Dehradun
उत्तराखंड की कंकाल झील सिकुड़ने से बढ़ी चिंता, क्या खतरे में है इसका रहस्यमयी अस्तित्व ?

देहरादून: माना जा रहा है कि जलवायु परिवर्तन का असर एक पर पड़ रहा है, गढ़वाल हिमालय में माउंट त्रिशूल के आधार पर समुद्र तल से 16,500 फीट ऊपर स्थित है। “कंकालों की झील” के रूप में जाना जाता है, हिमनद पिंड सैकड़ों मानव कंकालों को छुपाता है कुछ संरक्षित मांस के साथ जो क्षेत्र में बर्फ पिघलने पर दिखाई देते हैं।
1942 में एक वन अधिकारी एचके मधवाल को झील के जमे हुए पानी में मानव हड्डियों की मौजूदगी का पता चला, जिसके बाद झील ने दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा। तब से, कंकालों की उत्पत्ति पर कई सिद्धांत प्रतिपादित किए गए हैं। भारत, अमेरिका और जर्मनी के वैज्ञानिकों द्वारा 2019 में किए गए एक अध्ययन ने इस लोकप्रिय सिद्धांत को खारिज कर दिया कि कंकाल एक ही समूह के थे जो एक विनाशकारी घटना में मर गए।
इसके बजाय, शोध में दावा किया गया कि व्यक्ति आनुवंशिक रूप से विविध थे, और उनकी मृत्यु में 1,000 वर्षों का अंतर था। अब दो दशकों से अधिक समय से उस क्षेत्र में तैनात वन अधिकारियों के लिए चिंता की बात यह है कि झील – लगभग दो एकड़ क्षेत्र में फैली हुई है और इसकी गहराई लगभग 9 फीट है – सिकुड़ रही है। चमोली में बद्रीनाथ वन प्रभाग के प्रभागीय वन अधिकारी (डीएफओ) सर्वेश दुबे ने कहा, “झील चौड़ाई और गहराई दोनों में सालाना लगभग 0.1% से 0.5% तक सिकुड़ रही है।
परंपरागत रूप से, रूपकुंड के आसपास के क्षेत्र में बारिश के दौरान बर्फ की बौछारें होती थीं, लेकिन अब बारिश आम होती जा रही है, जिससे ढीली मोराइन झील में खिसक रही है। हमारा मानना है कि वर्षा के पैटर्न में यह बदलाव सीधे तौर पर जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग से जुड़ा है, जो क्षेत्र के प्राकृतिक संतुलन को बदल रहा है। उन्होंने आगे कहा, “हम समाधान के लिए वन अनुसंधान संस्थान और वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी (डब्ल्यूआईएचजी) के विशेषज्ञों से संपर्क कर रहे हैं, क्योंकि इस वर्ष अत्यधिक वर्षा हुई और परिणामस्वरूप, गाद में वृद्धि हुई।
WIHG, देहरादून के वरिष्ठ ग्लेशियोलॉजिस्ट, मनीष मेहता ने कहा, “2013 में WIHG द्वारा बनाई गई ग्लेशियर सूची के अनुसार, हमारे क्षेत्र में लगभग 1,200 झीलें हैं इन्हें या तो प्रो-ग्लेशियल झीलों के रूप में वर्गीकृत किया जाता है, क्योंकि वे ग्लेशियर के थूथन (सामने के किनारे) पर स्थित होती हैं, या पेरी-ग्लेशियल झीलों के रूप में वर्गीकृत की जाती हैं, क्योंकि वे ग्लेशियर की परिधि (किनारे) पर स्थित होती हैं।
रूपकुंड एक पेरी-ग्लेशियल झील है, और जलवायु परिवर्तन के कारण, हिमालय में बर्फ की वर्षा में कमी और वृद्धि दोनों का अनुभव हो रहा है। इस मामले में, ऐसा लगता है कि कम वर्षा के कारण झील में असंगठित ढीली मोराइन सामग्री का प्रवाह हुआ है, जिसके परिणामस्वरूप झील की मात्रा और उसके क्षेत्र दोनों में कमी आई है। वैज्ञानिकों का मानना है कि इस घटना से ऊंचाई वाले क्षेत्रों में हरियाली बढ़ सकती है और क्षेत्र में गर्मी बढ़ सकती है।
2022 में, टीओआई ने जलवायु परिवर्तन के कारण गंगोत्री ग्लेशियर के बर्फ रहित सफेद परिदृश्य के हरे होने पर रिपोर्ट दी थी। चमोली जिले में तैनात वन अधिकारियों का कहना है कि उन्होंने देखा है कि जलवायु परिवर्तन का प्रभाव अन्य ऊंचाई वाली झीलों पर भी पड़ रहा है।
