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पाकिस्तान में कंगाली के हालात: सरकारी स्कूलों के अध्यापकों को आठ महीने से नहीं मिली सैलरी !

इस्लामाबाद: पाकिस्तान की गंभीर आर्थिक स्थिति ने शिक्षा प्रणाली को भी प्रभावित किया है। खैबर पख्तूनख्वा राज्य में सरकारी स्कूलों के अध्यापकों को पिछले आठ महीनों से सैलरी नहीं मिल पाई है। इससे न केवल अध्यापकों को बल्कि लाखों छात्रों का भविष्य भी अधर में लटक गया है।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, जिन 2200 गर्ल्स कम्युनिटी स्कूलों, 541 बेसिक शिक्षा स्कूलों और 275 नेशनल कमीशन ऑफ ह्युमन डेवलेपमेंट स्कूलों के अध्यापकों को वेतन नहीं मिल रहा, उनकी हालत काफी खराब हो गई है। उल्लेखनीय है कि पाकिस्तान सरकार ने अकुशल मजदूरों का न्यूनतम वेतन 36,000 पाकिस्तानी रुपये तय किया है, लेकिन इन अध्यापकों को सिर्फ 21,000 रुपये वेतन मिलता है, जो किसी मजदूर से भी कम है।
इस स्थिति ने शिक्षा प्रणाली पर गहरा असर डाला है। अध्यापक अब आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं और कई स्कूलों को बंद होने का खतरा भी मंडरा रहा है। खासकर वे स्कूल जो किराए की इमारतों में चल रहे हैं, उन्हें असमर्थता के कारण खाली करने की धमकी मिल रही है।
अध्यापक इस समय सैलरी की किल्लत से जूझते हुए खुद को और अपने परिवारों को संभालने में मुश्किलों का सामना कर रहे हैं। उनके अनुसार, फंड जारी न होने के कारण स्कूलों का संचालन संकट में पड़ चुका है। अगर सरकार की ओर से जल्द कोई कदम नहीं उठाया गया, तो कई स्कूल बंद हो सकते हैं, जिससे शिक्षा की गुणवत्ता और छात्रों का भविष्य बुरी तरह प्रभावित होगा।
स्थानीय फाउंडेशन ने बताया कि अध्यापकों की सैलरी के लिए सरकार को 2 अरब रुपये की जरूरत है, लेकिन अब तक कोई फंड जारी नहीं किया गया है। इस सबके बीच, पूर्व मैनेजिंग डायरेक्टर के स्थानांतरण के बाद से ही सैलरी के मामले में यह संकट बढ़ गया है।
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शेख हसीना को लेकर क्या होगा भारत का फैसला, भारत पर टिकी पूरे दुनिया की निगाहें

बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को सजा-ए-मौत का फरमान जारी होने के बाद से ही भारत-बांग्लादेश प्रत्यर्पण संधि चर्चाओं में है। आपको बता दें कि अंतराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण ( ICT) ने सोमवार 17 नवंबर को अपदस्थ शेख हसीना को उनकी अनुपस्थिति में मानवता के विरुद्ध अपराध के लिए मौत की सजा सुना दी है।
चीन और पकिस्तानबना सकते हैं भारत पर दबाव
अंतराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण, बांग्लादेश ने उन्हें पिछले साल जुलाई-अगस्त में हुए हिंसक विरोध प्रदर्शन को हिंसक तरीके से कुचलने और करीब 1400 प्रदर्शनकारियों की मौत का जिम्मेदार ठहराया है। जहां एक ओर बांग्लादेश की अंतरिम सरकार द्वारा भारत को स्पष्ट रूप से कहा गया है कि अगर भारत शेख हसीना को उन्हें नहीं सौंपता तो इसे शत्रुता पूर्ण व्यवहार माना जाएगा। चीन और पाकिस्तान के लिए भारत को घेरने के लिए ये अच्छा मौका हो सकता है। चीन और पकिस्तान भी इस मामले पर अप्रत्यक्ष रूप से दबाव डालने की कोशिश कर सकते हैं। पूरे विश्वभर में इस मामले को लेकर चर्चाएं तेज हैं ऐसे में सबकी निगाहें भारत पर होंगी।
भारत-बांग्लादेश प्रत्यर्पण संधि को लेकर चर्चाएं क्यों ?
