के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं।
प्रशासन ने श्रद्धालुओं से अपील की है कि वे मौसम की परिस्थितियों को देखते हुए यात्रा पर निकलें और जरूरी एहतियात जरूर बरतें, ताकि सभी लोग सुरक्षित और सुखद यात्रा का अनुभव कर सकें।
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चमोली में बड़ा हादसा टला: हेलंग डैम साइट पर पहाड़ टूटा, मची अफरा-तफरी

चमोली। चमोली जिले के हेलंग में उस वक्त हड़कंप मच गया जब निर्माणाधीन विष्णुगाड़-पीपलकोटी जल विद्युत परियोजना की डाइवर्जन साइट के पास शनिवार को अचानक बड़ा भूस्खलन हो गया। अलकनंदा नदी के किनारे बने इस डैम साइट पर उस समय करीब 200 मजदूर काम पर तैनात थे, लेकिन गनीमत रही कि चट्टान गिरने के वक्त कोई मजदूर उस जगह मौजूद नहीं था, जिससे बड़ा हादसा टल गया।
सोशल मीडिया पर भूस्खलन का वीडियो भी वायरल हो रहा है, जिसमें साफ देखा जा सकता है कि पहाड़ का एक बड़ा हिस्सा भरभराकर टूटकर नीचे गिर रहा है। वीडियो में वहां मौजूद लोगों की घबराहट और अफरा-तफरी का माहौल भी नजर आ रहा है।
मौके पर पहुंचा प्रशासन
जानकारी के मुताबिक, इस डाइवर्जन साइट पर टीएचडीसी की सहायक कंपनी एचसीसी निर्माण कार्य कर रही है। घटना की सूचना मिलते ही जिला प्रशासन की टीम मौके पर पहुंच गई है और स्थिति का जायज़ा लिया जा रहा है।
फिलहाल किसी मजदूर के हताहत होने की सूचना नहीं है, लेकिन भूस्खलन के बाद सुरक्षा के लिहाज से निर्माण कार्य को कुछ समय के लिए रोक दिया गया है।
बड़ा हादसा होने से टला
विशेषज्ञों के अनुसार, पहाड़ी इलाकों में लगातार हो रही बारिश की वजह से चट्टानों में दरारें पड़ जाती हैं, जिससे ऐसे हादसों की आशंका बनी रहती है। गनीमत यही रही कि हादसे के समय मजदूर सुरक्षित जगह पर थे और कोई बड़ा नुकसान नहीं हुआ।
प्रशासन ने लोगों से अपील की है कि वे निर्माणाधीन स्थल के आसपास न जाएं और पूरी तरह से सतर्क रहें।
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