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सूबे में फायर सीजन की घटनाओं के आगे सरकारी तंत्र और वन महकमा हुआ बौना साबित, सीएम धामी के निर्देशों के बाद भी नही दिखाई गंभीरता।

अल्मोड़ा – सूबे में फायर सीजन की घटनाओं के दौरान सरकारी तंत्र और वन महकमा आखिरकार बौना ही साबित हुआ। प्रदेश के अकेले अल्मोड़ा जिले की बात करें तो यहां इस बार पिछले दस सालों का रिकार्ड टूट गया और इस फायर सीजन में नौ लोगों को असमय अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। वनाग्नि की इन घटनाओं के बाद मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने भी मोर्चा संभाला। कई अफसर निलंबित किए गए और कर्मचारियों की छुट्टियां भी कैंसिल कर दी गई। लेकिन इसके बाद भी न तो सरकारी मशीनरी ने कोई गंभीरता दिखाई और ना ही वन महकमे ने पूर्व की घटनाओं से कोई सबक लिया।
वनाग्नि की घटनाओं ने इस बार उत्तराखंड प्रदेश में जमकर कहर ढाया। कुमाऊं के पर्वतीय जिलों में वनाग्नि इस तरह बेकाबू हो गई कि उससे पार पाना सरकार और वन महकमे के लिए टेढ़ी खीर साबित हुआ। कुमाऊं के नैनीताल, बागेश्वर, पिथौरागढ़ और गढ़वाल के कुछ जिलों में जंगल की आग हद से ज्यादा बेकाबू होती चली गई। नैनीताल समेत अनेक इलाकों में वनाग्नि से निपटने के लिए सरकार को वायु सेना तक की मदद लेनी पड़ी। वनाग्नि की इन घटनाओं में सबसे अधिक प्रभावित अल्मोड़ा जिला रहा। यहां पहले सोमेश्वर तहसील में दो अलग अलग हादसों में पांच लोगों की जान चली गई और बृहस्पतिवार को फिर चार लोग वनाग्नि की भेंट चढ़ गए। ऐसी हालत में अब प्रदेश के अल्मोड़ा जिले में वनाग्नि पर काबू पाना वन महकमे के साथ ही सरकार के लिए भी एक बड़ी चुनौती बन गई है। वनाग्नि की घटनाओं को गंभीरता से नहीं लिया गया तो भविष्य में इसके और अधिक घातक परिणाम सामने आ सकते हैं।
उत्तराखंड के जंगलों में लग रही आग पर सरकार को सुप्रीम कोर्ट भी अपनी सख्ती दिखा चुका है। वनाग्नि को लेकर एक याचिकाकर्ता ने एनजीटी से कोई कार्रवाई न होने के बाद न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था और वनाग्नि की घटनाओं और उससे हो रहे नुकसान से निपटने के लिए ठोस कार्रवाई करने के निर्देश सरकार को दिए जाने की मांग भी की थी। जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि वह वनाग्नि से निपटने के लिए हम बारिश अथवा क्लाउड सीडिंग के भरोसे हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठ सकते। इसलिए सरकार को इसके लिए कारगर पहल करनी चाहिए।
उत्तराखंड में वनाग्नि के मामलों में सरकार ने कार्रवाई करने के कई दावे किए। 910 से अधिक मामले रजिस्टर किए और 350 से अधिक आपराधिक मामले भी दर्ज किए गए। जिनमें 62 लोगाें को नामजद भी किया गया। लेकिन इनमें से 300 से अधिक की भी अभी तक ना तो पहचान हो पाई है और ना ही किसी के खिलाफ कोई कड़ी कार्रवाई। परिणाम जंगलों में आग लगाने की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं और सरकार के दावे महज हवाई साबित होते जा रहे हैं।
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18 जुलाई तक अल्मोड़ा हाईवे रात में रहेगा बंद, सफर से पहले जरूर पढ़ें ये खबर

अल्मोड़ा: एनएच-109 पर क्वारब पुल के पास लगातार हो रहे भूस्खलन के कारण प्रशासन ने बड़ा फैसला लिया है। अब 18 जुलाई तक हर रात 11 बजे से सुबह 5 बजे तक इस मार्ग पर वाहनों की आवाजाही पूरी तरह बंद रहेगी। इस दौरान केवल जरूरी सेवाओं से जुड़े वाहन जैसे एम्बुलेंस, क्रेन और अन्य इमरजेंसी वाहन ही चल सकेंगे।
क्वारब के पास हाईवे के लगभग 200 मीटर हिस्से में पहाड़ी से लगातार मलबा और पत्थर गिर रहे हैं। इसी को देखते हुए राष्ट्रीय राजमार्ग विभाग द्वारा सुरक्षा कार्य भी किया जा रहा है।जिलाधिकारी आलोक कुमार पांडे ने बताया कि रात के समय इस मार्ग से गुजरना बेहद खतरनाक हो गया है। सुरक्षा को देखते हुए ही यह अस्थायी बंदी का फैसला लिया गया है।
जिलाधिकारी ने साफ किया कि प्रतिबंध के दौरान आदेशों की अनदेखी करने वालों पर सख्त कार्रवाई की जाएगी। साथ ही, इस दौरान किसी भी दुर्घटना या वाहन संचालन की ज़िम्मेदारी संबंधित थाना और चौकी इंचार्जों की होगी।
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उत्तराखंड के विजय बंगारी बने वैज्ञानिक, भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर में मिला स्थान