पिछले कई महीनों से बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना भारत में शरण लेकर रह रही हैं। बांग्लादेश की अंतरिम सरकार पहले ही उनका राजनयिक पासपोर्ट रद्द कर चुकी है अब उन्हें मानवता के विरुद्ध अपराध में दोषी ठहराते हुए अंतराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण ने मौत की सजा का फरमान जारी कर दिया है। जिसके बाद बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने भारत सरकार को बकायदा पत्र लिख कर शेख हसीना को वापस सौंपने की मांग की है। जिसमें उनकी ओर से भारत-बांग्लादेश प्रत्यर्पण संधि का हवाला देकर कहा गया कि अगर भारत ऐसा नहीं करता है तो ये अत्यंत शत्रुतापूर्ण व्यवहार होगा।
क्या है भारत बांग्लादेश प्रत्यर्पण संधि ?
भारत-बांग्लादेश प्रत्यर्पण संधि वर्ष 2013 में दोनों देशों की साझा सीमाओं पर आतंकवाद से निपटने के लिए एक रणनीतिक उपाय के रूप में लागू किया गया था। जिसमें वर्ष 2016 में दोनों देशों द्वारा भगोड़ों के आदान-प्रदान के लिए संशोधन किया गया था। इस संधि के तहत कई आपराधिक पृष्टभूमि के लोगों को वापिस सौंपा गया। वर्ष 1975 में में शेख मुजीबुर रहमान की हत्या के मामले में दो दोषियों को फांसी की सज़ा के लिए वर्ष 2020 में बांग्लादेश को वापिस सौंपा गया। प्रतिबंधित यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (उल्फा) के महासचिव अनूप चेतिया का प्रत्यर्पण भी भारत को सफलतापूर्वक किया गया था। इस संधि में ऐसे व्यक्तियों के प्रत्यर्पण का प्रावधान है, जिन पर ऐसे अपराधों के आरोप हैं जिनके लिए कम-से-कम एक वर्ष की सजा दी जा सकती है। प्रत्यर्पण के लिए एक मुख्य आवश्यकता दोहरी आपराधिकता का सिद्धांत है जिसका अर्थ है कि अपराध दोनों देशों में दंडनीय होना चाहिए।
क्या भारत रोक सकता है शेख हसीना की फांसी की सजा ?
पूर्व बांग्लादेशी प्रधानमंत्री शेख हसीना भारत में शरण लेकर रह रही हैं। जबकि उन्हें अंतराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण के द्वारा मौत की सजा का फरमान जारी किया गया है। ऐसे में सवाल ये उठता हैं कि- क्या भारत के पास कुछ ऐसी ताकतें हैं जो शेख हसीना की फांसी की सजा को रोक सकती हैं ? देखिए भारत के पास प्रत्यक्ष रूप से तो ऐसी कोई ताकत नहीं हैं जिस से भारत फांसी की सजा रोक सके। लेकिन कुछ अन्य पहलुओं की मदद से भारत शेख हसीना के प्रत्यर्पण की मांग को अस्वीकार कर सकता है।
भारत के कौन से तर्क हो सकते हैं ख़ास
संधि के अनुच्छेद 6 के अनुसार यदि अपराध राजनीतिक प्रकृति का है तो प्रत्यर्पण से इनकार किया जा सकता है। लेकिन इसकी भी कुछ कठोर सीमाएं तय हैं इसमें हत्या, आतंकवाद से संबंधित अपराध और अपहरण जैसे कई अपराधों को राजनीतिक प्रकृति के रूप में वर्गीकृत नहीं किया गया है। बांग्लादेश में “क्राइम्स अगेंस्ट ह्यूमैनिटी” यानि मानवता के खिलाफ अपराध, देश के युद्ध अपराध कानून के तहत परिभाषित है। लेकिन भारत आमतौर पर ऐसे अपराधों को अंतरराष्ट्रीय अदालतों के संदर्भ में देखता है, घरेलू राजनीतिक घटनाओं के संदर्भ में नहीं। इसीलिए भारत के पास यहां अपने तर्क रखने का मौका है।