यह पूछे जाने पर कि अब विशेषज्ञों की सिफारिशें क्यों मांगी जा रही हैं, दुबे ने कहा: “रूपकुंड झील एक बेहद सुदूर इलाके में स्थित है, जहां विभिन्न प्राकृतिक प्रक्रियाएं होती हैं।
इसलिए, किसी भी प्रकार का मानव निर्मित हस्तक्षेप विशेषज्ञों से परामर्श के बाद ही किया जाएगा। बेकल ताल (रूपकुंड से काफी नीचे 9,000 फीट पर स्थित) भी सिकुड़ रहा है। हमारी टीम ने पहले इसे गाद निकालने का काम किया था, लेकिन वे कीचड़ में खिंचते जा रहे थे – यह पूरा परिदृश्य बहुत नाजुक और संवेदनशील है।”
केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के तहत बीरबल साहनी इंस्टीट्यूट ऑफ पैलियोसाइंसेज के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक और 2019 के अध्ययन ‘रूपकुंड झील के कंकालों से प्राचीन डीएनए भारत में भूमध्यसागरीय प्रवासियों का पता चलता है’ में शामिल लेखकों में से एक, नीरज राय ने कहा, “रूपकुंड झील कायम हैइस क्षेत्र में हुई पिछली चरम जलवायु घटनाओं को उजागर करने में अत्यधिक महत्व है।उस झील में पत्थरों का भू-रासायनिक विश्लेषण हजारों साल पहले के मौसम की चरम स्थितियों के बारे में बहुमूल्य जानकारी प्रदान कर सकता है। यह ऐतिहासिक और जलवायु संबंधी जानकारी का खजाना है और इसे संरक्षित करने की आवश्यकता है।
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राज्यपाल गुरमीत सिंह ने अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन के समापन सत्र में लिया भाग

देहरादून: राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (से नि) ने रविवार को दून विश्वविद्यालय, देहरादून में आयोजित इंडियन एसोसिएशन ऑफ सोशल साइंस इंस्टीट्यूशंस के 24वें अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन के समापन सत्र में प्रतिभाग किया। इस तीन दिवसीय सम्मेलन में देश-विदेश से आए प्रख्यात विद्वानों ने विभिन्न सत्रों में सामाजिक कल्याण, अर्थशास्त्र, रोजगार, उद्योग, कृषि, तकनीकी, पर्यावरण और नगरीकरण जैसे विषयों पर गहन विचार-विमर्श किया।
समापन सत्र को संबोधित करते हुए राज्यपाल ने कहा कि आज सम्पूर्ण विश्व जलवायु परिवर्तन, पर्यावरणीय असंतुलन और असमान विकास जैसी चुनौतियों के स्थायी समाधान और नई दिशा की तलाश में है। ऐसे समय में यह सम्मेलन केवल एक अकादमिक विमर्श नहीं, बल्कि हमारी सामूहिक चेतना, साझी जिम्मेदारी और पर्यावरणीय जागरूकता का सशक्त आह्वान है। उन्होंने कहा कि विकास और पर्यावरण एक-दूसरे के प्रतिद्वंद्वी नहीं, बल्कि पूरक बनाना ही सच्चा सतत विकास है।
राज्यपाल ने कहा कि जलवायु परिवर्तन आज केवल वैज्ञानिक मुद्दा नहीं, बल्कि मानव अस्तित्व का प्रश्न बन चुका है। अनियोजित शहरीकरण, अंधाधुंध वनों की कटाई और प्राकृतिक संसाधनों का अति-दोहन इसके प्रमुख कारण हैं। उन्होंने कहा कि इस संकट से निपटने के लिए केवल नीतियाँ या तकनीक पर्याप्त नहीं होंगी, बल्कि हमें जीवनशैली में परिवर्तन, जनसहभागिता और प्रकृति के प्रति संवेदनशील रहकर नीतियां बनानी होगी।
राज्यपाल ने कहा कि हमारे पर्वतीय राज्यों के लिए पर्यावरणीय चुनौतियाँ और भी संवेदनशील हैं। भूस्खलन, मृदा क्षरण, नदियों का कटाव और वन्य जीवों के आवासों में कमी जैसे मुद्दे अब केवल पर्यावरणीय नहीं, बल्कि सामाजिक और आर्थिक स्थिरता से भी जुड़ चुके हैं। उन्होंने कहा कि इन समस्याओं के समाधान के लिए स्थानीय समुदायों की भागीदारी, वैज्ञानिक और पारंपरिक ज्ञान का समन्वय तथा जनजागरूकता और शिक्षा तीनों को एक साथ जोड़ना आवश्यक है।
