ऋषिकेश: सुविधाओं के अभाव में कैंसर का इलाज बीच में छोड़ने वाले मरीजों के लिए अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) ने एक नई पहल शुरू की है। एम्स नेशनल हेल्थ मिशन के तहत हब एंड स्पोक मॉडल की तर्ज पर कार्य कर रहा है, जिससे मरीजों को घर के नजदीक ही कैंसर उपचार की सुविधा मिल रही है। इस मॉडल से मरीजों को समय और धन की बचत हो रही है, और वे आसानी से इलाज करवा पा रहे हैं।
एम्स के कैंसर विभाग के विशेषज्ञों के अनुसार, पिछले आठ वर्षों में कैंसर के मरीजों की संख्या में पांच गुना वृद्धि हुई है। जहां 2016 में एम्स में प्रतिदिन 40 मरीज ओपीडी में आते थे, अब यह आंकड़ा बढ़कर 200 से ऊपर पहुंच चुका है। पूरे देश में, 2023 के आंकड़ों के अनुसार, प्रतिवर्ष 14 से 15 लाख नए कैंसर के मरीज सामने आ रहे हैं, लेकिन उपचार के लिए अस्पतालों की कमी और अपर्याप्त संसाधनों के कारण कई लोग उपचार बीच में छोड़ देते हैं।
इस समस्या के समाधान के लिए एम्स ने हब एंड स्पोक मॉडल को लागू किया है। इस प्रणाली के तहत बड़े अस्पतालों में कैंसर के मरीजों का ऑपरेशन और कीमोथेरेपी की प्रक्रिया की जाएगी, और फिर प्रशिक्षित स्टाफ जिले स्तर के अस्पतालों में मरीजों का इलाज करेगा। इससे मरीजों को बड़े अस्पतालों में बार-बार जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी।
एम्स के ऑन्कोलॉजी विभाग के डॉ. दीपक सुंद्रियाल का कहना है कि कैंसर के मरीजों की बढ़ती संख्या को देखते हुए हब एंड स्पोक मॉडल को लागू करना बेहद महत्वपूर्ण था। इस मॉडल के तहत, एम्स हब के रूप में कार्य करेगा और जिले स्तर के अस्पताल इसके स्पोक के रूप में जुड़ेंगे। इससे मरीजों को आसान और सस्ता उपचार मिलेगा।
एम्स के कैंसर विभाग द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार, 172 मरीजों में से अधिकांश ने इलाज बीच में छोड़ दिया था, और उनमें से सबसे ज्यादा मरीजों का कहना था कि सामाजिक सहयोग की कमी, गरीबी, और अस्पताल तक पहुंचने में कठिनाई के कारण वे इलाज नहीं करवा सके। इस शोध के परिणाम अमेरिका के प्रसिद्ध जनरल ऑफ क्लीनिकल ऑन्कोलॉजी में 7 नवंबर को प्रकाशित हुए थे।
हब एंड स्पोक मॉडल से मरीजों को बड़ी राहत मिलेगी, क्योंकि उन्हें इलाज के लिए लंबा सफर तय करने की जरूरत नहीं होगी। डॉ. सुंद्रियाल का कहना है कि इस मॉडल से न केवल मरीजों की इलाज की स्थिति बेहतर होगी, बल्कि उनका आर्थिक बोझ भी कम होगा।
फायदे:
- सुविधा: मरीजों को घर के पास इलाज की सुविधा मिलेगी।
- समय और धन की बचत: मरीजों को बार-बार बड़े अस्पतालों में जाने की जरूरत नहीं होगी।
- समाज में जागरूकता: जिन मरीजों के पास तीमारदार नहीं हैं, उन्हें भी राहत मिलेगी।
- बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं: हब एंड स्पोक मॉडल के तहत इलाज की गुणवत्ता में सुधार होगा।
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