क्या होगा अगर भारत प्रत्यर्पण की मांग को अस्वीकार कर दे
अगर फिर भी भारत प्रत्यर्पण की मांग को अस्वीकार कर देता है तो ऐसे में दोनों देशों के संबंधों में बहुत हद तक कड़वाहट पैदा हो सकती है। विशेषज्ञों के अनुसार इससे दोनों देशों के कूटनीतिक ओर व्यापारिक रिश्तों गहरा असर पड़ सकता है। बांग्लादेश की अंतरिम सरकार में सलाहकार मुहमद यूनुस ने शेख हसीना और भारत के खिलाफ “मानवता के विरुद्ध अपराध” शब्द को हथियार बनाया है। बांग्लादेश दक्षिण एशियाई देशों में भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है, जिसका द्विपक्षीय व्यापार वित्त वर्ष 2022-23 में 15.9 बिलियन डॉलर होने का अनुमान है। ऐसे में यह मामला भारत की विदेश नीति के लिए अग्निपरीक्षा साबित हो सकता है।
भारत किसी भी परिस्थिति में शेख हसीना को बांग्लादेश के हवाले नहीं कर सकता : डिप्लोमेट एसडी मुनी
भारत के दिग्गज डिप्लोमेट एसडी मुनी के अनुसार, भारत का मुख्य तर्क ये है कि जिस इंटरनेशनल क्राइम्स ट्रिब्यूनल ने ये फैसला दिया है, उसकी वैधता ही सवालों के घेरे में है। मुनी ने आगे बताया कि शेख हसीना पर हिंसा भड़काने के आरोप लगाए गए हैं, लेकिन इन आरोपों के समर्थन में कोई ठोस सबूत पेश नहीं किए गए। उन्होंने ये भी कहा कि जिन पुलिसकर्मियों पर प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाने के आरोप हैं, उनकी पहचान पुख्ता करना मुश्किल है, क्योंकि वो कोई भी हो सकता है। इसके अलावा मुनी ने संकेत दिया कि इस पूरे प्रकरण में सेना की भी भूमिका रही थी। ऐसे हालात में, उनके मुताबिक, ये पूछना जरूरी है कि जब मामले में सेना सक्रिय हो जाए तो एक प्रधानमंत्री वास्तव में कितना नियंत्रण रख सकता है।
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नेपाल में उग्र हालात: भारतीय विदेश मंत्रालय ने नागरिकों से की नेपाल यात्रा से बचने की अपील

काठमांडू: नेपाल में इन दिनों हालात बेहद नाजुक और अशांत हो गए हैं। राजधानी काठमांडू समेत देश के कई हिस्सों में सरकार के खिलाफ उग्र विरोध-प्रदर्शन हो रहे हैं। बीते दो दिनों से जारी यह आंदोलन अब हिंसक रूप ले चुका है। सड़कों पर हजारों की संख्या में छात्र और युवा उतर आए हैं, जो मौजूदा व्यवस्था और नेताओं के खिलाफ नाराज़गी जताते हुए आगजनी और तोड़फोड़ कर रहे हैं।
मंगलवार को नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने पद से इस्तीफा दे दिया, जिसके बाद से देश की राजनीतिक स्थिति और ज्यादा अस्थिर हो गई है। सूत्रों के मुताबिक, उनके इस्तीफे के बाद कई अन्य मंत्री भी पद छोड़ चुके हैं और कुछ नेता देश से बाहर निकलने की कोशिश में हैं। इसी बीच, प्रदर्शनकारियों ने संसद भवन और कई पूर्व नेताओं के घरों में आग लगा दी।