अल्मोड़ा: उत्तराखंड के युवाओं की प्रतिभा लगातार देशभर में पहचान बना रही है। अब अल्मोड़ा जिले के एक और होनहार बेटे ने राज्य का नाम रोशन किया है। स्याल्दे ब्लॉक के बरंगल गांव निवासी विजय बंगारी का चयन देश के प्रतिष्ठित भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर (BARC) में वैज्ञानिक पद के लिए हुआ है। यह खबर जैसे ही गांव में पहुंची खुशी की लहर दौड़ गई। लोग विजय की इस सफलता पर गर्व जता रहे हैं और उन्हें बधाई देने वालों का तांता लग गया है।
विजय बचपन से ही पढ़ाई में मेधावी रहे हैं। उन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा गांव के सरकारी स्कूल से पूरी की। इसके बाद इंटरमीडिएट की पढ़ाई देघाट से की और फिर एसएसजे कैंपस, अल्मोड़ा से अपनी उच्च शिक्षा पूरी की। उनकी यह सफलता दिखाती है कि साधन सीमित होने पर भी अगर लगन हो तो कोई मंज़िल दूर नहीं होती।
विजय एक साधारण परिवार से आते हैं। उनके पिता हरी सिंह बंगारी दिल्ली में नौकरी करते हैं जबकि उनकी माता जानकी देवी गांव में रहकर खेती करती हैं। बेटे की इस उपलब्धि ने अब पूरे परिवार को गौरव का अनुभव कराया है।
विजय के चयन की खबर के बाद से बरंगल गांव में उत्साह का माहौल है। आस-पड़ोस के लोग और रिश्तेदार लगातार उन्हें शुभकामनाएं देने आ रहे हैं। विजय की यह कामयाबी न सिर्फ उनके गांव…बल्कि पूरे उत्तराखंड के युवाओं के लिए प्रेरणा बन गई है।
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अल्मोड़ा: 19 वर्षीय छात्रा की दिल का दौरा पड़ने से मौत !

अल्मोड़ा: उत्तराखंड के अल्मोड़ा जनपद के धौलछीना क्षेत्र से एक ऐसी खबर सामने आई है जिसने पूरे इलाके को सदमे में डाल दिया है। एक ही परिवार में चार दिन के भीतर दो जवान बेटियों की असमय मौत ने न सिर्फ परिजनों को तोड़ कर रख दिया है…बल्कि गांव के हर घर को गमगीन कर दिया है।
पहली घटना 17 जून को हुई जब 23 वर्षीय कमला मेहरा को अचानक सीने में तेज दर्द हुआ और वे बाथरूम में गिर गईं। अस्पताल पहुंचने से पहले ही उनका निधन हो गया। कमला की शादी इसी साल नवंबर में होनी थी…जिसकी तैयारियां परिवार में जोरों पर थीं। घर में मेहंदी और गीतों की चर्चा हो रही थी…लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था।
इस घटना से परिवार अभी उबर भी नहीं पाया था कि 21 जून को कमला की 19 वर्षीय भतीजी दीक्षा मेहरा की भी अचानक मौत हो गई। दीक्षा बीए द्वितीय वर्ष की छात्रा थी और इन दिनों छुट्टियों में घर आई हुई थी। शुक्रवार को बाजार से लौटने के बाद उसे भी सीने में तेज दर्द हुआ। आनन-फानन में परिवार वाले उसे अस्पताल ले गए..लेकिन तब तक वह दम तोड़ चुकी थी।
कमला और दीक्षा दोनों पढ़ी-लिखी समझदार और जीवन के उजले सपने देखने वाली बेटियां थीं। कमला होटल व्यवसायी लाल सिंह मेहरा की बेटी थीं…वहीं दीक्षा महेंद्र मेहरा की पुत्री थी। एक ही परिवार की दो जवान बेटियों की इस तरह अचानक मौत से धौलछीना क्षेत्र में शोक की लहर फैल गई है।
लोग हैरान हैं कि आखिर एक ही घर में दो-दो युवा बेटियों की हृदयाघात से मौत कैसे हो गई। क्या यह सिर्फ एक संयोग है या इसके पीछे कोई गहराई है…अब यह सवाल उठने लगे हैं। कोरोना महामारी के बाद से युवाओं में हार्ट अटैक जैसी घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं। हाल ही में नैनीताल में भी एक युवक की रनिंग करते समय हृदय गति रुकने से मौत हो चुकी है।
स्वास्थ्य विशेषज्ञों के लिए यह अब एक गंभीर चिंता का विषय बनता जा रहा है। कम उम्र में अचानक हृदयाघात…एक ऐसी अनहोनी जो अब असामान्य नहीं रह गई है।
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