राज्यपाल ने कहा कि शहरीकरण आर्थिक प्रगति का वाहक है, परंतु अनियोजित शहरीकरण असमानता, प्रदूषण और संसाधनों की कमी का कारण बन रहा है। उन्होंने कहा कि हमें “स्मार्ट सिटीज” के साथ-साथ “ग्रीन सिटीज” की भी परिकल्पना करनी होगी, जहाँ भवन ऊर्जा-कुशल हों, परिवहन स्वच्छ हो और हरित आवरण पर्याप्त हो। सतत विकास का अर्थ केवल आर्थिक प्रगति नहीं, बल्कि विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन स्थापित करना है।
राज्यपाल ने युवाओं से कहा कि वे केवल भविष्य के विद्यार्थी नहीं, बल्कि भविष्य के निर्माता हैं। उनके विचार, शोध और संवेदना ही हरित, समृद्ध और आत्मनिर्भर भारत की दिशा तय करेंगे। उन्होंने आयोजन समिति की सराहना करते हुए कहा कि यह सम्मेलन ज्ञान, संवाद और नीति-चिंतन का उत्कृष्ट मंच बना है। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि यहाँ हुए मंथन से निकले विचार हिमालयी क्षेत्र के सतत विकास के लिए नई दिशा प्रदान करेंगे।
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Accident
उत्तरखड़: सड़क पर दौड़ रही थी टैक्सी, ड्राइवर को अचानक आया अटैक, पर्यटकों की अटकी सांसे

मसूरी: पर्यटन नगरी मसूरी के नजदीक सोमवार को एक दर्दनाक हादसा सामने आया, जब धनौल्टी से लौट रहे एक टैक्सी चालक को अचानक दिल का दौरा पड़ गया। घटना उस वक्त हुई जब चालक कार चला रहा था, जिससे गाड़ी का संतुलन बिगड़ गया और वह सड़क किनारे पैराफिट से टकरा गई। हादसे में चालक की मौके पर ही मौत हो गई…हालांकि गाड़ी में सवार चार पर्यटक पूरी तरह सुरक्षित बच गए।
यह दुर्घटना टिहरी बाईपास मार्ग पर लक्ष्मणपुरी क्षेत्र में नगर पालिका परिषद के कूड़ा कलेक्टिंग सेंटर के पास हुई। हादसे के तुरंत बाद चालक को 108 एंबुलेंस के जरिए उप जिला चिकित्सालय पहुंचाया गया, जहां डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया।
मृतक की पहचान हरिद्वार निवासी कपिल अरोड़ा (उम्र करीब 40 वर्ष), पुत्र स्व. अनिल अरोड़ा के रूप में हुई है। कपिल स्विफ्ट डिज़ायर टैक्सी (यूके08-टीए-6149) चला रहे थे और धनौल्टी से देहरादून होते हुए हरिद्वार लौट रहे थे।
आखिरी पलों में दिखाई सूझबूझ
कार में सवार पश्चिम बंगाल से आए पर्यटकों ने बताया कि चलती गाड़ी में ही कपिल को चक्कर जैसा महसूस हुआ। इसके बाद उन्होंने किसी तरह खुद को संभालते हुए गाड़ी को साइड में लगाने की कोशिश की, जिससे कार पैराफिट से टकरा गई। अगर चालक ने सूझबूझ न दिखाई होती, तो कार सीधे गहरी खाई में गिर सकती थी और एक बड़ा हादसा हो सकता था।
पर्यटक सुरक्षित, भेजे गए हरिद्वार
कार में सवार सभी पर्यटक पश्चिम बंगाल के निवासी हैं, जिनमें पुरबस्त हल, डाइसेल, पूरतराड़ निवासी राजेल मुखर्जी (उम्र 45 वर्ष), ढंगन निवासी अनकटी नाथ, पुत्र आलोक नाथ और शेम नाथ गराई शामिल हैं। सभी को मसूरी पुलिस द्वारा सुरक्षित बाहर निकाला गया और उन्हें अन्य वाहन से हरिद्वार भेज दिया गया।
पुलिस ने शुरू की जांच
मसूरी पुलिस ने घटनास्थल पर पहुंचकर जांच शुरू कर दी है। मृतक के परिजनों को सूचना दे दी गई है और शव को पोस्टमार्टम के लिए भेजा गया है। पुलिस का कहना है कि प्रारंभिक जांच में यह मामला स्वाभाविक मृत्यु (दिल का दौरा) का प्रतीत होता है, हालांकि पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद ही स्थिति पूरी तरह स्पष्ट होगी।
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