कांतिपुर मीडिया समूह के मुख्यालय से उठता धुआं, हिंसा की भयावहता को दिखा रहा है। जानकारी के अनुसार, मंगलवार को हुए प्रदर्शन के दौरान प्रदर्शनकारियों ने मीडिया समूह की इमारत को आग के हवाले कर दिया।
सेना ने संभाला मोर्चा, कर्फ्यू जारी
देश की राजधानी काठमांडू में हालात काबू में लाने के लिए नेपाली सेना ने मोर्चा संभाल लिया है। सेना और सुरक्षाबलों को हिंसा प्रभावित इलाकों में तैनात कर दिया गया है। साथ ही, बुधवार से कर्फ्यू लागू कर दिया गया है जो अगले आदेश तक जारी रहेगा।
नेपाल सेना ने एक बयान जारी कर नागरिकों से सहयोग की अपील करते हुए कहा कि कुछ असामाजिक तत्व स्थिति का गलत फायदा उठा रहे हैं, और देश की सुरक्षा के लिए कड़ी कार्रवाई की जाएगी।
भारतीय नागरिकों को वापस लाया जा रहा, एडवाइजरी भी जारी
नेपाल की बिगड़ती स्थिति को देखते हुए भारत सरकार भी सतर्क हो गई है। उत्तर प्रदेश के सोनौली बॉर्डर से भारतीय नागरिकों को SSB की मदद से भारत वापस लाया जा रहा है। केवल मेडिकल या आपात स्थिति में ही नेपाली नागरिकों को भारत में प्रवेश दिया जा रहा है।

भारत के विदेश मंत्रालय ने बुधवार को यात्रा परामर्श (Travel Advisory) जारी कर भारतीय नागरिकों से अपील की है कि वे नेपाल की अनावश्यक यात्रा से फिलहाल बचें। जो भारतीय नेपाल में पहले से मौजूद हैं, उन्हें घर के अंदर रहने और पूरी सावधानी बरतने की सलाह दी गई है। साथ ही, काठमांडू स्थित भारतीय दूतावास ने आपातकालीन संपर्क नंबर भी जारी किए हैं:
+977-980 860 2881 (WhatsApp पर उपलब्ध)
+977-981 032 6134 (WhatsApp पर उपलब्ध)
प्रदर्शनकारियों की मांग: नया संविधान, नया नेतृत्व
प्रदर्शन कर रहे युवाओं और छात्रों का कहना है कि वे नेपाल में “नई पीढ़ी का शासन” चाहते हैं। एक छात्र प्रदर्शनकारी सुभाष ने कहा कि हम भ्रष्टाचार से मुक्ति चाहते हैं, हमें पुराने नेताओं से कोई उम्मीद नहीं। हम नए नियम-कानून और एक मजबूत नेतृत्व की मांग कर रहे हैं। हमने पुराने नेताओं को खदेड़ दिया, अब वक्त है एक नई शुरुआत का।
प्रदर्शनकारियों ने दावा किया है कि वे पूर्व प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा और उनकी पत्नी का घर भी जला चुके हैं।
भारत सरकार की सतर्क निगाह
नेपाल के हालात पर भारत सरकार भी लगातार नजर बनाए हुए है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हिमाचल और पंजाब के बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों का हवाई सर्वेक्षण कर लौटने के बाद नेपाल की स्थिति को लेकर कैबिनेट समिति की आपात बैठक की। माना जा रहा है कि भारत, नेपाल में अपने नागरिकों की सुरक्षा और सीमावर्ती क्षेत्रों की स्थिति को लेकर सजग है।
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ऑपरेशन महादेव: पहलगाम हमले के मास्टरमाइंड समेत तीन आतंकी ढेर

जम्मू-कश्मीर: जम्मू-कश्मीर में अमरनाथ यात्रा के बीच सुरक्षा बलों ने एक और बड़ी कामयाबी हासिल की है। श्रीनगर के दाचीगाम वन क्षेत्र में सेना और आतंकियों के बीच हुई भीषण मुठभेड़ में लश्कर-ए-ताइबा के तीन खूंखार आतंकियों को मार गिराया गया। इन आतंकियों में पहलगाम हमले का मास्टरमाइंड सुलेमान उर्फ आसिफ भी शामिल है। बाकी दो की पहचान जिबरान और हमजा अफगानी के रूप में हुई है। सेना ने मौके से अमेरिका निर्मित एम4 कार्बाइन असॉल्ट राइफल और एके सीरीज की दो राइफलें भी बरामद की हैं।
कैसे शुरू हुआ ऑपरेशन महादेव
22 अप्रैल को पहलगाम में हुए नृशंस हमले के बाद सेना ने इलाके में आतंकियों की तलाश तेज कर दी थी। इस दौरान आतंकियों द्वारा इस्तेमाल की गई कम्युनिकेशन डिवाइस अचानक एक्टिव हुई, जिससे सुरक्षा एजेंसियों को उनकी लोकेशन का सुराग मिला। इसके बाद स्पेशल फोर्सेज की 4 पैरा यूनिट और 24 राष्ट्रीय राइफल्स ने मिलकर ‘ऑपरेशन महादेव’ शुरू किया। रविवार देर रात आतंकियों की मौजूदगी की पुष्टि के बाद इलाके की घेराबंदी सख्त की गई। खुद को घिरा देख आतंकियों ने फायरिंग शुरू कर दी और भीषण मुठभेड़ में तीनों आतंकी ढेर हो गए।
क्यों रखा गया नाम ‘ऑपरेशन महादेव’
यह अभियान श्रीनगर के पास महादेव चोटी क्षेत्र में चलाया गया, जो जबरवान रेंज का हिस्सा है और धार्मिक दृष्टि से बेहद पवित्र माना जाता है। इसी वजह से सेना ने इस ऑपरेशन को ‘महादेव’ नाम दिया।
पहलगाम हमला: दर्द और बदले की कहानी
22 अप्रैल को हुए इस आतंकी हमले में आतंकियों ने 26 लोगों को सिर्फ धर्म पूछकर मौत के घाट उतार दिया था। इसी हमले में जान गंवाने वाले लेफ्टिनेंट विनय नरवाल के पिता राजेश नरवाल ने कहा, “मैं सेना के जांबाजों को सलाम करता हूं। मुझे पहले से भरोसा था कि सेना एक दिन इन आतंकियों को जरूर मार गिराएगी।”
पहले भी हो चुकी है मुठभेड़
दाचीगाम के इसी इलाके में पिछले साल 10 नवंबर को भी आतंकियों से मुठभेड़ हुई थी, जिसमें आतंकी भाग निकले थे। बाद में 3 दिसंबर को लश्कर का आतंकी जुनैद भट इसी क्षेत्र में मार गिराया गया था, जो गांदरबल में हुए हमले में शामिल था।
सेना की सतर्कता और रणनीति से मिली सफलता
एनआईए द्वारा गिरफ्तार किए गए दो आतंकियों की सूचना और कम्युनिकेशन डिवाइस की लोकेशन से मिले सुराग के आधार पर सेना ने लगातार इलाके पर नजर रखी। आखिरकार सोमवार सुबह लिदवास क्षेत्र में आतंकियों की मूवमेंट देखते ही सेना ने ऑपरेशन को अंजाम दिया।
पुलिस का बयान
कश्मीर रेंज के पुलिस महानिरीक्षक वीके बिरदी ने कहा कि मारे गए आतंकियों की औपचारिक पहचान की प्रक्रिया जारी है। शवों को घने जंगल से नीचे लाने में वक्त लगेगा। यह ऑपरेशन एक बार फिर साबित करता है कि हमारी सुरक्षा एजेंसियां किसी भी कीमत पर आतंक के नापाक मंसूबों को कामयाब नहीं होने देंगी। ‘ऑपरेशन महादेव’ ने पहलगाम हमले का दर्द झेल रही देश की जनता को थोड़ी राहत जरूर दी है।
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